ये सवाल सुनने में जितना आसान लगता है, इसका जवाब ढूंढना उतना ही मुश्किल काम है. इसी सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करेंगे, साइंसकारी के इस ऐपिसोड में.
सबसे पहले ये बता देते हैं कि ये बहस दोबारा शुरू कैसे हुई? रेस बाद में लगाना, पहले फिनिशिंग लाइन बताओ 11 जुलाई 2021 को रिचर्ड ब्रैनसन स्पेस में गए. अपनी कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक के स्पेसक्राफ्ट में. पहले जेफ बेज़ोस ने घोषणा की थी कि वो अंतरिक्ष में जाएंगे. लेकिन ब्रैनसन बाज़ी मार ले गए. वह जेफ बेज़ोस से पहले स्पेस में चले गए. बेज़ोस की कंपनी ब्लू ओरिजिन ने दावा किया कि ब्रैनसन अंतरिक्ष में गए ही नहीं, वो तो कारमान लाइन (स्पेस की बाउंड्री) से पहले ही लौट आए. 20 जुलाई 2021 को जेफ बेज़ोस अपनी कंपनी ब्लू ओरिजिन के स्पेसक्राफ्ट में गए. और उस बाउंड्री को पार करके वापस लौटे.
इन कंपनियों की आपसी छीछालेदर से इस बहस ने दोबारा ज़ोर पकड़ लिया है कि पृथ्वी और अंतरिक्ष की सीमा कहां है? हमारे एक व्यूअर ने भी कमेंट सेक्शन में लिखा, ब्रैनसन ने कारमान लाइन को क्रॉस नहीं किया है. इसलिए टेक्निकली वो स्पेस में पहुंचे ही नहीं. तो पहले हम ये समझने की कोशिश करते हैं कि ये कारमान लाइन क्या है? और पृथ्वी-अंतरिक्ष की सीमा को कैसे डिफाइन किया गया है.

कुछ भी ब्लैक एंड व्हाइट नहीं होता अंतरिक्ष कहां से शुरू होता है, इसके ऊपर दुनिया में कोई एक मत नहीं है. भिन्न-भिन्न देश और भांति-भांति की संस्थाएं अलग-अलग बाउंड्री बताते हैं. लेकिन ये सभी लोग एक डेफिनेशन पर राज़ी हैं. वो ये कि अंतरिक्ष वहां से शुरू होता है, जहां पृथ्वी का वायुमंडल खत्म होता है. अब दिक्कत ये है कि पृथ्वी का वायुमंडल किसी एक जगह अचानक खत्म नहीं होता, वो धीरे-धीरे लुप्त होता है.
पृथ्वी का वायुमंडल बहुत सारी गैसों से मिलकर बना है. बाकी चीज़ों की तरह गुरुत्वाकर्षण इन गैसों को पृथ्वी से जोड़े रखता है. हम समुद्रतल से जितना ऊपर जाते हैं, गुरुत्वाकर्षण उतना कमज़ोर होता जाता है. इसलिए ऊंचाई पर धीरे-धीरे हवा पतली होने लगती है, क्योंकि इन गैसों की मात्रा कम होने लगती है.

इस बात पर कहीं भी एक राय नहीं है कि अंतरिक्ष की सीमाएं कहाँ तक हैं, हर देश के हिसाब से इसकी सीमाएं अलग हैं.
समुद्रतल से 32 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच वायुमंडल की 99% हवा मौजूद है. 32 किलोमीटर से लेकर 1000 किलोमीटर के बीच बाकी बची 1% हवा है. अगर हम एक ऐसी बाउंड्री डिसाइड करते हैं, जहां हवा का एक भी कण मौजूद न हो, वो 1000 किलोमीटर के करीब होगी. लेकिन प्रैक्टिकली ऐसा करना मुमकिन नहीं है.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन समुद्रतल से लगभग 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करता है. हबल स्पेस टेलिस्कोप 500 किलोमीटर की ऊंचाई पर है. कई सारी सैटेलाइट्स इस 1000 किलोमीटर की बाउंड्री के नीचे ही परिक्रमा कर रही हैं. इसलिए 1000 किलोमीटर को स्पेस की बाउंड्री कहते ही ये सभी सैटेलाइट्स न होकर एयरक्राफ्ट हो जाएंगी. और फिर बहुत दिक्कत हो जाएगी.

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन समुद्रतल से लगभग 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करता है.
ऐसे तो हम पृथ्वी और अंतरिक्ष की कोई सीमा तय ही नहीं कर पाएंगे? नहीं, इसका एक उपाय है. इस उपाय का नाम है कारमान लाइन. कारमान लाइन FAI यानी ‘फेडरेशन एयरोनॉटिक इंटरनेशनेल’ नाम की एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है. ये संस्था ह्यूमन स्पेसफ्लाइट के मानक तय करती है. इनके हिसाब से अंतरिक्ष समुद्रतल से करीब 100 किलोमीटर ऊपर शुरू होता है. इस काल्पनिक रेखा को कारमान लाइन कहा जाता है. अधिकतर देश इसी कारमान लाइन को पृथ्वी और अंतरिक्ष की सीमा मानते हैं. इसके पीछे क्या लॉजिक है?
कारमान लाइन का नाम थियोडोर वॉन कारमान के ऊपर रखा गया है. थियोडोर वॉन कारमान एक फिज़िसिस्ट और एयरोस्पेस इंजीनियर थे. इन्होंने 1957 में वो लिमिट पता करने की कोशिश की, जिसके ऊपर कोई वायुयान नहीं उड़ पाएगा.

