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....और स्मार्टफोन किसी काम के नहीं रह जाएंगे? वाकई में!

Neuralink और Kernel जैसी कंपनियां इंसानी दिमाग को समझने में लगी हुई हैं.

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इंसानी दिमाग स्मार्टफोन खत्म कर देगा क्या? (image-pexels)

स्मार्टफोन के बगैर एक मिनट की कल्पना करना भी नामुमकिन है. लेकिन अगर हम कहें कि अगले कुछ सालों में स्मार्टफोन खत्म हो जाएंगे तो. हमारी बात आपको शायद गप लगे लेकिन कई लोगों का दावा है कि एलन मस्क (Elon Musk) ऐसा करने वाले हैं. ठीक पढ़ा आपने. एलन मस्क का बस चला और तो कुछ सालों में स्मार्टफोन का नामों निशान मिट जाएगा.

अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि ट्विटर को खरीदने के बाद आखिर ये कौन सा नया शिगूफ़ा छोड़ा है एलन मस्क ने. जब स्मार्टफोन नहीं होंगे तो आखिर होगा क्या. ये सब जानने के लिए पहले आपको टेक्नोलॉजी की दुनिया की नामी कंपनी नोकिया का रुख करना पड़ेगा. हम यहां पर नोकिया स्मार्टफोन ब्रांड की बात नहीं कर रहे. यहां चर्चा हो रही है नोकिया कंपनी जो नेटवर्किंग की दुनिया से वास्ता रखती है.

दरअसल, Nokia के सीईओ Pekka Lundmark का मानना है कि साल 2030 तक 6जी टेक्नोलॉजी शुरू हो चुकी होगी, लेकिन तब तक स्मार्टफोन 'कॉमन इंटरफेस' नहीं होंगे. उन्होंने ये बात World Economic Forum में कही. पेक्का लुंडमार्क ने कहा कि कॉमर्शियल मार्केट में 2030 तक 6जी की एंट्री हो जाएगी. 6जी मतलब ऐसी स्पीड जो आपकी कल्पना से भी परे होगी. Mbps और Gbps भूल जाइये. स्पीड मिलेगी गीगा हर्ट्ज में. 90 से 3000 GHz तक स्पीड मिलने की उम्मीद है. बता दें कि नोकिया आज भी तमाम तरीके के नेटवर्किंग प्रोडक्टस बनाती है. 6G पर भी काम कर रही है.

क्या बोला है पेक्का लुंडमार्क ने ?

पेक्का लुंडमार्क के मुताबिक, 6G के आने से पहले ही लोग स्मार्टफोन की तुलना में स्मार्ट ग्लासेस और दूसरे डिवाइस को यूज करने लगेंगे. नोकिया सीईओ ने बताया, 'तब तक, हम जिन स्मार्टफोन्स को यूज कर रहे हैं, वे सबसे ज्यादा यूज होने वाले इंटरफेस नहीं रह जाएंगे. इनमें से बहुत सी चीजें हमारी बॉडी में सीधे तौर पर मिलने लगेंगी. वैसे उन्होंने सीधे-सीधे किसी का नाम तो नहीं लिया. लेकिन कई बार इशारे ही काफी होते हैं.

आसान भाषा में कहें तो ऐसे डिवाइस सामने आएंगे जिनको या तो शरीर पर पहना जा सकता है जैसे कि स्मार्टवॉच या स्मार्ट ग्लास. या फिर ये भी संभव है कि माइक्रोचिप/नैनो चिप सीधे हमारे शरीर में डालकर तकनीक का मजा लिया जाए. एक मिनट के लिए मान भी लें कि ये सब पेक्का लुंडमार्क के दिमाग की कपोल कल्पना मात्र है तो फिर गूगल के स्मार्ट ग्लास क्या चीज हैं.

