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क्या है GPS Spoofing जिससे मिडिल ईस्ट में भारतीय विमानों से हो रहा खतरनाक खेल?

इंडियन फ्लाइट और एयर क्राफ्ट के साथ पिछले कई महीनों से मिडिल ईस्ट रीजन में GPS spoofing हो रही है. मामला इतना गंभीर है कि इंडियन एविएशन का प्रबंधन देखने वाली संस्था (DGCA) को इसके लिए एक चेतावनी जारी करना पड़ी है.

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सेटलाइट से खतरा. (तस्वीर:पिक्सेल)

हजारों फीट की ऊंचाई पर फ्लाइट आसमान में उड़ रही है और अचानक से पायलट को पता चलता है कि वो तो अपने तय रूट से बहुत दूर है. अलग टाइम जोन में ट्रेवल कर रहा है. पायलट को कुछ नहीं सूझता तो वो सबसे पास के एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) से बात करता है और टाइम के बारे में पूछता है. सामने से जो जवाब आता है वो उसी रूट का समय बताता है जहां इस वक्त उसे होना चाहिए. सब ठीक है तो फिर हुआ क्या? 

नकल... वो भी बहुत उन्नत किस्म की. पूरा मामला बताते हैं.

नकल की इस तकनीक का नाम है GPS spoofing (GPS स्पूफिंग) जो पिछले कई महीनों से इंडियन फ्लाइट के मिडिल ईस्ट रीजन (Middle East airspace) में हो रही है. विशेषकर इराक-ईरान बॉर्डर के आसपास. मामला इतना गंभीर है कि इंडियन एविएशन का प्रबंधन देखने वाली संस्था DGCA को इसके लिए एक चेतावनी जारी करना पड़ी. सवाल उठना लाजमी है कि आखिर ये GPS स्पूफिंग है क्या और इसके खतरे क्या हैं.

क्या है GPS?

ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम या GPS दुनिया में नेविगेशन के लिए इस्तेमाल होने वाली सबसे बड़ी तकनीक है. सौ प्रतिशत तो नहीं, लेकिन कह सकते हैं कि दुनिया की एक बड़ी आबादी अमेरिका के GPS (Global Positioning System) पर निर्भर है. अमेरिकी वायु सेना द्वारा इसको कंट्रोल किया जाता है. फोन में गूगल मैप्स से लेकर हर किस्म के वाहन, जैसे कार, शिप, हवाई जहाज, को रास्ता दिखाने में इसी तकनीक का इस्तेमाल होता है. 

यूएस GPS सिस्टम 31 उपग्रहों से बना है जिन्हें नेवस्टार के नाम से जाना जाता है. हालांकि, ऐसा नहीं है कि सिर्फ GPS ही एकमात्र नेविगेशन सिस्टम है. रूस के ग्लोनास और यूरोप के गलीलियो भी ऐसे ही सिस्टम हैं. चाइना के पास बीडाउ है. लेकिन अमेरिका की तुलना में इनके सैटेलाइट की संख्या कम है. आप इनके बारे में यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

GPS Spoofing क्या है?

GPS के उपग्रह दुनिया-जहान के नागरिकों और अमेरिकी सेना दोनों के लिए PRN (pseudo-random-noise code) कोड प्रसारित करते हैं. PRN कोड मतलब एक जगह से दूसरी जगह जाने का सिग्नल जो स्मार्टफोन से लेकर दूसरे डिवाइस में रिसीव होता है. अब सेना को भेजे गए कोड तो एन्क्रिप्टेड होते हैं, लेकिन नागरिकों से लेकर हवाई जहाजों को भेजे गए कोड के साथ ऐसा नहीं होता.

