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गूगल ने आपको Dark Web से बचाने की पहल की है, ताकि प्राइवेसी बाजार में नीलाम ना हो

गूगल डार्क वेब रिपोर्ट फीचर अभी तक सिर्फ अमेरिका में मिलता था, मगर अब भारतीय यूजर्स भी इसका लाभ ले पाएंगे.

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डार्क वेब पर गूगल की पहल (तस्वीर: पिक्सेल)

डार्क वेब. इंटरनेट की दुनिया का वो हिस्सा जिसके बारे में बात करने से भी लोग बचते हैं. वजह शायद आपको पता होगी. गूगल क्रोम से लेकर माइक्रोसॉफ्ट एज और दूसरे ब्राउजर के सहारे या फिर किसी और तरीके से जो इंटरनेट का ब्लैक एण्ड व्हाइट मायाजाल आप और हम देखते हैं, वो इंटरनेट का एक बहुत ही छोटा हिस्सा है. इससे इतर एक और काली दुनिया है जिसे डार्क वेब कहते हैं.

इंटरनेट की अंधेरी और खतरनाक दुनिया जहां ड्रग्स, हथियार, चाइल्ड पोर्न, लोगों की निजी जानकारी सिर्फ एक क्लिक पर उपलब्ध है. लेकिन आज हम इसकी बात करेंगे क्योंकि टेक दिग्गज गूगल ने इसके खतरे से निपटने की एक पहल की है. उस पहल के बारे में बात करेंगे. मगर पहले जरा डार्क वेब पर बात कर लेते हैं.

क्या है डार्क वेब?

इंटरनेट की दुनिया के तीन हिस्से हैं.

# सरफेस वेब- मतलब वो हिस्सा जो हर यूजर के लिए खुला हुआ है. मसलन गूगल, एमेजॉन, फ़ेसबुक या खुद The Lallantop. देखने में ये भले बहुत बड़ा लगे, लेकिन ये इंटरनेट का महज 5 फीसदी है.

# डीप वेब: मतलब वो हिस्सा जो यूजर्स से लेकर किसी संस्थान की निजी प्रॉपर्टी है. उदाहरण के लिए, आपके ईमेल का इनबॉक्स या नेट बैंकिंग. इसको एक्सेस करने के लिए जाहिर तौर पर यूजर नेम और पासवर्ड चाहिए होगा. इसकी हिस्सेदारी 90 फीसदी है.

# डार्क वेब: गुणा-गणित आपने लगा लिया होगा. ये हिस्सा है तो महज 5 फीसदी, मगर असली गंदगी यही मचती है. वैध और अवैध दोनों कामों के लिए इस्तेमाल होता है डार्क वेब. वैध मतलब जब एथिकल हैकर्स से लेकर सरकारी एजेंसियां तक यहां से डेटा एक्सेस करती हैं. 

बात करें अवैध की तो लिस्ट लंबी है. ब्लैक मार्केट से लेकर ड्रग्स का कारोबार यहीं होता है. दुनिया जहान से चुराए हुए डेटा का दाम भी यहीं लगाया जाता है तो साइबर अपराधी (हैकर्स) से लेकर अवैध हथियार बेचने वाले यहीं टहलते हैं. डार्क वेब की इस दुनिया में कोई कानून भी नहीं होता क्योंकि इनका एक्सेस VPN से लेकर दूसरे सेफ सर्वर्स से होता है. हमारी कहानी का हीरो या कहें विलेन यही डार्क वेब है.

सांकेतिक इमेज
डार्क वेब की चाबी कहां होती है?

क्रोम और एज से लेकर सारे आधिकारिक ब्राउजर भूल जाइए. यहां से डार्क वेब का ताला नहीं खुलता. इसके लिए कुछ खास किस्म के ब्राउजर की जरूरत होती है जिनका जिक्र हम यहां करने से रहे. क्योंकि इस गली जाना ही नहीं है. वैसे आपकी जानकारी के लिए बताते चलें कि डार्क वेब की शुरुवात 1990 के आखिर में अमेरिकी नेवल रिसर्च के तीन शोधकर्ताओं David Goldschlag, Mike Reed और Paul Syverson ने की थी. 

मकसद तो इंटरनेट की एक ऐसी दुनिया बनाना था जहां यूजर्स अपनी पहचान बताए बगैर काम कर सकें. साल 2006 में इसके लिए एक ब्राउजर भी बना. अब लोग बहुत आसानी से अपनी पहचान जाहिर किए बिना इंटरनेट की दुनिया में काम कर सकते थे. लेकिन कहते हैं ना, जहां मिठास होती है मक्खियां भी वहीं भिनभिनाती हैं. यहां मक्खियां का रोल हैकर्स से लेकर साइबर अपराधियों ने अदा किया है.  

ये ब्राउजर भी गूगल और दूसरे सर्च इंजन जैसे काम करता है. लेकिन यहां आम जानकारी नहीं होती. काले कारोबार का असल ठिकाना होता है. अब तक आपको लग रहा होगा कि भाई ये तो बहुत खतरनाक जगह है, लेकिन यहां आना गैर कानूनी नहीं है.

