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Apple का सबसे बड़ा सपना टूटा, 82000 करोड़ वाले Project Titan का 'टाइटैनिक' हो गया

Apple ने पिछले दिनों अपना ड्रीम कार प्रोजेक्ट बंद कर दिया. आखिर हुआ क्या जो कंपनी ने ऐसे समय कार प्रोजेक्ट पर ब्रेक लगाया जब दुनिया में इलेक्ट्रिक कारों का मार्केट तेजी से स्पीड पकड़ रहा. मजबूरी या मास्टर स्ट्रोक. समझने की कोशिश करते लेकिन पहले जरा ऐप्पल की बंद कार को ड्राइव करते हैं.

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ऐप्पल ने कार को बेकार क्यों किया

Apple ने अपनी आदतों से अलग, इतिहास से इतर एक काम किया. एक तरफ सालों मेहनत करके और अरबों खर्चा करके अपना AR/VR हेडसेट Apple Vision Pro बाजार में उतारा तो दूसरी तरफ इलेक्ट्रिक कार का प्रोजेक्ट बंद (Apple’s electric car project is dead) करके सालों की मेहनत और अरबों रुपये स्वाहा कर दिए. ऐप्पल ऐसा नहीं करती है. मतलब भले कंपनी तकनीक में अगुआ ना हो मगर कॉपी करने में उस्ताद है. मोबाइल में हो या AR हेडसेट में, हमेशा दूसरों से पीछू. मगर जब उसी फीचर को या प्रोडक्ट को खुद से लेकर आई तो रौला ही बना डाला. ऐसी ही उम्मीद कार से भी थी. लगा था जब भी सड़क पर उतरेगी बाकी सारे प्लेयर्स को पीछे छोड़ देगी. मगर ये हो ना सका.

अब सवाल जेहन में कौंधना लाजमी है. आखिर हुआ क्या जो कंपनी ने ऐसे समय कार प्रोजेक्ट को डिब्बा बंद किया जब दुनिया में इलेक्ट्रिक कारों का मार्केट तेजी से स्पीड पकड़ रहा? मजबूरी या मास्टर स्ट्रोक, समझने की कोशिश करते हैं. लेकिन पहले जरा ऐप्पल की बंद कार को ड्राइव करते हैं.

प्रोजेक्ट टाइटन

हर कंपनी अपने प्रोजेक्ट को कोई नाम देती है. कोड नेम कह सकते हैं. साल 2014 में स्टार्ट हुए इलेक्ट्रिक कार प्रोजेक्ट को कंपनी ने नाम दिया ‘प्रोजेक्ट टाइटन’. सपना सिर्फ शानदार-जबरदस्त-जिन्दाबाद इलेक्ट्रिक कार बनाने का नहीं बल्कि सेल्फ ड्राइविंग कार सड़कों में दौड़ाने का.

एकदम हॉलीवुड की फ़ंतासी (Fantasy) फिल्मों जैसी कार. बोले तो जब आप कार के पास पहुंचो तो गेट-वेट तो खुद से खुल जाए, साथ में कार आपसे कहे भी,

कहां जाना है बॉस?

कंपनी ने पूरे जोश से इस प्रोजेक्ट पर काम किया. पैसा तो कभी दिक्कत थी नहीं. इसके साथ दुनिया के टॉप कार माइंड भी हायर किए गए. वैसे कार को टॉप गियर में डालें, मतलब आगे की कहानी बताएं, उसके पहले एक बात और जान लीजिए. ऐप्पल ने अपनी कार बनाने से पहले मस्क बाबा की टेस्ला को खरीदने का भी सोचा था. मस्क के मुताबिक,

ऐप्पल ने उनकी कंपनी टेस्ला के सामने खरीदने का प्रस्ताव सामने रखा था. डील डन नहीं हुई तो फिर प्रोजेक्ट टाइटन अस्तित्व में आया. 

ये तो बात हुई प्रोजेक्ट की. समय-समय पर इससे जुड़ी खबरें सामने आती रहीं. सुनने में तो आया कि ये कंपनी के वर्तमान सीईओ टिम कुक का आखिरी प्रोजेक्ट होगा. कार के सड़क पर आते ही टिम अपनी सीट छोड़ देंगे. लेकिन अब तो प्रोजेक्ट बंद हो गया.

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प्रोजेक्ट टाइटन बना टाइटैनिक

संस्कृत उक्ति है ‘मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना’. मतलब जितने लोग उतने दिमाग. कोई निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाता. इस प्रोजेक्ट के साथ भी यही हुआ. टीम में सबकी अपनी-अपनी अलग राय थी. 10 साल के अंतराल में 3 बार प्रोजेक्ट लीडर्स को बदला गया. टोटल 4 लोगों ने अलग-अलग समय में इस प्रोजेक्ट को लीड किया. पहले सोचा सिर्फ इलेक्ट्रिकल गाड़ी बनाएंगे, पर फिर गूगल का प्रोजेक्ट देख के सेल्फ ड्राइविंग पर ध्यान लगा दिया. फिर बात हुई कि सेल्फ ड्राइविंग तो रहने दो, उसके बजाय बहुत सारे एडवांस्ड फीचर्स देंगे गाड़ी में.

एक आइडिया ये भी दिया गया कि गाड़ी में स्टीयरिंग व्हील को स्किप कर देते है, सारा काम ‘सीरी’ से करवाएंगे!

कुल मिलाकर बात ये कि गाड़ी का पहला गियर ही ढंग से नहीं लगा तो टॉप गियर की बात तो छोड़ ही दीजिए. इस बीच प्रोजेक्ट की कॉस्ट $10 बिलियन डॉलर मतलब 82 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गई.

सुनने में ये भी आया है कि प्रोजेक्ट पर काम करने वाली टीम के लोग मजाक-मजाक में कहते थे कि ये ‘प्रोजेक्ट टाइटन‘ नहीं 'प्रोजेक्ट टाइटैनिक' है. आखिर में जैसे टाइटैनिक डूबा वैसे ही टाइटन भी. लेकिन कहीं यहां…

जो डूबा सो पार वाली बात तो नहीं?

मतलब भले कंपनी ने अपना हजारों करोड़ों के प्रोजेक्ट पर ब्रेक लगा दिया. लेकिन कई एक्सपर्ट का मानना है कि ऐप्पल कुछ और सोच रही. माने कि जब सॉफ्टवेयर से खेला हो जाना है तो फिर हार्डवेयर पर काहे माथा फोड़ना. बोले तो कुछ ऐसा करो कि कार कोई सी भी हो, उसमें ऐप्पल कार प्ले फिट कर दो. ऐसा करना कोई मुश्किल भी नहीं. आजकल की कारों में तो ऐप्पल कार प्ले होता ही है. क्या सही-क्या गलत. ऐप्पल का सेब, ऐप्पल ही खाए.

वैसे कंपनी AI पर भी खूब दिलचस्पी दिखा रही. खासकर जनरेटिव AI पर. जनरेटिव मतलब चित्र बनाना, टेक्स्ट लिखना आदि-आदि. मतलब AI इधर भी जोर से आई.

                                                                                                  (इस खबर की रिसर्च हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे सार्थक चौहान ने की है)