'सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े' कहावत तो बहुत पुरानी है लेकिन आजकल Electric Scooters पर एकदम सही बैठती है. Electric Scooters का बाजार नया नवेला है हमारे देश में. अभी ढंग से शुभारंभ हुआ भी नहीं था कि आग लगने की खबरें आने लगी हैं. पिछले हफ्ते दस दिन के अंदर चार ऐसे केस सामने आए जहां इलेक्ट्रिक स्कूटर्स में आग लग गई.
Ola S1 Pro, Pure EV, Okinawa के इलेक्ट्रिक स्कूटर में आग लगने के वीडियो न्यूज से लेकर सोशल मीडिया पर वायरल हो गए हैं. दुखद तो ये रहा कि तमिलनाडु के वैल्लोर में ओकिनवा के इलेक्ट्रिक स्कूटर में आग लगने से एक पिता और पुत्री की मौत भी हो गई. कंपनियों के तरफ से इसकी जांच करने की बात भी कही गई है. मामले पर केंद्र सरकार का भी ध्यान गया. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इन घटनाओं की जांच के आदेश दिए हैं. सेंटर फॉर फायर एक्सप्लोसिव एंड एनवायरनमेंट सेफ्टी (CFEES) इन मामलों की जांच कर रहा है.
Electric Scooters लेने से पहले ये पढ़ लीजिए वरना आग लगेगी.......
इलेक्ट्रिक व्हीकल में खराबी या आग लगने की घटनाएं नई नहीं हैं. लेकिन भारत में बिल्कुल शुरुआती दौर में इस तरह की घटनाएं निराशा और डर दोनों पैदा करेंगी.
साफ समझ आता है कि मामला गंभीर है. अगर आप इलेक्ट्रिक स्कूटर खरीदने के बारे में सोच रहे हैं तो ये खबरें आपके प्लान पर पानी फेरने के लिए काफी हैं. ऐसे में ये जानना ज़रूरी हो जाता है कि इस EV स्कूटर्स में आग लगने के संभावित कारण क्या हो सकते हैं. कहीं इलेक्ट्रिक स्कूटर में इस्तेमाल हुए वायर और बैटरी जैसे प्रोडक्टस में कोई दिक्कत तो नहीं है. कुछ ऐसा तो इस्तेमाल नहीं हो रहा जो ज्वलनशील हो. टेस्टिंग प्रोसेस क्या है और इसको लेकर क्या नियम हैं? भारत में इलेक्ट्रिक स्कूटर्स के लिए भविष्य के लिए इन सवालों का जवाब मिलना ज़रूरी है.
आगे जाने से पहले ये जान लेना ज़रूरी है कि इन घटनाओं पर स्कूटर्स बनाने वाली कंपनियों ने क्या प्रतिक्रिया दी. Ola electric ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, 'पुणे में हमारे एक स्कूटर के साथ हुई घटना से हम अवगत हैं. हम हादसे की जांच कर घटना के कारण को समझने की कोशिश कर रहे हैं. जल्द ही हम कुछ दिनों में इससे जुड़े अपडेट शेयर करेंगे'.
वहीं, Pure EV ने ET को दिए हुए बयान में कहा, 'हम घटना की जांच कर रहे हैं और पूरी तरह से मूल्यांकन करेंगे. हम आग लगने या ब्लास्ट जैसी चीजों से बचने के लिए इंटरनल टेस्टिंग के साथ-साथ अपने बैटरी पैक में स्पेशल फेज चेंज मैटीरियल इस्तेमाल करते हैं.'
इस मामले पर Okinawa Autotech कहा, "यूजर को इलेक्ट्रिक स्कूटर को सही तरीके से चार्जिंग में लगाने और नजरअंदाज करने पर होने वाले परिणाम के बारे में जागरूक कर रहे हैं. बैटरी बनाने वाली कंपनी इसके लिए कई तरह के टेस्ट करती है ताकि ओवरहीटिंग की समस्या न आए और क्वालिटी को मेनटेन किया जा सके." कंपनी ने कहा कि उसे घटना में शामिल इलेक्ट्रिक स्कूटर के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना बाकी है. हालांकि, अब तक मिली जानकारी से पता चलता है कि इलेक्ट्रिक स्कूटर के ऑर्गैनिक फेज चेंज मैटीरियल के पिघलने के कारण लंबे समय तक सफेद धुआं निकलता रहा. इसके बाद थर्मल रनअवे के कारण व्हीकल में अनियंत्रित आग लग गई.
