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कहानी उस महिला क्रिकेटर की जिससे एयरपोर्ट पर ऑटोग्राफ मांगने लगे विनोद खन्ना!

1973 में पहला महिला विश्व कप खेला गया. पहले पुरुष वर्ल्ड कप से दो साल पहले.

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सुधा शाह. Photo: India Today Archieve

1973 में पहला महिला विश्व कप खेला गया. पहले पुरुष वर्ल्ड कप से दो साल पहले. भारतीय महिला टीम इसमें शामिल नहीं थी. क्यूंकि पहले रिकॉर्डेड महिला क्रिकेट मैच के 230 साल बाद भी भारतीय क्रिकेट बोर्ड महिला क्रिकेट को मान्यता नहीं देता था और बीसीसीआई और विमेन क्रिकेट असोसिएशन ऑफ़ इंडिया (WCAI), दो अलग-अलग चीज़ें हुआ करती थीं. WCAI के सेक्रेटरी थे महेंद्र शर्मा. उन्होंने ही इसे लखनऊ में सोसायटी ऐक्ट के तहत रजिस्टर करवाया था.

भारत में महिला क्रिकेट की शुरुआत का बहुत सारा क्रेडिट महेंद्र शर्मा को मिलना चाहिए. इनके ही प्रयासों की बदौलत अलग-अलग प्रदेश, अलग-अलग ज़ोन की महिला टीमें ट्रैवेल कर रही थीं और एक दूसरे से मैच खेल रही थीं.

इस दौरान कलकत्ता के ईडेन गार्डन्स में उमड़ने वाली भीड़ ने खिलाड़ियों और प्रशासकों, सभी को बहुत बल दिया. 1973 में दूसरी महिला नेशनल क्रिकेट चैम्पियनशिप खेली गयी. पहले टूर्नामेंट के 7 महीने बाद. इतने समय में टूर्नामेंट में 3 से 8 टीमें हो गयीं.

बनारस में हुए इस टूर्नामेंट में देश भर से महिला टीमें आयीं. WCAI रंग ला रहा था. लड़कियों के मैच देखने को भीड़ भी आ रही थी. एडुल्जी बहनों का जलवा इस टूर्नामेंट में भी कायम था. इसी साल महेंद्र शर्मा ने नीता तेलंग को इंग्लैण्ड भेजा. असल में उन्हें मालूम ही नहीं था कि ऐसा कोई वर्ल्ड कप हो रहा था और दूसरे देशों की भरी-पूरी राष्ट्रीय महिला टीमें भी थीं. इत्तेफ़ाक से उन्हें  इंटरनेशनल विमेन्स क्रिकेट काउंसिल (IWCC) का पता मिल गया और उन्होंने उस पते पर ख़त लिख दिया. ख़त में गुज़ारिश की गयी कि भारतीय महिला टीम को मान्यता मिल जाए. उधर से जवाब आया और महेंद्र ने 19 साल की नीता को प्रतिनिधि के तौर पर भेज दिया.

नीता तेलंग को इंग्लैण्ड में IWCC को ये विश्वास दिलाना पड़ा कि भारतीय महिलाएं साड़ी में क्रिकेट नहीं खेलेंगी. उन्होंने विश्व कप के मैच देखे और अपने मिशन में सफ़ल होकर वापस आ गयीं. अब WCAI भारतीय क्रिकेट बोर्ड के ऊपर बढ़त बना चुका था. BCCI अब अपना महिला क्रिकेट विंग नहीं बना सकता था. उन्होंने महेंद्र शर्मा को मुंबई बुलाना चाहा लेकिन शर्मा लखनऊ में ही अड़े रहे.

शर्मा जानते थे कि भारतीय बोर्ड WCAI को अपने कब्जे में लेना चाहता था. IWCC से मान्यता पाने के बाद महेंद्र शर्मा ने महिला क्रिकेट को प्रमोट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने मीडिया का सहारा लिया और ख़ूब टूर्नामेंट ऑर्गनाइज़ करवाये.

साल 1975 को यूनाइटेड नेशन्स ने अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष के रूप में घोषित कर दिया. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और जगजाहिर है कि ये साल उनके लिए मुसीबत से भरा था. उन्होंने महिला क्रिकेट और उससे मिलने वाली पब्लिसिटी को कैश करना चाहा.

ऑस्ट्रेलिया की अंडर-25 महिला टीम को भारत बुलाया गया. ये टीम बगैर किसी मानदेय के यहां आयी थी. इस ऑस्ट्रेलियाई टीम से साउथ ज़ोन ने बैंगलोर में एक वॉर्म-अप मैच खेला. मैच की रिपोर्ट अख़बार में छपी. अगले दिन मालूम पड़ा कि साउथ ज़ोन की 3 खिलाड़ी सुधा शाह, फ़ॉज़िया खलीली और सूज़न इत्तीचेरिया उस भारतीय टीम के लिए चुन ली गयी थीं जिसे ऑस्ट्रेलिया से पुणे में खेलना था. ये तीनों लड़कियां बैंगलोर एयपोर्ट पर अपनी फ़्लाइट के इंतज़ार में थीं. इनके साथ, उसी वक़्त वहां मौजूद थे हिंदी फ़िल्मों के ऐक्टर विनोद खन्ना. करियर के हिसाब से विनोद खन्ना शानदार फ़ेज़ में चल रहे थे. सुधा, फ़ॉज़िया और सूज़न हिचकिचाते हुए विनोद खन्ना के पास पहुंचीं और ऑटोग्राफ़ मांगा. विनोद खन्ना ने ऑटोग्राफ़ देने से पहले एक सवाल पूछा -

"आप में से सुधा कौन है?"