फिज़िसिस्ट और एयरोस्पेस इंजीनियर थियोडोर वॉन कारमान ने 1957 में वो लिमिट पता करने की कोशिश की, जिसके ऊपर कोई वायुयान नहीं उड़ पाएगा.
वायुयान हवा के सहारे उड़ते हैं. फिज़िक्स में इसे एयरोडायनेमिक लिफ्ट कहा जाता है. जैसा कि पहले बताया, समुद्रतल से ऊंचाई बढ़ने के साथ हवा पतली होती जाती है. एक तय ऊंचाई पर जाकर हवा इतनी पतली हो जाती है, कि वहां किसी एयरक्राफ्ट का उड़ना मुश्किल हो जाता है. वॉन कारमान ने गणित की मदद से ये ऊंचाई निकालनी चाही. इसी काल्पनिक सीमा को कारमान लाइन कहा जाता है.
अधिकतर वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि कारमान लाइन को अंतरिक्ष की शुरुआत माना जा सकता है. लेकिन कारमान लाइन कहां होगी, इसके ऊपर एकमत नहीं हैं. कारमन लाइन में लोचा FAI ने 1960 में कारमान लाइन की ऊंचाई 100 किलोमीटर फिक्स कर दी. लेकिन ये एक विवादित फैसला था. जानकारों के मुताबिक FAI ने कारमान लाइन की ऊंचाई विज्ञान की जगह वकालत से फिक्स की. वॉन कारमान ने खुद अपने कैल्कुलेशन से 83.5 किलोमीटर की लिमिट निकाली थी.
साठ के दशक में यूएस और सोवियत रूस के बीच स्पेस रेस चरम पर थी. तब अमेरिका और रूस के प्रतिनिधिमंडल इस कॉम्प्रोमाइज़ पर पहुंचे कि 100 किलोमीटर को स्पेस की सीमा बनाना सही रहेगा. ये 100 किलोमीटर की वैल्यू किसी मैथमेटिक्स की मदद से नहीं निकाली गई थी. बल्कि इसे इसलिए चुना गया था ताकि लोगों को याद रखने में आसानी हो.
2018 में हार्वर्ड-स्मिथसॉनिअन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिज़िक्स में एक पेपर पब्लिश हुआ. ये पेपर प्रकाशित करने वाले वैज्ञानिक का नाम है जॉनाथन सी मैकडॉवल. उनके मुताबिक, 100 किलोमीटर को इसलिए चुना गया था क्योंकि ये एक अच्छा राउंड फिगर है. लेकिन यहां फिज़िकल साइंस के नज़रिए से देखने की ज़रूरत है. मैकडॉवल ने वातावरण की अलग-अलग परतों को स्टडी किया. इस नतीजे पर पहुंचे कि स्पेस बाउंड्री की ज़्यादा सही वैल्यू 80 किलोमीटर होगी.

हंगामा है क्यों बरपा? अमेरिकी संस्थान जैसे कि फेडरल एविएशन एड्मिनिस्ट्रेशन, य़ूएस एयरफोर्स, NOAA औऱ NASA आमतौर पर 80 किलोमीटर को बाउंड्री मानते हैं. इसके ऊपर जाने वालों को अमेरिकी एयरफोर्स एस्ट्रोनॉट विंग्स का खिताब देती है. रिचर्ड ब्रैनसन 85 किलोमीटर को छूकर लौट आए थे. इसलिए इनके हिसाब से ये एस्ट्रोनॉट कहलाएंगे. FAI की कारमान लाइन की परिभाषा के हिसाब से नहीं.
अमेरिका में ही नासा का मिशन कंट्रोल 122 किलोमीटर को अंतरिक्ष की शुरुआत मानता है. तो जितने देश, उतनी संस्थाएं और उतनी ही परिभाषाएं. मत इनके नहीं मिलते, सिलेबस यूपीएससी वालों का बढ़ता है.
आप कहेंगे, क्या माथापच्ची है महाराज? कोई भी स्पेस की बाउंड्री रही आए, अपन को इससे क्या लेना देना? हमको कौन सा स्पेस में जाना है? आम आदमी का इससे बहुत कुछ लेना-देना है मितरों. आखिर देश की सुरक्षा का सवाल है. वो कैसे? शांति का बीमा है अंतरिक्ष की सीमा 1967 में अंतरिक्ष को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय संधि बनी. नाम है आउटर स्पेस ट्रीटी. इसके मुताबिक अंतरिक्ष हर किसी के लिए खुला है. हर देश पूरी आज़ादी के साथ अंतरिक्ष के किसी भी हिस्से में घूम-फिर सकता है.
अब मान लीजिए, अमेरिका और चीन अंतरिक्ष की अलग-अलग बाउंड्री मानते हैं. अमेरिका 80 किलोमीटर मानता है. और चीन 100 किलोमीटर मानता है. अमेरिका चीन की ज़मीन से 90 किलोमीटर की ऊंचाई पर कोई यान उड़ाएगा, उनके हिसाब से वो स्पेस में होगा. लेकिन चीन के हिसाब से वो यान उनके वायुक्षेत्र में होगा. अमेरिका जिसे अंतरिक्षयान कहेगा, चीन उसे वायुयान कहेगा.

यहां एक पेच है. अंतरिक्ष सब लोगों के लिए खुला है. लेकिन ये छूट एयरस्पेस के लिए नहीं है. हर देश का अपना वायुक्षेत्र होता है. अगर वहां किसी दूसरे देश का एयरक्राफ्ट बिना इजाज़त घुसेगा, तो उसे खतरा मान लिए जाएगा. हमारे जबलपुरिया लहज़े में कहें तो मैटर फंस जाएगा.
ऐसे मैटर न फंसे, इसके लिए ये ज़रूरी है कि सभी देश के वैज्ञानिक मिल-बैठकर एक फाइनल बाउंड्री डिसाइड कर लें.