आपके मन में सवाल होगा कि सेना वाले कोड हवाई जहाज में क्यों नहीं इस्तेमाल होते. क्योंकि हर देश का एविएशन सिस्टम अलग है, इसलिए ऐसा करना फिलहाल संभव नहीं. फ्लाइट के GPS से जुड़ी तमाम जानकारी सार्वजनिक होती है. कई सारे ऐप्स से भी इसको देखा जा सकता है. हैकर इन्ही कोड में सेंध लगाते हैं.

वापस आते हैं GPS स्पूफिंग पर. "स्पूफिंग" शब्द का अर्थ है नकल करना. GPS स्पूफिंग करके रियल लोकेशन को ओवरराइड करते हुए "नकली" जानकारी रिसीवर को भेजी जाती है. चूंकि GPS सिग्नल अक्सर कमजोर होते हैं और उपग्रहों के माध्यम से प्रसारित होते हैं तो एक हैकर के लिए इसमें सेंध लगाना मुश्किल नहीं है. हालांकि इसके लिए एक बेहद ताकतवर और महंगे रेडियो ट्रांसमीटर की जरूरत होती है.

हैकर सबसे पहले यह पता करता है कि कि जिस विमान को टारगेट करना है, उसके आसपास कौन सा GPS उपग्रह होगा. हैकर इस उपग्रह के लिए एक नया कोड जनरेट करता है जिसे आसपास से जाते हुए विमान रिसीव करते हैं. 

नकल पता चल गई. अब जानते हैं कि इससे हो क्या सकता है।

# कार्गो शिपमेंट चुराने के लिए: अक्सर कार्गो शिप में GPS-सक्षम ताले का इस्तेमाल होता है जो केवल अपनी मंजिल तक पहुंचने पर ही ओपन हो सकता है. लेकिन GPS स्पूफिंग इन्हें अनलॉक कर सकता है.

# समुद्री डकैती: बड़े मालवाहक जहाज, क्रूज जहाज, नौकाएं और निजी नावें समुद्र में नेविगेट करने के लिए GPS पर ही निर्भर हैं. इनको भटका कर कुछ भी किया जा सकता है, जैसे अपहरण.

# हवाई अड्डों पर GPS के साथ हस्तक्षेप: इससे विमान अपने रास्ते से भटक सकता है या उसे "ब्लाइंड" लैंडिंग का प्रयास करना पड़ सकता है, जिससे विमान में सवार सभी लोग जोखिम में पड़ सकते हैं.

# इसके साथ कारों को गलत दिशा में ले जाने से लेकर मोबाइल ऐप्स और वेबसाइटों को गलत डेटा दिया जा सकता है.

बचने का तरीका क्या है?

# डिकॉय एन्टीना लगाना: इस एन्टीना की वजह से सिर्फ असल सिग्नल ही दिखते हैं.

# स्पूफिंग की जगह को मार्क करना: चूंकि GPS स्पूफिंग ऐसी जगह से ज्यादा हो सकती है जहां उपग्रह धरती के बहुत नजदीक होते हैं, इसलिए इनको मार्क करके भी इससे बचा जा सकता है.

# GPS बंद रखकर: इस तरीके का भी इस्तेमाल खूब होता है. लंबी दूरी तय करते समय जब इसकी जरूरत नहीं होती तो ऐसे उपकरणों को बंद कर दिया जाता है.

अच्छी बात ये है कि GPS स्पूफिंग से अभी तक विमानों के साथ कोई घटना नहीं घटी है, लेकिन ऐसा होना चिंता का सबब तो है. वैसे ऐसा नहीं है कि इस तकनीक का गलत ही इस्तेमाल होता है. कुछ काम के काम भी होते हैं. इसी तकनीक का इस्तेमाल करके बड़े राजनेताओं की सेफ़्टी सुनिश्चित की जाती है. कई बार बड़ी-बड़ी कंपनियां भी अपने महंगे शिपमेंट को सुरक्षित रखने के लिए भी इस तकनीक का इस्तेमाल करती हैं.

वीडियो: साइंसकारी: मोबाइल लोकेशन निकालने वाला GPS कैसे काम करता है?