गूगल ग्लास (इमेज-गूगल)

गूगल के सीईओ को भी इन्हें पहने हुए कई बार देखा गया है. कह सकते हैं कि अभी सब प्रारम्भिक दौर में है लेकिन वजूद तो है. पिछले कुछ सालों के ट्रेंड्स को भी गौर से देखें तो एक बात साफ समझ आती है कि सारी कंपनियां हेल्थ से जुड़े उत्पादों पर बहुत ध्यान दे रही हैं. Apple ने तो पिछले कुछ सालों में तमाम ऐसे पेटेंट हासिल किये हैं जिनका बॉडी सेंसर से सीधा रिश्ता है. ब्लड ऑक्सीजन, रेटिना रीडिंग, हार्ट रेट मॉनिटर जो अब बिल्कुल आम हैं, वो भी तो इसी बॉडी सेंसिंग का ही नतीजा है. वैसे इसी दौरान उन्होंने ऑगमेंटेड रियलिटी के भविष्य को लेकर भी बहुत उम्मीद जताई. उनके मुताबिक होलोग्राम आने वाला भविष्य है. दरअसल वो AR ग्लास के बारे में बात कर रहे थे. इसको समझने के पहले थोड़ा ये जानते हैं कि अभी स्मार्टफोन क्या करता है और अगर वो नहीं हो तो क्या ऑप्शन हैं. स्मार्टफोन वही करता है जो उसको करना चाहिए, जैसे कॉल करना या फिर म्यूजिक सुनना. वीडियो भी देख लो और मैसेजिंग ऐप से चैट कर लो. ये तो स्मार्टफोन का काम हो गया लेकिन अब इसको साथ नहीं रखना हो तब क्या कर सकते हैं. अभी तक तो एक ऐप्पल वॉच ही सामने नजर आती है. अब इसमें भी एक ग्लिच है. हर ऐप्पल वॉच स्मार्टफोन वाले काम कर सके, वैसा नहीं है. ऐप्पल वॉच जो ई-सिम के साथ आती है वो काफी हद तक स्मार्टफोन का विकल्प हो सकती है. ऐसी वॉच से आप बिना स्मार्टफोन के कॉल कर सकते हैं. म्यूजिक भी सुन सकते हैं. इसके लिए वॉच का इंटरनल स्टोरेज इस्तेमाल कर सकते हैं या म्यूजिक स्ट्रीमिंग ऐप्स का. एसएमएस का जवाब देना भी काफी हद तक संभव है. कुछ ऐप्स की मदद से वीडियो भी देख सकते हैं. इसको एक संकेत के तौर पर जरूर देखा जा सकता है कि शायद एक डिवाइस ऐसा आएगा भविष्य में जो स्मार्टफोन से इतर एक स्टैंड अलोन डिवाइस बनेगा. ऐसे डिवाइस में वीडियो कॉल करने से लेकर फिल्म देखने के लिए एक आभासी स्क्रीन का फीचर मिल सकता है. कुछ कंपनियों ने इसके प्रोटोटाइप भी बनाए हैं. अब वो AR ग्लास के जैसा हो सकता है जिसमें सब कुछ आंखों के सामने नजर आएगा. या फिर कलाई पर पहनी हुई वॉच होलोग्राम के जरिए ऐसा कर सकेगी. सारी बातें इसी तरफ इशारा करती हैं कि भविष्य में डिवाइस हाथ की जगह आपके शरीर पर नजर आ सकते हैं. अब इन सब बातों को कुछ देर के लिए तज देते हैं और वापस आते हैं एलन मस्क पर.

ऐप्पल वॉच 
Elon भैया क्या कर रहे हैं

एलन मस्क की तमाम कंपनियों की तरह एक और कंपनी है Neuralink. नाम से साफ समझ आता है कि कंपनी इंसान के दिमाग के ऊपर काम कर रही है. तकनीक की भाषा में इसको 'ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस' कहते हैं. साफ-साफ कहें तो मस्क की ये कंपनी इंसानी दिमाग को समझने (understanding the brain), Interfacing with the brain और Engineering with the brain के सिद्धांत पर काम कर रही है. वैसे Neuralink अकेली कंपनी नहीं है इस क्षेत्र में है जैसे Kernel जिसने तो अपना प्रोडक्ट मार्केट में उतार भी दिया.

