स्मार्टफोन में आप सबसे ज़्यादा किस फ़ीचर का इस्तेमाल करते हैं. जवाब में आप भतेरे फीचर्स का नाम गिना देंगे ये हमें पता है. मगर सबसे जरूरी फ़ीचर का नाम लेना भूल जाएंगे ये भी हमें पता है. अजी जनाब एक स्मार्टफोन में अगर सबसे ज़्यादा किसी फ़ीचर का इस्तेमाल होता है तो वो है अंगूठा. बोले तो फिंगरप्रिंट के बिना फ़ोन ओपन ही नहीं होता, इसलिए बाक़ी सब पीछू रह जाता है. मतलब पासवर्ड होता है, मगर इस्तेमाल तो फिंगरप्रिंट ही होता है. जरूरी क्या बहुत जरूरी फ़ीचर है, लेकिन बेचारा कभी नोटिस नहीं होता.
अंगूठे के भरोसे चल रहा आपका स्मार्टफोन इसके फिंगरप्रिंट पकड़ता कैसे है?
कभी आपने सोचा कि आख़िर स्मार्टफ़ोन में फ़िंगरप्रिंट (how fingerprint sensors work) काम कैसे करता है? कैसे उसको पता होता है कि फ़लां अंगूठा या उंगली आपकी ही है? जो कोई दूसरा उंगली दिखाए तो टेढ़ी करने पर भी घी नहीं निकलता, मतलब फ़ोन ओपन नहीं होता. झटके लगने वाली साइंस है. 'स्कैन' करके देखते.
खैर आज अपन मिलकर इसको नोटिस करते हैं. कभी आपने सोचा कि आख़िर स्मार्टफ़ोन में फ़िंगरप्रिंट (how fingerprint sensors work) काम कैसे करता है? कैसे उसको पता होता है कि फ़लां अंगूठा या उंगली आपकी ही है? जो कोई दूसरा उंगली दिखाए तो टेढ़ी करने पर भी घी नहीं निकलता, मतलब फ़ोन ओपन नहीं होता. झटके लगने वाली साइंस है. 'स्कैन' करके देखते.
फिंगरप्रिंट का फ़ंडाआइफ़ोन वाले दोस्तो, आपको भाव खाने की जरूरत नहीं क्योंकि कई सालों तक आप भी अंगूठे के भरोसे थे, भले आज मुखड़े (Face-id) पर फ़ोकस है. स्मार्टफोन की स्क्रीन पर या साइड बटन पर जहां आप अपना अंगूठा लगाते हैं, वहां एक सेंसर होता है जिसे कहते हैं Capacitive touch. हालांकि आजकल तो ultrasonic या optical in-display सेंसर आने लगे हैं, लेकिन बेस तकनीक वही है. Capacitive टच बजट वाले फ़ोन और साइड बटन वाले फ़ोन में इस्तेमाल होता है तो ऑप्टिकल सेंसर मिडरेंज फ़ोन में. अल्ट्रासोनिक काफ़ी महंगी तकनीक है इसलिए अभी सिर्फ़ प्रीमियम स्मार्टफोन तक सीमित है.
अब जैसे ही आप इसके ऊपर अपने अंगूठे या उंगली को रखते हैं तो सेंसर उसके निशान को स्कैन करता है. इन लकीरों को ridges और valley कहते हैं. अब ये कोई रहस्य तो है नहीं कि ये लकीरें हर इंसान की अलग ही होती हैं. इन्ही लकीरों से इलेक्ट्रिक सिग्नल भी निकलते हैं जो हर किसी के अलग-अलग ही होते हैं. मतलब स्कैन करते ही ये तो तय हो जाता है कि इसी जानकारी को सेव करना है.
अब जो पुराना फ़ोन है, तो कई बार स्कैन करना पड़ता है. मगर ऑप्टिकल सेंसर में कम समय लगता है. इसके लिए स्मार्टफोन मेकर्स सेंसर के अंदर लाइट लगाते हैं. जैसे ही आपने अंगूठा रखा, वैसे ही लाइट जलती है और स्कैन हो जाता है. अल्ट्रासोनिक में लाइट के साथ high-frequency की साउंड वेव भी निकलती हैं जो लकीरों के साथ खून के बहाव को भी रीड करती हैं. फिर बनता है फिंगर प्रिंट का 3D मैप.
यहां तक सब नॉर्मल है. असल खेला इस जानकारी को सेव करने में है. आपके फिंगरप्रिंट का डेटा ज्यों का त्यों नहीं, बल्कि गणित के फॉर्मूले के अंदाज़ में सेव होता है. माने कि अगर किसी ने आपका फ़ोन चुराया या निजी जानकारी हासिल की, तब भी फिंगरप्रिंट का डेटा नहीं मिलेगा. समझने के लिए कहें तो 2+2*8-10 जैसा कुछ बनाकर सेव किया जाता है. इसका कोई तय सेटअप भी नहीं, मतलब पूरा गुणा-गणित रेंडम है. सिस्टम ने एक बार सेव किया और फिर इनक्रिप्ट कर दिया. अब जो किसी के पास डेटा है भी तो लगाओ दिमाग. कछु नहीं होगा. सामने वाले के हाथ आएगा, मगर मुंह नहीं लगेगा.
जानकारी समाप्त क्योंकि लिखते-लिखते अंगूठा दुखने लगा.
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