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हेलमेट के बारे में ये बात जानकर सबसे पहले आप अपना हेलमेट उठाकर चेक करेंगे

Helmet के बारे में ये लापरवाही की तो समझिए वो एक कैप से ज्यादा कुछ नहीं. कोई सेफ़्टी नहीं. अगर ये बात अजीब लग रही है, तो अभी और भी मसला है. जान लो इस बारे में सब कुछ.

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हेलमेट से जुड़ी जरूरी बात जान लो वरना...

एक तो आपको खरीदना नहीं था क्योंकि पहनने का मन नहीं था. फिर प्रेशर में आकर खरीद लिया तो अब पहने जा रहे. बस पहने जा रहे. इस बात की चिंता किये बिना कि उसकी भी उम्र होती है. अंग्रेजीदा होकर कहें तो एक्सपायरी होती है उसकी. पहेलीनुमा लाइनें पढ़कर सिर घूम गया क्या? कोई बात नहीं. सिर को स्थिर कीजिए क्योंकि बात सिर की ही होने वाली है. बात हेलमेट की होगी. हेलमेट जो हम सब अक्सर सिर्फ चालान से बचने खरीदते हैं. कड़वी हकीकत... अब खरीद तो लिया तो ये जानना भी जरूरी है कि ये जीवन भर नहीं चलेगा. काहे से,

हेलमेट की एक उम्र होती है. एक्सपायरी डेट होती है. जो समय रहते नहीं बदला तो फिर वो एक कैप से ज्यादा कुछ नहीं. कोई सेफ़्टी नहीं. जानकर आपको अजीब लगेगा तो अभी मसला और भी है. क्योंकि ये एक्सपायरी भी दो तरीके के होती है. (आयें वाला मीम)

Aayein Meme: Meme Template

एक्सपायरी 1: ये उस वाले हेलमेट के लिए है जो आप और हम सड़क से, या फिर मोहल्ले की कोने वाली दुकान से खरीदते हैं. इसकी तो जन्म होते ही एक्सपायरी हो चुकी होती है. काहे से पूरे चांस हैं कि ये BIS के ठप्पे के बिना बना होगा. सरकार साल 2019 से ही नियम बना चुकी है कि हेलमेट पर बीआईएस (भारतीय मानक ब्यूरो) का मार्क लगा होना ही चाहिए. जाहिर है कि इसके लिए प्रोसेस है और पैसा भी लगता है. तो बीआईएस वाला हेलमेट महंगा होगा. सड़क वाला सस्ता. उससे दूर ही रहिए क्योंकि हमारे पापा कहते हैं,

सस्ता रोये बार-बार, महंगा रोये एक बार (मतलब मैंने उनसे सुना. आपके पापा भी कहते होंगे)

a metal object sitting on top of a white pillar
हेलमेट 

एक्सपायरी 2: बीआईएस का ठप्पा भी लगा है और सड़क से भी नहीं लिया. बाइक लेते समय कंपनी ने ही दिया था. मगर इसका मतलब ये नहीं कि पहने जाओ. क्योंकि जनाब एक हेलमेट में तीन परतें होती हैं. सभी को उधेड़ते हैं.

# पहली परत: आउटर शेल माने सबसे ऊपर का हार्ड वाला हिस्सा

# दूसरी परत: बीच वाली जो EPS (Expanded polystyrene) से बनी होती है. ये एक किस्म का फ़ोम है, जो हेलमेट के साथ दूसरी कई जगह इस्तेमाल होता है. जहां कुशन की जरूरत होती है. इसको Styrofoam के नाम से भी जानते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इसको इसी नाम से ट्रेडमार्क किया गया है. बनाने वाली कंपनी Dow Chemical. जी वही जो आप समझ रहे. वैसे कई हेलमेट में इसका उन्नत वर्जन EPP (Expanded Polypropylene) भी इस्तेमाल होता है.  

person in black helmet and blue jacket
हेलमेट में तीन परतें 

# तीसरी परत: लाइनर्स, मतलब सामने का हिस्सा. जहां ग्लास से लेकर लेदर लगा होता है. हेलमेट का एकमात्र हिस्सा जिसे आप निकाल कर बदल सकते हैं या साफ कर सकते हैं. मगर,

असली खेल तो बीच वाली परत का है. हार्ड शेल अपना काम करेगा लेकिन दुर्घटना की स्थति में शॉक तो ईपीएस ही झेलगा. इसको घर के जालीदार दरवाजे के पीछे लगा असल मोटा लोहे वाला दरवाजा समझ लीजिए.  इसी ईपीएस में समय के साथ दिक्कत आती है. कैसी दिक्कत? जनाब ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं. किसी भी फ़ोम को देख लीजिए. बाइक की सीट ही सही. पहले-पहल बड़ी फूली हुई होती है, फिर पचक जाती है. दुकान पर बनवाने जाएंगे, तो वो इसी सीट पर नया फ़ोम लगाते हैं. बस यही विज्ञान हेलमेट के लिए भी लागू होता है. बाहर से देखने पर भले पता ना चले लेकिन एक समय के बाद ईपीएस अपना काम ढंग से नहीं करता. कितना समय? मोटा-माटी पाँच साल, जबसे आपने पहना और मोटा-माटी सात साल, जब वो बना. बोले तो मैन्युफैक्चरिंग की तारीख. हेलमेट पर लिखी होती है.

इसलिए हर पांच साल में अपना हेलमेट बदलते रहिए. अच्छी क्वालिटी वाला ही लीजिए और चार साल से ऊपर की हर सवारी को भी पहनाते रहिए. मैं चला क्योंकि गाड़ी बुला रही है. मतलब मेरी बाइक बुला रही है.

हैप्पी बाइकिंग.

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