मस्क भैया ने एक अफ्रीकी लंगूर (मेल मकाक) के दिमाग में एक चिप लगाई और बाकायदा वीडियो दिखाया कि कैसे वो 'माइंड पॉन्ग' प्ले कर रहा है. माइंड पॉन्ग दरअसल में एक वीडियो गेम है. अभी सब कुछ शुरुआती दौर में है तो ऐसा भी नहीं है कि चिप ने सब कंट्रोल कर लिया. लंगूर को वीडियो गेम खेलने के लिए थोड़ा ट्रेन भी किया गया. मतलब ये कि स्क्रीन के सामने कैसे बैठना है, जॉयस्टिक कैसे पकड़ना है वगैरह-वगैरह. जॉयस्टिक तो आप समझते ही होंगे. वीडियो गेम की स्टीयरिंग. कितना भी ट्रेन कर लो लंगूर तो इंसान है नहीं. मस्क भैया अब क्या ही कर लेंगे. ऐसे में रोल प्ले किया चिप ने. लंगूर को लगा कि वो तो जॉयस्टिक की मदद से वीडियो गेम खेल रहा है लेकिन कंट्रोल तो दिमाग कर रहा था.

अब आपको लग रहा हो कि क्या भविष्य में सब कुछ चिप से कंट्रोल होगा. दिमाग में लगी चिप सारे काम करेगी. अगर चिप में वायरस आ गया तो क्या होगा. चिंता मत करिए चिप तो दिमाग में जरूर लगेगी लेकिन उसका कंट्रोल सिर्फ आपके पास होगा. मस्क कोई हॉलीवुड की फंतासी फिल्म नहीं बना रहे बल्कि उनका उद्देश तो दिमाग को कंट्रोल करने का है. अब इसको ऐसे समझते हैं. मान लीजिए कोई विकलांग है. सारा शरीर निष्क्रिय है लेकिन दिमाग काम कर रहा है. अब मेडिकल साइंस इतनी तरक्की कर लिया है कि ऐसे व्यक्ति के लिए तमाम फीचर्स वाली व्हील चेयर उपलब्ध कराई जा सकती है. सारे फीचर्स हैं लेकिन उनको चलाएगा कौन. अब ऐसे में एक चिप जो दिमाग में फिट है उसको व्हील चेयर के साथ जोड़ दिया जाए तो. होगा क्या. वही जो ऊपर बताया है. विकलांग व्यक्ति अपने दिमाग से कोई इशारा करेगा, जैसे पानी पिलाने का और व्हील चेयर में लगी रोबोटिक बांह वो काम कर देगी. दूसरा उदाहरण लेते हैं लैपटॉप के कर्सर का. अब कोई इंसान शारीरिक रूप से अक्षम है लेकिन आर्ट का जीनियस है तो ये चिप उसके लिए वरदान साबित होगी. जैसे-जैसे दिमाग सोचता जाएगा वैसे-वैसे चिप कर्सर को ड्रॉइंग करने के निर्देश देती जाएगी. अब ऊपर बताए दोनों उदाहरण भी कोई कोरी कल्पना नहीं है. Neuralink के क्लीनिकल ट्रायल से जुड़े ऐसे कई वीडियो Forbes जैसे नामी यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं.

