कुछ दिनों पहले एक स्मार्टफोन के बारे में बताते हुए मैंने लिखा था कि ये कोई रीव्यू नहीं है बल्कि मेरा अनुभव है. मेरा अनुभव अच्छा या बुरा हो सकता है, मगर ये कोई ब्रह्म वाक्य नहीं है इस प्रोडक्ट को पसंद या नापसंद करने का. रीव्यू शब्द का इस्तेमाल नहीं करने के लिए मुझसे कई लोगों ने सवाल भी किए क्योंकि परिपाटी से अलग जो चला था. अब दुनिया के सबसे बड़े टेक एक्सपर्ट ने भी इस शब्द को ओवर रेटेड और बेजा इस्तेमाल वाला बताया है. उन्होंने अपने वीडियो में रीव्यू करने वालों और कंपनियों की कलई खोल दी है.
रीव्यू के नाम पर प्रोडक्ट्स की हवा बनाने वालों की असली सच्चाई इस बंदे ने सामने रख दी!
MKBHD ने खराब रीव्यू और अच्छे रीव्यू के कंपनी पर होने वाले असर पर खरी बात कही है. उन्होंने 'रीव्यू' शब्द को ओवर रेटेड और बेजा इस्तेमाल वाला बताया है. दरअसल, कुछ दिनों पहले मार्कस ने अपने चैनल पर Humane AI pin का रीव्यू पोस्ट किया था. उन्होंने अपने वीडियो में प्रोडक्ट को सिर्फ बुरा ही नहीं बताया बल्कि अच्छे से रगड़ ही दिया.
टेक एक्सपर्ट का नाम Marques Brownlee है और चैनल का नाम MKBHD. इससे ज्यादा इनके परिचय की जरूरत नहीं इसलिए सीधे उस बात की बात करते हैं जो इन्होंने अपने वीडियो में कही है. हां, जो आपको लगे कि पहले पैरा में मैंने थोड़ा शो-ऑफ किया है तो एकदम सही. बड़े और बहुत बड़े लोगों से जब आपकी सोच मिले तो खुश होने में कोई बुराई नहीं. अब शो-ऑफ बंद और मार्कस के वीडियो पर बात करते हैं.
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दरअसल, कुछ दिनों पहले मार्कस ने अपने चैनल पर Humane AI pin का रीव्यू पोस्ट किया था. उन्होंने अपने
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मगर जब प्रोडक्ट लॉन्च हुआ और लोगों ने इस्तेमाल किया तो सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया. तकरीबन हर बड़ा नाम इस प्रोडक्ट से बिल्कुल ही प्रभावित नहीं हुआ. जितना हमें समझ आया, हमारा भी कुछ ऐसा ही मानना है. डिटेल में नहीं बताते लेकिन सिर्फ इतना जान लीजिए कि इस डिवाइस के लिए पहले तो 55,500 रुपये के लगभग खर्च करने होंगे, उसके बाद 1800 रुपये महीने का सब्सक्रिप्शन लेना होगा. ये तो छोटा दर्द है क्योंकि असल दुख ये है कि इस डिवाइस की सिम अलग होगी. मतलब एक नया नंबर. आगे कुछ बोलने की जरूरत ही नहीं.
मार्कस ने प्रोडक्ट के धागे खोल दिए. नतीजा Humane AI pin का अब किसी कपड़े में खोंसा जाना हाल-फिलहाल बड़ा मुश्किल लग रहा है. लेकिन लगता है जैसे इस वीडियो के बाद उनको कुछ दिक्कत हो रही है जिसके बाद उन्होंने एक और वीडियो ‘Do Bad Reviews Kill Companies’ के नाम से
जैसे हमने कहा कि उन्होंने रीव्यू शब्द को ओवर रेटेड और बेजा इस्तेमाल वाला बताया. मैं इससे पूरा सहमत हूं. उन्होंने एक बड़ी मारक लाइन बोली. कहा,
ज्यादातर प्रोडक्ट के लिए कोई खास दिलचस्पी नहीं होती लेकिन वो होते हैं और ठीक-ठाक होते हैं.
इससे भी सहमत क्योंकि मुझे तो वाकई याद नहीं कि किसी प्रोडक्ट को लेकर पिछले कई सालों में पब्लिक में पागलपन देखा गया हो. कई सालों पहले जब पहला आईफोन लॉन्च हुआ था तब जरूर ऐसा कुछ दिखा था. प्रोडक्ट आते हैं, रहते हैं और जाते भी हैं. Humane AI pin ने भी बढ़िया माहौल बनाया था लेकिन निराशा होने पर बताना तो पड़ेगा. लेकिन मार्कस ने एक बहुत सही बात कही. किसी प्रोडक्ट के खराब रीव्यू से कंपनी पर कोई फर्क नहीं पड़ता, बशर्ते प्रोडक्ट अच्छा हो. प्रोडक्ट में दम नहीं तो कितना भी अच्छा बोल लो.
ये पब्लिक है और वो सब जानती है
उन्होंने इसको लेकर अपने ही दो उदाहरण दिए. पहले एक फोन का जिसकी वाईब्रेशन मोटर बकवास थी, लेकिन बाकी प्रोडक्ट अच्छा था. कंपनी ने उसको अगले मॉडल में ठीक किया. एक कार कंपनी का भी उदाहरण दिया जो कथित तौर पर उनके रीव्यू के बाद दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई. लेकिन इसमें रीव्यू का कम और प्रोडक्ट के फीचर्स का ज्यादा योगदान था.
वीडियो का लुब्ब-ए-लुबाब ये कि एक अच्छा और एक बुरा रीव्यू कपार पर लिखी लाइन नहीं बदलेगा. कंपनियों को बड़ा संदेश कि प्रोडक्ट के बारे में अच्छा-अच्छा लिखने के लिए दबाव नहीं डालें. अच्छा प्रोडक्ट बनाओ. पब्लिक आपको सर आखों पर रखेगी.
अंत में दो बातें. पहली जैसे हमारे पूर्व सनिमा एडिटर मुबारक कहते हैं
फिल्म, रीव्यू करके नहीं बल्कि देखकर समझो
दूसरी जो मेरे पिता जी कहते हैं
सिखाए पूत दरबार नहीं जाते
बाकी आपका क्या कहना है, हमें जरूर बताएं.
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