Okinawa के केस में तमिलनाडु पुलिस के मुताबिक, यूजर ने इलेक्ट्रिक स्कूटर को एक पुराने चार्जिंग सॉकेट में चार्ज में लगा दिया था जो उसके घर के प्रवेश पर लगा था और सोने चला गया. माना जा रहा है कि इलेक्ट्रिक शॉर्ट सर्किट की वजह से आग लग गई होगी, क्योंकि जिस पुराने सॉकेट में स्कूटर को चार्ज पर लगाया गया उसकी क्षमता इलेक्ट्रिक स्कूटर की वोल्टेज कैपेसिटी से कम थी.
तीनों कंपनियों के साथ इलेक्ट्रिक स्कूटर बनाने वाली एक और कंपनी एथर एनर्जी (Ather Energy) ने भी इसके बारे में बात की है. बिजनेस टुडे की एक खबर के मुताबिक, एथर एनर्जी ने इलेक्ट्रिक स्कूटर में आग लगने की घटनाओं का सीधा संबंध बैटरी से बताया है. अभी मार्केट में इलेक्ट्रिक गाड़ियों में जिन बैटरियों का अधिकतर इस्तेमाल होता है वह सभी ठंडे इलाकों को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं. कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि अगर इलेक्ट्रिक स्कूटर बनाने वाली कंपनियां उनकी बैटरी को आयात कर रही हैं, तो उनके लिए जरूरी है कि उन्हें भारतीय परिस्थितियों के हिसाब से मॉडिफाई किया जाए.
अभी तो जांच शुरुआती स्टेज में है. लेकिन अब तक उपलब्ध जानकारियों से ऐसा प्रतीत होता है कि आग लगने की घटना के लिए बैटरी या चार्जिंग पैटर्न जिम्मेदार हो सकते हैं. वैसे जब तक सरकार या कंपनियां अपनी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करतीं तब तक कुछ भी ठोस कह पाना मुश्किल होगा.
कौन सी बैटरी इस्तेमाल होती है?
'Remember The Name', 2016 के वर्ल्ड T20 फाइनल में Ian Bishop की Carlos Brathwaite को बोली गई ये लाइन आपको याद होगी. बस ऐसे ही एक और नाम याद कर लीजिए. लिथियम आयन (lithium-ion) यही वो बैटरी है जो इलेक्ट्रिक स्कूटर्स से लेकर स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर कार और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक में इस्तेमाल होती है. 1991 में सोनी के वीडियो रिकॉर्डर में पहली बार इस्तेमाल होने से लेकर आजतक लिथियम आयन बैटरी सबकी फेवरिट बनी हुई है. टेसला (Tesla) ने 2008 में Roadster के साथ बैटरी पावर वाली कार मार्केट में उतार कर गेम ही बदल दिया.
ये तो हो गया लिथियम आयन बैटरी का परिचय. अब चलते हैं इसके अंदर. लीथियम आयन बैटरी रिचार्जेबल होती है. कैमिस्ट्री में अभी तक 118 एलिमेंट्स की खोज हुई है जिनमें लीथियम का एटॉमिक नंबर 3 है. इसमें 3 इलेक्ट्रॉन, 3 प्रोटॉन और 4 न्यूट्रॉन होते हैं. जिसकी वजह से इसका मास बहुत कम होता है. इलेक्ट्रॉनिक कॉन्फिग्रेशन के हिसाब से समझें तो लीथियम की बाहरी सेल में एक इलेक्ट्रॉन होता है जिसे लूज करके लीथियम आयन Li+ बनता है. लीथियम आयन बैटरी Alessandro volta के बनाए सेल के कंसेप्ट पर काम करती है. लिथियम आयन शॉर्ट में बोले तो Li-ion बैटरी का जलवा कितना ज्यादा है इसका अंदाजा बस इसी बात से लग जाएगा कि 2019 में रसायन विज्ञान के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार जिन तीन वैज्ञानिकों को दिया गया था, उन्होंने ही इस लीथियम आयन बैटरी का अविष्कार किया. जॉन बी गुडइनफ़, एम स्टेनली व्हिटिंगम और अकीरा योशिनो, जिन्होंने दुनिया को इस रिचार्जेबल बैटरी का तोहफा दिया. अब इसके आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं फिर भी आपकी जानकारी के लिए हम बता देते कि Li-ion बैटरी बड़ी मात्रा में करंट प्रवाहित कर सकती है. लोअर मैंटेनेंस इनकी खासियत है. साथ में इनकी सेल्फ डिस्चार्ज साइकल भी कम है, सिर्फ 1.5-2 प्रतिशत प्रति महीने. कम वज़न होना भी इनको किसी भी जगह आसानी से उपयोग में लाने लायक बना देता है. अब जब इतना कुछ अच्छा-अच्छा है तो भला क्यों ये लोगों की पसंद नहीं बनेगी.
