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उमेश ने पिता को खोने के बाद जो किया, उसके लिए एक सलाम तो बनता है

उमेश यादव ने कमाल कर दिया.

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उमेश यादव ने कमाल का प्रदर्शन किया है (पीटीआई फाइल)

कहते हैं कि इक रोज़ इस दुनिया से सबको जाना है. कोई यहां रहने नहीं आया. लेकिन फिर भी, जब कोई हमें छोड़कर जाता है तो तकलीफ़ होती है. हम समझ नहीं पाते कि इस तकलीफ से कैसे निपटें. हमें पता था कि ये एक दिन होना ही था, लेकिन फिर भी... हमें इस पर आसानी से यकीन नहीं आता. लेकिन हमारे यकीन से इस दुनिया पर कहां फ़र्क पड़ता है.

ये तो चलती ही रहती है. और बचे हुए लोगों को इस चलती दुनिया के साथ कदमताल करनी ही पड़ती है. फिर चाहे वो अपने अंदर कितने भी दुख समाए हों, बाहर उन्हें अपने लिए निर्धारित काम करने ही होते हैं. कई लोग लंबे वक्त तक ये काम नहीं कर पाते. क्योंकि किसी भी बड़े दुख से उबर, अपने काम में मन लगाना आसान नहीं होता. लेकिन इसे आसान बनाया जा सकता है.

अगर आप अपने काम के लिए उमेश यादव जैसे समर्पित हों. उमेश यादव. जो भारतीय बोलर्स की उस कैटेगरी में आते हैं, जिनके हिस्से तारीफ़ से कई गुना ज्यादा आलोचना या ट्रोलिंग आती है. उमेश सालों ने इंडियन क्रिकेट टीम के लिए खेल रहे हैं. उनका टेस्ट डेब्यू 2011 में हुआ था. वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ़ दिल्ली में हुए इस टेस्ट के जरिए रविचंद्रन अश्विन का भी डेब्यू हुआ था.

# Umesh Yadav

और इस डेब्यू के बाद अश्विन जहां 100 टेस्ट के क़रीब हैं, वहीं उमेश बमुश्किल 50 का आंकड़ा पार कर पाए हैं. और इन 55 टेस्ट मैचेज में उनका प्रदर्शन शानदार रहा है. उमेश को जब भी मौका मिला, उन्होंने टीम के लिए अपना सबकुछ दिया. उमेश उन रेयर इंडियन पेस बोलर्स में से एक हैं, जिन्हें बाहर से ज्यादा घर में टेस्ट खेलने को मिले.

और भारतीय फ़ैन्स अच्छे से जानते हैं कि घर में होने वाले टेस्ट मैचेज में पेस बोलर्स का क्या रोल होता है. ज्यादातर वक्त इनके जिम्मे गेंद को पुराना करने का काम आता है. और जब गेंद पुरानी हो जाए, स्पिनर्स को विकेट ना मिलें, तो उम्मीद की जाती है कि ये पेस बोलर रिवर्स स्विंग के जरिए विकेट्स निकालकर देंगे. और इस उम्मीद में उम्मीद का परसेंटेज बहुत हल्का होता है.

इतना हल्का, कि विकेट मिल गए तो जश्न, नहीं मिले तो कोई बात नहीं. क्योंकि हमें तो आपसे उम्मीद ही नहीं थी. और ऐसे माहौल में अगर कोई 100 टेस्ट विकेट ले ले, तो क्या कहेंगे? कम से कम लेजेंड तो कहना ही होगा. और उमेश हमारे यही लेजेंड हैं. 22 फरवरी को अपने पिता को खोने वाले उमेश 1 मार्च से शुरू हुए इस टेस्ट में खेल रहे हैं.

उन्होंने पहले तो बैटिंग में बहुमूल्य 17 रन बनाए. और फिर बोलिंग में तीन विकेट्स निकाले. इन विकेट्स के साथ उमेश ने अपने घर में 100 विकेट भी पूरे कर लिए. अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें क्या खास है, तो जान लीजिए कि उमेश से पहले सिर्फ चार भारतीय पेसर्स घर में 100 या उससे ज्यादा विकेट ले पाए हैं. इन चारों के नाम आप कपिल देव, जवागल श्रीनाथ, ईशांत शर्मा और ज़हीर खान पढ़ते हैं.

अब ये लिस्ट पांच नामों की हो चुकी है. और इन नामों में ऐवरेज हो या फिर स्ट्राइक रेट, दोनों में उमेश टॉप पर हैं. वह हर रन के लिए बाकी चारों से कम रन देते हैं. और साथ ही हर विकेट के लिए वह इन चारों से कम गेंदें भी फेंकते हैं. यानी ना तो उमेश रन मशीन हैं, जैसा कि आम तौर पर उनका मजाक बनाने वाले कहते हैं. और ना ही वो ऐसे बोलर हैं जिन्हें विकेट नहीं मिलते.

भारत की डेड विकेट्स पर उमेश भारत के सबसे सफल पेस बोलर्स में टॉप पर हैं. और उन्होंने अपने तमाम आंकड़ों में एक विशेष पन्ना उस पखवाड़े में जोड़ा, जब उनके पिता स्वर्गवासी हुए थे. यानी उमेश ने शोक में हिम्मत ना हारते हुए, लड़ना और जीतना चुना. और वो किया, जो वह सालों से चुपचाप करते आए हैं. और अब वक्त आ गया है कि हम सब, इसके लिए उमेश का शुक्रिया कहें.

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