आपके बटुए में एक कार्ड है जिसे हम सब डेबिट कार्ड के नाम से जानते हैं. वही डेबिट कार्ड जो ATM पर रोकड़ा निकालने के काम आता है तो मॉल से लेकर ई-कॉमर्स पोर्टल पर शॉपिंग के लिए भी. वैसे तो ये डेबिट कार्ड अकाउंट किट के साथ ही आता है, मगर इसकी एक फीस भी होती है. साल भर में एक बार लगने वाली इस फीस को 'annual maintenance charges' (AMC) कहते हैं. इतना पढ़ते ही पक्का आप कहोगे कि मत याद दिलाओ यार. बैंक तमाम चार्जेज लेता है, लेकिन सबसे ज्यादा ये वाली फीस चुभती है.
डेबिट कार्ड कोई हो, कोने में Mastercard, Visa या RuPay क्यों लिखा होता है?
डेबिट कार्ड पर साल भर में एक बार annual maintenance charge लगता है. ये फीस 99 रुपये से लेकर 750 रुपये के बीच हो सकती है. जिस दिन फीस कटती है उस दिन अपन बैंक को कोसते भी हैं. मगर जरा ठहरिए. बैंक बेचारा तो मुफ़्त में बदनाम है. इस फीस का एक बड़ा हिस्सा किसी और को जाता है.
AMC 99 रुपये से लेकर 750 रुपये के बीच होती है. कार्ड कोई सा भी हो, ये फीस तो लगनी ही है. जिस दिन फीस कटती है उस दिन अपन बैंक को कोसते भी हैं. मगर जरा ठहरिए. बैंक बेचारा तो मुफ़्त में बदनाम है. इस फीस का एक बड़ा हिस्सा तो किसी और को जाता है. किसे, वही जो कार्ड के कोने में आराम फरमा रहा.
कार्ड नेटवर्क कंपनी की कमाईकार्ड नेटवर्क कंपनी मतलब Mastercard, Visa या RuPay. आपका डेबिट कार्ड किसी भी बैंक का हो, एक कोने में इन तीन कंपनियों में से किसी एक का नाम होता ही है. मास्टर और वीजा अमेरिकी कंपनी हैं. वहीं RuPay इंडियन, जिसे साल 2012 में लॉन्च किया गया था. डेबिट कार्ड की फीस का एक बड़ा हिस्सा इनको ही जाता है. कैसे, वो जानने के लिए आपको पेमेंट सिस्टम को समझना होगा.
उदाहरण के लिए आपके पास SBI का डेबिट कार्ड है और ICICI बैंक के ATM से पैसे निकालने पहुंच गए. अब मान लीजिए कि वो कार्ड किसी नेटवर्क से नहीं जुड़ा तो भला ATM को कैसे पता चलेगा कि भईया आप कौन, हम क्यों आपके पैसे दें. चलो पता चल भी गया तो फिर एक और दिक्कत. आप SBI के बड़े ग्राहक, लेकिन इस्तेमाल किया किसी और का ATM. अब उस बैंक को भी आपके बारे में पता है तो जाहिर सी बात है कि वो आपको अपने साथ बैंकिंग के लिए ट्राई कर सकते हैं. मतलब दुविधा ही दुविधा.
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इसी दुविधा की सुविधा है पेमेंट नेटवर्क. एक बैंक से दूसरे बैंक के बीच पुल का काम करता है. माने कि आपका कार्ड किसी भी बैंक का हो और किसी भी ATM में खड़े हों, जानकारी का आदान-प्रदान इसी नेटवर्क से होगा. इनके पास आपके डेबिट कार्ड की पूरी जानकारी होती है. जैसे ही आप कार्ड मशीन में खोंसते हैं तो मशीन का सर्वर आपके बैंक से नहीं बल्कि आपके नेटवर्क से बात करता है. क्योंकि सारे ही बैंक तीनों नेटवर्क का कार्ड बनाते हैं तो जानकारी भी सभी के पास होती है.
पूछता है भईया ये जितने पैसे मांग रहे हैं देने हैं क्या? उधर से हां होती है और फिर नोटों की फरफराहट सुनाई देती है. इस तरीके से पूरी गोपनीयता बनी रहती है. कोई झगड़ा-झगड़ा नहीं खेलता. इसी झड़गे का सरपंच होने के नाते कार्ड की फीस का एक हिस्सा इनको भी जाता है. यही प्रक्रिया शॉपिंग के समय स्वाइप मशीन (Point of sales) पर भी इस्तेमाल होती है. मशीन किसी की भी हो, कार्ड स्वाइप होते ही नेटवर्क से जानकारी मांगी जाती है. ओके होते ही पैसा डेबिट. यहां नेटवर्क कंपनियां हर लेनदेन पर मशीन के मालिक से 0.5–3.5 फीसदी तक चार्ज करती हैं.
इसलिए कभी-कभी दुकानदार आपसे इस पैसे की डिमांड रखते हैं. विशेषकर क्रेडिट कार्ड से लेनदेन पर. वैसे अगर आपके साथ ऐसा होता है तो साफ इनकार कर दीजिए. POS मशीन का पैसा उसके मालिक को ही देना होता है.
जानकारी समाप्त, क्योंकि हमें ATM जाना है.
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