सब अच्छा है तो बैटरी फटने की घटनाएं क्यों होती हैं. जाहिर सी बात है कुछ तो कहीं गड़बड़ है. इस पर भी बात करेंगे, लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि भारत में Li-ion बैटरी का क्या स्टेटस है. अब आपको लगेगा कि ये कहां से बीच में आ गया तो ओला इलेक्ट्रिक स्कूटर पूरी तरह भारत में बना है लेकिन बैटरी इंपोर्ट होकर आई है. कहने का मतलब Li-ion बैटरी के केस में हमारा हाथ दबा हुआ है, भले बात पूरी तरह देश में बने ओला स्कूटर की हो या फिर किसी और कंपनी की. अब ये बात जग-जाहिर है कि बैटरी वाले वाहन पेट्रोल-डीजल वालों की तुलना में खासे महंगे हैं. इसकी एक वजह ये भी है कि ये लीथियम आयन बैटरी के सेल बहुत महंगे होते हैं. दुनिया में केवल 4 या 5 कंपनियां इन्हें बनाती हैं. भारत में तो ये बनते ही नहीं हैं. मेड इन इंडिया इलेक्ट्रिक कारों और स्कूटर्स के लिए इन्हें इम्पोर्ट करना होता है. इसकी कीमत और भी ज्यादा है. एक दर्द और है. Li-ion बैटरी के लिए पूरी दुनिया चीन पर निर्भर है. चीन पर इसी निर्भरता के चक्कर में जापान मात खा गया वरना उसने तो काफी पहले ही इलेक्ट्रिक गाड़ियां बना ली थीं. हालांकि बैटरी इंपोर्ट के लिए सरकार ने बाकायदा नियम बना रखे हैं. भले कोई इंडियन कंपनी बैटरी इंपोर्ट करे या फिर बाहर की कंपनी एक्सपोर्ट उसको Bureau of Indian Standards (BIS) के तय मानकों से गुजरना पड़ता है. बैटरी को इंपोर्ट होने से पहले भी IEC 62133 जैसे अंतरराष्ट्रीय मानकों से भी कई बार गुजरना पड़ता है. भारत मे तो IS 16046 सर्टिफिकेशन ज़रूरी है. सारी टेस्टिंग BIS से मान्यता प्राप्त टेस्ट हाउस में ही होंगी. टेस्टिंग प्रोसेस के मानक भी तय हैं- कंटिन्युअस चार्जिंग, वाइब्रेशन, टैंप्रेचर साइकलिंग, इनकरेक्ट इंस्टॉलेशन, एक्सटर्नल शॉर्ट सर्किट, फ्री फॉल, मैकनिकल शॉक, थर्मल एब्यूज़, लो प्रेशर, ओवरचार्ज और फोर्स्ड डिस्चार्ज.
इतना ही नहीं BIS रजिस्ट्रेशन हर दो साल में रीन्यू भी कराना पड़ता है. ये तो बात हुई Li-ion बैटरी की उपलब्धता और टेस्टिंग की. अब वापस आते हैं कि इतना सब होने पर भी बैटरी फटने और आग लगने की घटनाएं सुनने को क्यों मिलती हैं.
