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क्रिकेट ऑल राउंडर, लीजेंड फुटबॉलर और ओलंपिक में जीत दर्ज करने वाला एकमात्र भारतीय खिलाड़ी

ज़रूरत पड़ने पर हॉकी और टेनिस टीम में भी खेला ये आदमी, आज बड्डे है.

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सोर्स- sportskida

जब कोलकाता का लड़का लोग कुछ बड़ा कौरता है तो हीप हीप हुर्रे नहीं, "एर छाड़ा आर के? कोलकाता
 " चिल्लाता है.

इस नारे का मतलब है, कोलकाता के सिवाय कौन. कोलकाता मतलब वो शहर जिसके मुख्तलिफ हिस्सों में आपको जीवन शैली के अलग-अलग दशक मिल जाएंगे. हिल्सा और चायनाटाउन को ज़ुबां पर बराबर जगह देने वाले इस शहर के तीन धर्म हैं. पॉलिटिक्स, संगीत और फुटबॉल. इसी शहर में एक ऐसा खिलाड़ी भी हुआ है जिसने क्रिकेट और फुटबॉल दोनो की जर्सी पहनी, साथ-साथ ओलंपिक में हिंदुस्तान की नुमाइंदगी की. बात मोहनबागान के मेसी, चूनी गोस्वामी की.


कोलकाता में झाड़ू या कमल, एंड्रॉइड या ऐपल से भी बड़ा सवाल है कि मोहन बागान या ईस्ट बंगाल. जो शहर ''जय मां फुटबॉलेश्वरी, जय बाबा फुटबॉल नाथ'' जैसे गाने गुनगुनाता हो, वहां आप तटस्थ नहीं रह सकते. मगर 1938 में पैदा हुए सुबीमल गोस्वामी (कोलकाता के लिए प्यार से ‘चूनी दा’) एक ऐसा नाम है जिसे हर किसी ने चाहा और सराहा.

बात फुटबॉल की

चूनी गोस्वामी का फुटबॉल करियर शानदार रहा, 1946 में 8 साल की उम्र में मोहन बागान जूनियर से खेलना शुरू करके मोहन बागान टीम का हिस्सा बने और इसके बाद 50 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले. मैच की गिनती पर मत जाइये, इनकी वैल्यू देखिये. पहले ही अंतर्राष्ट्रीय मैच में चीन को ओलंपिक में 1-0 से हराया. कप्तानी की तो 1962 के एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीता, 1964 के एशिया कप में सिल्वर जीता. इंग्लिश प्रीमियर लीग में ‘टॉटेनहम हॉट्सपर’ क्लब से खेलने का ऑफर मिला. गोरे अंग्रेज़ कह-कह के मर गए मगर दादा गए नहीं. भैया लोगों का गुठका और दादा लोगों का कलकत्ता ऐसे ही न छूटता है.

क्रिकेट की बात

1962-63 के रणजी सेशन में चूनी दा ने क्रिकेट खेलना शुरू किया. सीधे हाथ से बल्लेबाजी करते थे और राइट आर्म मीडियम पेस गेंद डालते थे. फुटबॉल से सन्यास लिया तो फुल टाइम क्रिकेटर बन गए और बंगाल टीम की कप्तानी करने लगे. 46 मैचों में 1592 रन और 47 विकेट के साथ एक अच्छा रिकॉर्ड छोड़ गए.
पेले और चूनी गोस्वामी
पेले और चूनी गोस्वामी

क्रिकेट और फुटबॉल से परे भी

22 गज की पिच और फुटबॉल के मैदान से बाहर भी चूनी दा का जलवा रहा. उनके हॉकी क्लब की गाड़ी जहां अटकती तो दादा स्टिक लेकर मैदान में उतर आते. यहां तक की इन सब से मन ऊबता तो साउथ क्लब की तरफ से टेनिस भी खेल आते. आप कहेंगे कि इन्हें तो फिल्मों में होना चाहिए, तो जनाब, चूनी गोस्वामी ने ‘प्रथम प्रेम’ नाम की बांगला फिल्म में भी काम किया है. अब ये तंज़ मत कसना कि इतने ही सब कुछ थे तो राजनीति में ही आ जाते. गोस्वामी जी 2005 में कोलकाता के शेरिफ भी चुने गए.
एशिया के बेस्ट स्ट्राइकर के खिताब से नवाज़े गए चूनी गोस्वामी ने फुटबॉल के ढ़ाचे को मजबूत करने के लिए टाटा इंस्टिट्यूट के साथ काफी काम किया. सरकार ने भी उन्हें अर्जुन अवार्ड और पद्म श्री से सम्मानित किया. मगर फिर भी चूनी गोस्वामी को देश भर के खेलप्रेमियों में वो स्टारडम नहीं मिल पाया है जिसके वो हकादार थे. अच्छी लगी हो तो हिंदुस्तान के इस लगभग भुला दिए गए हीरो की कहानी दूसरों को भी सुनाइए.

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