लेकिन ऐसा तब तक है जब तक कि आप यहां तफरी मार रहे हैं. मतलब घूम-घाम रहे और कोई फर्जी काम नहीं कर रहे. इस तकनीक को ‘ओनियन राउटिंग’ के नाम से भी जाना जाता है. ये नाम इसलिए क्योंकि यहां पहचान प्याज की परतों की तरह बहुत अंदर होती है. मतलब पहला हिस्सा अगर एक देश में तो दूसरा वहां से हजारों किलोमीटर दूर किसी और देश में. मतलब कनेक्शन रूट पर रूट होता है और उसकी असल जड़ कभी नहीं मिलती. डार्क वेब की वेबसाइट का यूआरएल भी इसी से खत्म होता है. लेकिन… 

अपने स्मार्टफोन को जोर से पकड़ लीजिए. क्योंकि अब जो बताने जा रहे, उसके बाद शायद आपको झटका लगे. इस ब्राउजर का इस्तेमाल अमेरिकी रक्षा विभाग से लेकर बीबीसी और न्यूयार्क टाइम्स जैसे बड़े मीडिया संस्थान भी करते हैं. कई सारे व्हिसल ब्लोअर्स भी इसका इस्तेमाल करते हैं. वजह, पहचान जाहिर नहीं होती और सेफ भी है. पहले यहां लेनदेन गोल्ड से लेकर ड्रग्स और हथियारों में होता था, लेकिन आजकल बिटकॉइन और क्रिप्टो करेंसी का जलवा है.

वैसे यहां होने वाली गतिविधियों पर सरकारी एजेंसियों की भी बराबर नजर होती है और कई बार अगर उनके हाथ कुछ लगता है तो उस पोर्टल को ब्लॉक भी किया जाता है. यहीं से चाइल्ड पोर्न का रैकेट चलाने वाला स्टीवन चेज धरा गया था, जिसे बाद में 30 साल की सजा भी हुई. ऐसे और भी उदाहरण हैं. 

डार्क वेब के बारे में सब कुछ बताना लगभग असंभव है, फिर भी काम की बातें हमने आपको बता दी हैं. बस इतना और जान लीजिए कि यहां कभी भूलकर भी नहीं जाना है. ये वन-वे है. यहां दाखिल होना तो आसान है, मगर बाहर निकलना नामुमकिन. यहां ब्राउजर में कोई बैरीयर होता ही नहीं है. इधर आप दाखिल हुए उधर आपका सिस्टम हैकर्स के कब्जे में. आगे सब बहुत भयावह है तो जिक्र करने की भी जरूरत नहीं.

डार्क वेब वन वे रास्ता है

आपके मन में कुलबुली होगी कि भैया यहां तक ले आए, मगर इसमें गूगल बाबा कहां फिट होंगे. दरअसल गूगल बाबा फिट होंगे आपकी निजी जानकारी में. दुनिया में जितना भी डेटा हैक होता है, मसलन आपके फोन के कॉन्टैक्ट से लेकर आपकी तस्वीरें-वीडियो, सब डार्क वेब पर बिकता है. आम आदमी को कैसे पता चलेगा कि कहीं उसके साथ तो ऐसी कोई अनहोनी नहीं हुई है.

गूगल ने इसका बीड़ा उठाया है. Dark Web Report Feature आपको इसके बारे में अलर्ट करेगा और आपका डेटा वहां से हटाने में मदद भी. आपको अपने गूगल वन अकाउंट में इसके लिए एक प्रोफ़ाइल बनानी होगी. मसलन, आप कौन से डेटा का अलर्ट चाहते हैं- जन्म तारीख, लिंग, धर्म, देश, स्मार्टफोन डेटा वगैरा-वगैरा. अगर डेटा ब्रीच हुआ तो आपको नोटिफिकेशन मिलेगा. आपको लगेगा ये कौन सा बड़ा तीर मार लिया. जनाब एक बार Have i been pwned वेबसाइट पर सिर्फ अपना ईमेल एंटर कीजिए. वेबसाइट बताएगी कि फलां वेबसाइट या सर्विस में आपका ईमेल और पासवर्ड कंप्रोमाइज हुआ था. माने कि जब भी किसी ऐप का डेटा हैकर्स के हाथ लगा था तो आपका ईमेल और उस वेबसाइट पर आपका पासवर्ड भी लीक हुआ था. लेकिन ये सब थर्ड पार्टी जुगाड़ हैं. इसीलिए गूगल की एंट्री मायने रखती है. 

आखिरी लाइन. अगर बात आपकी और हमारी निजी जानकारी के भरे बाजार में नीलाम होने की है, तो महीने के चंद रुपये खर्च करने में कोई संदेह ही नहीं है. इसका तियां-पांचा भी यहीं क्लिक करके जान लीजिए. ये फीचर जैसे ही लाइव होगा, उसका वीडियो लेकर हाजिर होंगे.

नोट: डार्क वेब से जुड़ी जानकारी आईएमएफ़, यूरो न्यूज जैसे सोर्स से जुटाई गई है.

वीडियो: गूगल मैप्स ने ऐसा क्या किया कि सबकी पर्सनल जानकारी बड़े ख़तरे में आ गई?