बातें कितनी भी हों लेकिन सच्चाई यही है कि लिथियम आयन बैटरी का स्वभाव थोड़ा खतरनाक होता है. एक बैटरी में जो ऊर्जा होती है वो कैथोड और ऐनोड नाम के एलेक्ट्रोड्स के बीच में सेव होती है और इनको अलग करने का काम एक बहुत पतला सा एल्क्ट्रोलाइट करता है. अब किसी भी वजह (गिरना, पानी, प्रेशर) से ये एलेक्ट्रोड्स आपस में मिल गए तो शॉर्ट सर्किट होना तय है. शॉर्ट सर्किट फिर थर्मल रिएक्शन और नतीजा बूम. मतलब बैटरी फटना या आग लगना. चार्जिंग की गलत आदतें भी बैटरी पर असर डालती हैं. जैसा हमने पहले बताया कि तमिलनाडु पुलिस ने भी इसका जिक्र किया है. घटिया और सस्ते, बिना ब्रांड वाले या फिर घर में धूल खा रहे चार्जर अक्सर ऐसी घटना का कारण बनते हैं.
लिथियम आयन बैटरी में आग लगने के बाद उसे पानी से बुझाना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि पानी के साथ मिलकर यह बैटरी हाइड्रोजन गैस और लिथियम-हाइड्रॉक्साइड पैदा करती है, जो आग को बढ़ावा देने में मदद करती है. मैन्युफैक्चरिंग डिफ़ेक्ट और बैटरी को सही तरीके से हैंडल नहीं करना भी एक कारण हो सकता है. जब हर बात के लिए आजकल सॉफ्टवेयर इस्तेमाल होता है तो ये भी माना जा सकता है कि इलेक्ट्रिक कार या स्कूटर में लगे सॉफ्टवेयर ने बैटरी को कैसे हैंडल किया. किसी बग (bugs) या मालवेयर ने बैटरी के साथ छेड़छाड़ तो नहीं की. अधिक हीट तो है ही बैटरी की दुश्मन तो उसको भी याद रखा जाए. कैमिकल लीकेज भी बैटरी को नुकसान कर सकता है. Daelim University में ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग के प्रोफेसर Kim Pil-soo ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को बताया था कि इलेक्ट्रिक व्हैकिल में आग लगने के असली कारण को जानना मुश्किल है, क्योंकि आग लगने की घटना को उसी तरह से दोहराना बहुत कठिन है. इसलिए जरूरी है कि क्वालिटी कंट्रोल से लेकर सभी जरूरी टेस्ट का ध्यान रखा जाए.
ये तो वो जानकारी थी जो हमने आपके लिए जुटाई, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए किसी एक्सपर्ट से बात करना भी बनता था. हमने बात की सूरज घोष से जो डायरेक्टर (मोबिलिटी) हैं S&P Global में. सूरज ने हमें बताया कि आग लगने के लिए सिर्फ बैटरी जिम्मेदार होगी, ऐसा कहना जल्दबाजी होगी. उनके मुताबिक और भी कई कारण हो सकते हैं.
शॉर्ट सर्किट: आग लगने का एक कारण हो सकता है, क्योंकि व्हीकल में बैटरी के अलावा और भी कंपोनेंट होते हैं जहां केबल और दूसरे प्रोडक्टस में आग लग सकती है.
सेल क्वालिटी और खराब पैकिंग: यदि बैटरी के अंदर लगे हुए सेल की गुणवत्ता का ख्याल नहीं रखा गया है और उनकी पैकिंग भी सही तरीके से नहीं हुई है तो ये भी आग लगने का एक कारण हो सकता है.
चार्जिंग के तरीके: कंपनी से आए चार्जर से अलग दूसरे चार्जर का इस्तेमाल या फिर कंपनी की तरफ से बताए गए तरीके से अलग हटके चार्जिंग करना भी ऐसी किसी घटना का कारण बन सकता है.
एक्सीडेंटल डैमेज: गाड़ी कहीं गिर गई थी या टकरा गई थी और आलस या लापरवाही में उसको ठीक नहीं कराया गया. हो सकता है कि तुरंत असर नहीं दिखे लेकिन आगे चलकर ये किसी भी किस्म की घटना को जन्म दे सकता है.
बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (BMS): सूरज के मुताबिक, भारत में इसके ऊपर खास ध्यान दिया जाता है तो इसमें कुछ गड़बड़ होना बहुत ही मुश्किल है. इसके लिए ऐसी तकनीक यूज की जाती है कि यदि बैटरी का तापमान एक लेवल से ज्यादा चला जाए तो कूलिंग सिस्टम अपना काम करने लगता है. BMS की वजह से कोई गड़बड़ी होने के चांस बहुत ही कम हैं.
