और ये हाथ 23 अक्टूबर, दिन रविवार को जब चला तो इसने कमाल ही कर दिया. कुछ ही महीनों पहले तक विराट को वर्ल्ड कप की स्क्वॉड में ना रख रहे लोग भी विराट की धुन पर नाच उठे. चिल्ला-चिल्लाकर किंग कोहली के जयकारे लगाने लगे. सेलिब्रेट करने लगे. और इसमें कोई बुराई भी नहीं है. क्योंकि इंसान की सोच वक्त के साथ बदलती ही है. और इस बदलती सोच ने ही हमें इतना आगे पहुंचाया है.
# Virat Kohli Batting
लेकिन इस बदलती सोच की एक धुरी तो होनी चाहिए ना. और अगर ये धुरी रहेगी, तभी तो किसी की भी आलोचना फैक्ट्स पर होगी. नहीं तो ऐसे ही पासिंग रिमार्क देकर लोग निकलते रहेंगे. और एक लेजेंडरी प्लेयर से उसके लेजेंड होने का सबूत मांगते ही रहेंगे. विराट ने लंबे इंतजार के बाद जब एशिया कप में सेंचुरी मारी. तब कहा गया कि अरे ये थकी हुई दोयम दर्जे की टीम थी. अफ़ग़ानिस्तान को पीटकर क्या ही किया कोहली ने.
एशिया कप में भारत के बेस्ट प्लेयर रहे कोहली के इन आंकड़ों को सिरे से खारिज कर दिया गया. और बहस जारी ही रही. तमाम ऐसे लोग, जिन्हें हम ताउम्र लेजेंड मानते रहे, और शायद आगे भी मानेंगे. ऐसे लोगों ने संवाद के तक़रीबन हर माध्यम के जरिए विराट कोहली को नीचा दिखाने की कोशिश की. लगातार उन्हें चुका हुआ बताया. यहां तक कह दिया कि क्रिकेट का सबसे छोटा फॉर्मेट विराट कोहली जैसे प्लेयर्स के लिए नहीं है.
लेकिन कोहली तो ठहरे कोहली. उन्होंने हर दफ़ा, हर उस चुनौती को रौंदा है जिसे दूसरों ने पहाड़ करार दिया. कोहली का पूरा करियर ऐसी ही चुनौतियों से निपटकर बना है. तो कोहली ने फिर एक चुनौती स्वीकारी. चुनौती उस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बोले तो जिसे मानवता का भविष्य करार दिय गया है, उसकी गणना को नकारने की.
पाकिस्तान के खिलाफ़ AI ने भारत को एकदम हारा हुआ करार दे दिया था. उनकी गणना में भारत के जीतने के चांस उतने ही थे, जितने नंबर की जर्सी माही पहनते थे. सभी लोग मैच खत्म मान चुके थे. लेकिन विराट क्रीज़ पर टिके थे. पारी का 19वां ओवर आया. आखिरी 12 गेंदों पर भारत को जीत के लिए 31 रन चाहिए थे. ओवर की पहली चार गेंदों ने मैच को रोमांचक बनाते हुए करोड़ों लोगों की धड़कनें थाम दीं.
इन चार गेंदों पर सिर्फ तीन रन आए. अब भारत को आखिरी आठ गेंदों में 28 रन चाहिए थे. ओवर की पांचवीं गेंद. लेंथ बॉल. गिरकर ऊंची उठी, कोहली ने लगभग सीधे बल्ले से से बोलर के सर के ऊपर से उछाल दिया. गेंद बाउंड्री लाइन के बाहर तैर गई. यही नहीं, अभी और सुनिए. ओवर की आखिरी गेंद. लेग स्टंप का एंगल बनाती हुए फुल डिलिवरी. कोहली ने अपनी कलाइयों को तड़ से घुमाया और गेंद फाइन लेग के बाईं ओर से बाउंड्री के बाहर उड़ चली.
अब आखिरी छह गेंदों पर 16 रन चाहिए थे. जो बने. और इन 16 में से आधे रन कोहली ने खुद बनाए. और इनमें वो तीन बाई के रन नहीं जुड़े, जो उन्हें फ्री हिट पर लिए. भारत ने आखिरी गेंद पर यह मैच चार विकेट से जीता. और इस जीत के नायक रहे विराट कोहली. वही कोहली, जिन्हें तमाम सूरमा वर्ल्ड कप की टीम से बाहर कर चुके थे. जिनके बारे में कइयों का मानना था कि अब आगे बढ़ने का वक्त है.
कोहली की जगह किसी और को लाया जाए. लेकिन क्या कुछ दिन बाज के ना उड़ने से सारा आसमान कबूतरों का हो जाता है? नहीं ना? तो किंग कोहली के कुछ दिन सेंचुरी ना मारने से कोई उन्हें रिप्लेस कर लेगा क्या? कतई नहीं. कोहली तो कोहली ही रहेंगे. अपनी शर्तों पर खेलने वाले और अपनी ही शर्तों पर हारी बाजी पलटने वाले.
फिर भले ही लोग अकेले दम पर जिताए गए मैच के बाद भी उनका नाम लेने से बचें, लेकिन इससे कोहली का कद तो छोटा होगा नहीं. क्योंकि कोहली वो बाज हैं, जिसे देख तमाम कबूतरों ने उड़ने के सपने देखे थे. और बाज कैसा भी हो, उसकी उड़ान देखने के लिए गर्दन को फुल स्ट्रेच करना ही पड़ता है. क्योंकि बाज अपनी ही ऊंचाई पर उड़ता है, कबूतरों से उसकी क्या तुलना?
T20 वर्ल्ड कप में विराट कोहली ने पाकिस्तान को हराने के बाद क्या कहा?