Neuralink के बाद बात Kernel की. कंपनी के पीछे भी एक और अरबपति Bryan Johnson हैं.  Bryan की कंपनी भी दिमाग के सारे ऑर्गन और नसों में बहते खून में झाकने की कोशिश कर रही है. जिधर Musk खोपड़ी में ड्रिल करके चिप लगाने की तैयारी कर रहे, वहीं Kernel का मामला थोड़ा सरल है. कंपनी ऐसे डिवाइस बनाने की कोशिश कर रही है जिनको शरीर पर पहना जा सके. अब कंपनी असल में क्या करती है वो समझते हैं. आप गेम खेलते हैं तो क्या होता है. खेलते समय आपका दिमाग जो सोचता है वही आपके हाथ करते हैं. दिमाग में जो सोचा वो नर्व से होता हुआ आपके हाथों तक पहुंचता है. भले ये सब मिली सेकंड में हो जाता लेकिन इस गेप को भर दिया जाए तो. दूसरा उदाहरण हमारा शरीर कई काम पलक झपके करता है. त्वरित प्रतिक्रिया कहते हैं जिसको. जैसे पलकें झपकना या फिर कोई आपको मारने आए तो अपने आप सेफ़्टी के लिए हाथ सामने आना. अब ये सब अपने आप होता है लेकिन तब क्या जब ये नहीं होता. कहने का मतलब दिमाग ने हाथ को सिग्नल नहीं भेजे. आपका सवाल होगा ऐसा कहां होता है. गाड़ी चलाते समय ड्राइवर का सो जाना यही तो है. दिमाग संकेत भेजता है लेकिन मिली सेकंड की देरी भी जानलेवा होती है. अब दिमाग को ढंग से पढ़ लिया जाए और ऐसी कंडीशन में दिमाग त्वरित प्रतिक्रिया के लिए तैयार हो तो कितना सही रहेगा. आपने म्यूजिक के बारे में सोचा और वो प्ले होने लगे या फिर आपको गाड़ी चलाते नींद आने वाली हो और दिमाग पहले से सेंस कर ले. आपको पढ़ने में भले कल्पना के बाहर लगे लेकिन Kernel ऐसा करने में सफल रही है. 

दिमाग पर किए गए कुछ प्रयोग (image credit: Kernel)

अपनी लैब में किए प्रयोगों से अलग वास्तविक जीवन में भी. कंपनी ने Call of Duty के विश्व विजेता को अपनी लैब में उनके दिमाग के स्कैन के लिए बुलाया. स्कल कैप के साथ वो उनके दिमाग को पढ़ने में सफल रहे. ये सारी रिसर्च अभी अपने प्रारम्भिक दौर में हैं और ब्रायन खुद मानते हैं की ये सब बहुत महंगा और खर्चीला है. Kernel का स्कल कैप जिसको Kernel flow नाम दिया गया है, उसका दाम है 50 हजार डॉलर. तकरीबन 39 लाख रुपये. 

6जी अभी एक कॉन्सेप्ट मात्र है और कुछ ऐसा ही हाल ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस का भी है. सोचिए कितना सही होगा कि आपका मन कुछ खाने का है और आपके सिर्फ सोचने भर से घर का स्मार्ट किचन वो डिश बना दे. अब इस रिसर्च के पीछे जो कंपनियां हैं, उनका लोहा दुनिया मानती है. ऐसे में अगर कोई भी कंपनी दिमाग में मौजूद 86 बिलियन न्यूरॉन्स (ये हमको Neuralink से पता चला) के तार जोड़ने में या दिमाग में क्या चल रहा उसको पढ़ने में कामयाब हुई तो बहुत कुछ बदल सकता है. हां ये कहना जल्दबाजी होगी कि सच में स्मार्टफोन का डब्बा गुल हो जाएगा. स्मार्टफोन आए थे तो माना जा रहा था कि फीचर फोन खत्म. लेकिन आज भी अकेले हमारे देश में 40 करोड़ फीचर फोन मौजूद हैं. सुरसा के मुंह जैसा एक सवाल ये भी है कि आखिर इसकी कीमत क्या होगी. ऐसे कोई से भी डिवाइस आम पब्लिक की जेब तक पहुंच भी पाएंगे या फिर एक अरबपतियों की प्रयोगशाला की शोभा बनेंगे.

खराब फोन को ठीक करने की जिम्मेदारी आपकी, एप्पल, गूगल की ये तैयारी चलेगी?