जब हमने सूरज से पूछा कि क्या ऐसी घटनाएं दूसरे देशों में हुई हैं और उससे बचने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं. तब उन्होंने बताया, "चीन और दूसरे देशों में ऐसी घटनाएं हुई हैं. इससे बचने के लिए सरकारों ने तय किया है कि बैटरी सिर्फ सरकार से मान्यता प्राप्त एजेंसी से ही ली जाएं. ऐसा करने से क्वालिटी कंट्रोल तो रहता ही है और जवाबदेही भी बनी रहती है."
भारत में मेकर्स को क्या करना चाहिए और यूजर्स के लिए क्या सलाह होगी? इस सवाल के जवाब में सूरज ने कहा कि बैटरी को हमारे देश के मौसम के मुताबिक बनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. एक्सट्रीम हीट और एक्सट्रीम कोल्ड दोनों ही कंडीशन हमारे देश में होती हैं तो उसके अनुरूप बैटरी बनाने पर फोकस होना चाहिए. रही बात व्हीकल खरीदने की तो उन्होंने कहा कि जरूर खरीदिए क्योंकि यही फ्यूचर है. बस इतना ध्यान रखिए कि व्हीकल बनाने वाली कंपनी कौन सी है. किफायती के चक्कर में मत पड़िए और देखभाल कर प्रोडक्ट लीजिए. अब रही बात बैटरी की तो वो तो स्मार्टफोन से लेकर ब्लूटूथ हेडफोन्स में भी लगी होती है. इसका मतलब ये तो नहीं कि हम लेना बंद कर दें.
इलेक्ट्रिक व्हीकल में खराबी या आग लगने की घटनाएं नई नहीं हैं. पिछले साल अमेरिकी ऑटो दिग्गज General Motors Co ने लगभग 60000 Chevrolet Bolt EV को आग लगने की रिस्क के चलते वापस बुला लिया था. Chevrolet Bolt EV के लिए बैटरी एक और टेक दिग्गज LG ने बनाई थी. Tesla Model S में भी आग लगने की घटना सामने आई थी. लेकिन भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) अपने प्रारंभिक दौर में है तो first impression is the last impression बिल्कुल सटीक लाइन लगती है. तमाम देसी-विदेसी कंपनियां अपने प्रोडक्ट लॉन्च कर रही हैं या करने वाली हैं. इलेक्ट्रिक व्हीकल का सबसे बड़ा नाम Tesla भारत में जल्द दस्तक देगा. ऐसे में बिल्कुल शुरुआती दौर में इस तरह की घटनाएं निराशा और डर दोनों पैदा करेंगी. पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान छूती जा रही हैं. तकरीबन रोज ही दाम बढ़ रहे हैं ऐसे में इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) सही विकल्प बन सकता है. सरकार ने भी लिथियम आयन बैटरी को देश में बनाने की दिशा में काम करना चालू किया है. सार्वजनिक क्षेत्र के तीन केंद्रीय प्रतिष्ठान- राष्ट्रीय एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (NALCO), हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL) तथा मिनरल एक्सप्लोरेशन कंपनी लिमिटेड (MECL) की भागीदारी से साल 2019 में भारत सरकार ने खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (Khanij Bidesh India Ltd.-KABIL) यानी KABIL का गठन किया है. काबिल का काम है दुनिया भर में उन खनिजों को तलाश करना जिनकी भारत को जरूरत है. अब इसमें लीथियम तो होगा ही. कर्नाटक के एक शहर मांड्या में भारत को लीथियम का बड़ा भंडार मिला है. निकट भविष्य में हो सकता है कि हम अपने देश में ही Li-ion बैटरी बनाने लगें. यदि ऐसा हुआ तो कम दाम और क्वालिटी कंट्रोल की पूरी उम्मीद की जा सकती है. ये योजना तो अभी स्टार्ट ही हुई है तो ये देखना बहुत दिलचस्प होगा कि इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) मेकर्स इससे कैसे निपटते हैं. हाल-फिलहाल में हुई घटनाओं पर भी उनकी और सरकार की रिपोर्ट का बेसब्री से इंतजार रहेगा.