अक्सर हम और आप कहते हैं कि अरे यार फ्यूज़ उड़ गया. मतलब पावर सप्लाई उड़ गई. लेकिन कभी दिमाग में आया कि इस Fuse के उड़ने में आखिर उड़ता क्या है. क्या हुई, दिमाग का फ्यूज़ उड़ गई. हमारा भी उड़ा क्योंकि जब हमारे एक्सटेन्सन बॉक्स का फ्यूज़ उड़ा तो दिमाग की बत्ती जली. आखिर क्या बला है ये फ्यूज़ जो एकदम राइट टाइम पर उड़ जाता है. अगर ये नहीं उड़े तो कई सारे इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट जरूर उड़ जाएंगे. कहने का मतलब फ्यूज़ इलेक्ट्रिकल पावर सप्लाई का बहुत जरूरी प्रोडक्ट है.
'फ्यूज़ उड़ता तो है', मगर उसमें ऐसा क्या है उड़ जाता है! जो बत्ती गुल हो जाती है
Fuse एक किस्म का सुरक्षा कवच है जो शॉर्ट सर्किट से लेकर करेंट की ओवर सप्लाई के टाइम अपन कवच तोड़ देता है. कहने का मतलब करेंट की रेगुलर सप्लाई को अल्पविराम देता है. देखने में एक पतलु वायर और ट्यूब होता है मगर ये वो आम वायर नहीं है.
ये एक किस्म का सुरक्षा कवच है जो शॉर्ट सर्किट से लेकर करेंट की ओवर सप्लाई के टाइम अपना कवच तोड़ देता है. कहने का मतलब करेंट की रेगुलर सप्लाई को अल्पविराम देता है. देखने में एक पतलु वायर और ट्यूब होता है मगर ये वो आम वायर नहीं है जो हम इलेक्ट्रिक सप्लाई में देखते हैं. ये वायर बना होता है Tin और Lead के कॉम्बो से.
अब ये दोनों ही क्यों. क्योंकि इन दोनों का मेल्टिंग पॉइंट बोले तो गलनांक कम होता है. गलनांक मतलब केमेस्ट्री के हिसाब से किसी भी पदार्थ की वो स्थति जहां पर पहुंचकर वो गलने लगता है. उदाहरण के लिए बर्फ जीरो डिग्री पर आते ही पिघलने लगती है तो कार्बन 3,550 °C पर जाकर पिघलता है. ऐसे में जब फ्यूज़ बनाने की बारी आई तो Tin और Lead सबसे मुफीद प्रोडक्ट निकले.
इनका गलनांक बहुत ज्यादा नहीं और बहुत कम भी नहीं. Tin बाबू 240 डिग्री पर और Lead अंकल 328 डिग्री पर बैठे हुए हैं. वहीं कॉपर या अल्युमीनियम जिनसे वायर बने होते हैं उनका गलनांक क्रमशः 1090 और 665 डिग्री होता है. कहने का मतलब ये दोनों पदार्थ बहुत गर्मी झेल सकते हैं मगर इलेक्ट्रॉनिक्स नहीं. ऐसे में कुछ बीच का चाहिए था और तब काम आए Tin और Lead.
जब तक करेंट अपने रेगुलर लेवल मतलब 230 वोल्ट पर बहता है तो फ्यूज़ का कोई काम नहीं होता. मगर जैसे ही सप्लाई का ओवर फ़्लो होता है फ्यूज़ का वायर गर्म होकर टूट जाता है और पॉवर सप्लाई रुक जाती है. शॉर्ट सर्किट के समय भी फ्यूज़ यही काम करता है जिससे करेंट का फ़्लो रुक जाता है.
हालांकि हर प्रोडक्ट में फ्यूज़ अलग-अलग होता है. मसलन एक्सटेंशन बोर्ड में 5 या 6 एम्पियर का तो फ्रिज से लेकर कम्पुटर, टीवी और छोटे प्रोडक्टस के लिए 3 एम्पियर का फ्यूज़ बहुत होता है. वैसे ये सब काम अंदाजे से नहीं बल्कि गणित के फॉर्मूले I (Amps) = P (Watts) ÷ V (Voltage) से तय होता है. मतलब एक प्रोडक्ट में कितने वोल्ट सप्लाई आ रही और वो कितनी पावर पर काम कर रहा. इनके बीच का सेतु ही एक फ्यूज़ की ताकत होती है.
फ्यूज़ की कहानी यहीं खत्म नहीं होती क्योंकि इसके आगे एक और प्रोडक्ट लगा होता है. इसे Varistor कहते हैं. इसके बारे में भी कभी अलग से बात करेंगे
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