विनोद के हाथ में एक किताब थी. उन्होंने उसका एक सादा पन्ना खोला और सुधा शाह से कहा,

"मुझे आपका ऑटोग्राफ़ चाहिये."

अख़बार में छप रही रिपोर्ट्स ने सुधा को मशहूर कर दिया था और विनोद खन्ना उनके प्रशंसकों में से एक थे. सुधा को अभी भी समझ में नहीं आ रहा था कि इतना बड़ा फ़िल्म ऐक्टर उनसे ऑटोग्राफ़ मांग रहा था. सुधा ने किताब के खाली पन्ने पर साइन किया और लिखा -

'बेस्ट विशेज़, सुधा शाह.'

आज उन्हीं सुधा शाह का जन्मदिन है. 

जब आप क्रिकेट के रिकॉर्ड्स छानेंगे तो पायेंगे कि अपने देश के लिए लगातार सबसे ज़्यादा टेस्ट मैच खेलने के मामले में सुधा शाह दूसरे नंबर पर हैं. सुधा शाह ने अपने करियर में 21 टेस्ट मैच खेले हैं. और अक्टूबर 1976 से फऱवरी 1991 के बीच उन्होंने ये सभी मैच लगातार खेले. अपने करियर में सुधा शाह ने भारतीय टीम की कप्तानी की और फिर महिला क्रिकेट टीम की कोच रहीं. एक मौके पर उन्हों बीच टूर में कोच के साथ-साथ मैनेजर भी बनाया गया.

सुधा चेन्नई में पैदा हुईं और वहीं पली-बढ़ीं. नंगाम्बक्कम नाम के एक छोटे से इलाके में, गुजराती पिता और मलयाली मां के साथ सुधा का बचपन निकला. जब वो अपने स्कूल में थीं, उन्हें मालूम पड़ा कि लखनऊ में महिला क्रिकेट असोसिएशन बन रहा था. गुड शेफ़र्ड कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने वाली सुधा, फ़ॉज़िया और सूज़न (वही तीन लड़कियां जो विनोद खन्ना से ऑटोग्राफ लेने पहुंची थीं) ने अपना क्रिकेट क्लब शुरू करने का फै़सला किया. ये आस-पास रहने वाली लड़कियों के घर जातीं और घरवालों से पूछतीं कि क्या वो अपने बच्चों को क्रिकेट खेलने भेजेंगे. आगे चलकर मद्रास की महिला क्रिकेट टीम बेहद मज़बूत हो गयी. इसकी जड़ें यहीं मिलती हैं. शुरुआती दौर में, जब महिला क्रिकेट बस पनप ही रहा था, सुधा शाह को सुनील गावस्कर और गुंडप्पा विश्वनाथ की बल्लेबाज़ी ने प्रेरित किया. वो मौका मिलते ही क्रिकेट मैच खेलने जातीं. खासकर बुची बाबू ट्रॉफ़ी और रणजी ट्रॉफ़ी.

सुधा ने आगे चलकर भारतीय महिला क्रिकेट को आकार देने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की. डायना एडुल्जी और शांता रंगास्वामी इस मामले में दो और बड़े नाम थे.

WCAI की महिला नेशनल क्रिकेट चैम्पियनशिप के दौरान टीमों को ट्रेन से ट्रैवेल करना होता था. देश के अति-दक्षिणी हिस्से से आने वाली लड़कियों को जब बनारस की ठण्ड से सामना करना पड़ा को उनकी परफ़ॉरमेंस पर असर पड़ा. ऐसे में सुधा ने अपने साथ गद्दा और रज़ाई बांधकर ले चलना शुरू कर दिया. ये एक बानगी है कि महिला क्रिकेट किस जगह पर था और सुधा शाह ने बाकी साथियों के साथ मिलकर उसे कहीं ऊपर पहुंचाया.

सुधा ने 18 साल की उम्र में भारतीय टीम में कदम रखा और टेस्ट मैचों में 601 रन बनाए. 1997 में तमिलनाडु के लिए खेलना बंद किया और क्रिकेट से दूरी बना ली. लेकिन साल भर बाद उन्होंने खेल में वापसी की और 1998 में वो भारतीय टीम की कोच बन गयीं.

जून 2018 में सुधा शाह को बीसीसीआई ने लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया. शांता रंगास्वामी के बाद ये अवॉर्ड पाने वाली वो दूसरी महिला खिलाड़ी थीं. 

इस स्टोरी के लिए रिसर्च किया है इंडिया टुडे ग्रुप के हमारे साथी केतन मिश्रा ने.