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स्कूलों में बम के ईमेल भेजने वाले का IP एड्रेस मिला, अपराधी इसको छिपाते कैसे हैं?

आज IP Address का पूरा पता करेंगे जिसके बिना इंटरनेट की दुनिया इंच भर भी नहीं हिलती है. ये एड्रेस भी उतना ही जरूरी है, जितना हमारे दफ्तर और घर का एड्रेस. लेकिन क्या ये सिर्फ अपराधियों के पास होता है या आम इंसान के पास भी, सब बताते हैं.

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क्या है IP एड्रेस? (फोटो: इंडिया टुडे)

Delhi-NCR के लगभग 50 स्कूलों को बम की धमकी वाले ईमेल मिले. इसके बाद दिल्ली पुलिस, बम निरोधक दस्ते, दमकल की टीम्स और डॉग स्क्वाड अलग-अलग स्कूलों में पहुंचे. स्कूलों की पूरी तरह तलाशी ली गई और खबर लिखे जाने तक कुछ भी बरामद नहीं हुआ है. अभी तक अपडेट ये है कि भेजने वाले का IP एड्रेस भारत के बाहर रूस से है. ऐसे में दिमाग में ये सवाल आना लाजमी है कि ये IP Address आखिर कौन सा पता है, जिसकी चर्चा कई अपराधों में खूब होती है? किसके पास होता है ये एड्रेस?

आज इसी पते का पूरा पता करेंगे जिसके बिना इंटरनेट की दुनिया इंच भर भी नहीं हिलती है. ये एड्रेस भी उतना ही जरूरी है, जितना हमारे दफ्तर और घर का एड्रेस. लेकिन क्या ये सिर्फ अपराधियों के पास होता है या आम इंसान के पास भी, सब बताते हैं.

क्या है IP एड्रेस?

IP मतलब Internet Protocol Address. एकदम वैसे ही जैसे आपके और हमारे पते होते हैं. जैसे आम जिंदगी में To और From होता है वैसे ही इंटरनेट पर IP एड्रेस होता है. डाकिया के हाथ में चिट्ठी तो होती है लेकिन अगर उस पर पता नहीं हुआ तो वो जाएगी कहां, वैसे ही अगर ईमेल के पास कोई पता नहीं तो वो डिलीवर कैसे होगा. यहीं काम आता है आईपी एड्रेस. डिवाइस आपका कोई सा भी हो, मसलन लैपटॉप, डेस्कटॉप, स्मार्टफोन या फिर कोई भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस. सभी के पास एक युनीक आईपी एड्रेस होता है. दस अंकों का पता जो 125.82. जैसे नंबरों से स्टार्ट होता है. गूगल पर माई आईपी एड्रेस टाइप करेंगे तो आपको अपने डिवाइस का एड्रेस फड़फड़ाता नजर आ जाएगा.

सांकेतिक तस्वीर 
कितनी तरह का होता है?

स्टेटिक और डायनमिक. दोनों के नाम का हिन्दी तर्जुमा करें तो इनके अर्थ में ही भाव छिपा हुआ है. स्टेटिक मतलब ऐसा आईपी एड्रेस जो बदलता नहीं. आम तौर पर कंपनियों से लेकर संस्थानों और वेबसाइट्स का पता स्टेटिक होता है. मसलन हमारे ऑफिस का या फिर गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर सहित सभी वेबसाइट्स का. डायनामिक मतलब, निजी इस्तेमाल वाला जैसे घर के वाईफाई का पता जो डिवाइस रीबूट होते ही बदल जाता है. हालांकि, बदले जाने पर भी इसका पता उनको होता है जिन्हें होना चाहिए.

IP एड्रेस से लोकेशन ट्रेस हो सकती है?

नहीं, एकदम नहीं. अगर कोई आपसे ऐसा कहता है तो झूठ बोल रहा है. हालांकि, आईपी एड्रेस उस डिवाइस का पता जरूर है मगर इनकी संख्या अरबों में है. तो अगर आपको किसी का आईपी एड्रेस पता भी है तो भी लोकेशन ट्रेस नहीं होगी. अब आप कह सकते हो कि फिर पुलिस को कैसे पता चलता है. जनाब वो पुलिस और एजेंसियां हैं. आईपी एड्रेस से लोकेशन पता करने के लिए ISP मतलब इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर की जरूरत होती है. हर ISP मतलब वो कोई भी हो जैसे एयरटेल, जियो, बीएसएनएल उनके पास ऐसे सिस्टम होते हैं जो आईपी एड्रेस का असल पता बता सकते हैं. तो आम लोगों के लिए ऐसा करना लगभग असंभव. हां, एजेंसी के लिए एकदम आसान. इसलिए पुलिस से लेकर दूसरी एजेंसीज सबसे पहले इसी पते का पता निकालती हैं.

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क्या IP एड्रेस छिपा सकते हैं?

हां, एकदम हां. अगर कोई आपसे कहे कि इसको छिपाना असंभव है तो वो आपसे झूठ बोल रहा है. आप अपने डिवाइस का आईपी एड्रेस छिपा सकते हैं. या उसकी लोकेशन बदली जा सकती है. इसके लिए VPN मतलब Vertual Private Network का इस्तेमाल करना होगा. मुमकिन है कि इस केस में भी कुछ ऐसा ही किया गया हो. मतलब भारत में बैठकर रूस की लोकेशन. कुछ ऐप्स और वेबसाइट्स भी ऐसा फीचर देते हैं. कारण जगजाहिर है. ताकि आपकी एक्टिविटी का पता विज्ञापन देने वाली वेबसाइट्स को नहीं मिले. मसलन अभी कुछ महीने पहले वॉट्सऐप ने ऐसा किया है. अब फिर एक सवाल जो आपने वीपीएन लगा लिया तो क्या एजेंसी को पता नहीं चलेगा. बिल्कुल चलेगा जनाब क्योंकि वो भी एक ISP है. पुलिस हेलो बोलेगी और डिटेल हाजिर.

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