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पैसों की क़िल्लत, सोने की जगह नहीं, फिर ऑस्ट्रेलिया को ललकार कर हराया!

इस टीम में एक ऐसा प्लेयर भी था, जिसके खर्राटों से बाकी प्लेयर्स की नींद पूरी नहीं होती थी. लेकिन 17 मार्च 1996 को ये शिक़ायत खत्म हो गई.

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सनथ जयसूर्या ने बैटिंग का तरीका ही बदल दिया था! (तस्वीर - ब्रोकेन क्रिकेट, ट्विटर)

क्रिकेट. दुनिया के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले खेलों में से एक. ये इंडस्ट्री साल-दर-साल बढ़ती गई और एक आंकड़े के मुताबिक, आजकल इसकी वैल्यू 10,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की है. हालांकि, ये बढ़ोतरी धीरे-धीरे हुई. एक दौर ऐसा था, जब एक टेस्ट खेलने वाले देश के पास इतने पैसे तक नहीं थे, कि वो कोई इंटरनेशनल दौरा कर सके.

प्लेयर्स के पास रहने को घर नहीं थे, इसलिए वो कैप्टन के घर रहते थे. वहीं खाते-पीते, थोड़ी बहुत प्रैक्टिस-करते और वहीं सोते. हालांकि, इन प्लेयर्स की एक समस्या बहुत बड़ी थी. रात को सोते वक्त, पूरी टीम एक प्लेयर के खर्राटों से परेशान थी. कहीं और सुलाने का सवाल नहीं था, पैसे नहीं थे, सुविधा नहीं थी. तो जैसे-तैसे, काम चलाया गया.

और फिर अधूरी नींद की सारी शिक़ायतें 17 मार्च, 1996 को दूर हो गईं. क़िस्सा उस टीम का है, जिसके एक प्लेयर को अंपायर्स ने मैच के दौरान बॉलिंग करने से रोका था. वो टीम, जिसके देश में बम ब्लास्ट हुए और दूसरे देश वहां आने से मुकर गए. वो टीम, जिसके पास सोने भर की जगह और खाने भर के पैसे नहीं थे. उस टीम ने क्रिकेट का सबसे बड़ा ख़िताब जीता. वनडे वर्ल्ड कप जीता. उनका पहला वर्ल्ड कप. और वो भी उस टीम को हराकर, जिससे वो फ़ाइनल में टकराना चाहती थी. ललकार कर कह चुकी थी,

'फ़ाइनल में हमें ऑस्ट्रेलिया ही चाहिए.'

इस टीम के कप्तान थे अर्जुन राणातुंगा. और टीम थी श्रीलंका. अर्जुन ने कहा था, फ़ाइनल में हम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलना चाहते हैं. दरअसल ऑस्ट्रेलिया हाल ही में श्रीलंका जाने से मुकर गई थी. 31 जनवरी को कोलंबो में एक बम ब्लास्ट हुआ. द गार्ज़ियन की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें 80 लोग मारे गए और 1,200 के भी ज्यादा लोग घायल हुए थे. और इसीलिए ऑस्ट्रेलिया ने श्रीलंका जाने से साफ इनक़ार कर दिया.

इससे पहले, ऑस्ट्रेलिया में ही मुथैया मुरलीधरन के एक्शन पर सवाल खड़े हुए थे. टेस्ट के बाद वनडे सीरीज़ में भी उन्हें बॉलिंग करने से रोका गया था. टेस्ट्स के बाद उनका एक्शन क्लियर कर दिया गया था, पर ऐसी चीज़ों के बाद जो बट्टा लगता है, लग चुका था. विदेशी फ़ैन्स मुरली को दबी आवाज़ में 'चकर' कहने लगे थे.

ख़ैर, अब मामला घर का था. भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका मिलकर 1996 वर्ल्ड कप होस्ट कर रहे थे. स्थिति को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज़ ने फ़ैसला किया, श्रीलंका नहीं जाएंगे. बॉबी सिंपसन उस दौरान ऑस्ट्रेलियाई टीम के कोच थे. उन्होंने कहा था,

'जहां बम फट रहे होते हैं, वहां कौन जाना चाहेगा?'

मुरली के बॉलिंग एक्शन पर सवाल, तमाम बवाल और अब, देश में ना आने की बात. ऑस्ट्रेलिया की इन हरकतों को देख पूरा देश तिलमिला रहा था. और तिलमिला रहे थे वो 15 प्लेयर्स, जिनके कप्तान ने ऐलान कर दिया था, फ़ाइनल में मिलो हमसे.

हम ये क़िस्सा आपको आज क्यों सुना रहे हैं? क्योंकि वर्ल्ड कप सीज़न शुरू हो गया है. 2023 वर्ल्ड कप के आगाज़ पर हमने सोचा क्यों ना आपको वर्ल्ड कप के उन हीरोज़ की कहानी सुनाई जाए, जिन्हें टूर्नामेंट का सबसे शानदार प्लेयर चुना गया. वर्ल्ड कप के महारथी सीरीज़ में हम आपको केन विलियमसन (2019) से लेकर लांस क्लूज़नर (1999) तक की कहानी सुना चुके हैं. अब बारी है 1996 वर्ल्ड कप की, जिसमें सनथ जयसूर्या को इस मेडल का हक़दार चुना गया था.

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वर्ल्ड कप में क्या हुआ?

- कोलंबो में श्रीलंका को ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज़ से खेलना था. दोनों टीम्स आईं नहीं, वॉकओवर मिल गया.

- तीसरा मैच भारत से था, दिल्ली के कोटला में. सचिन तेंडुलकर ने 137 बॉल पर उतने ही रन बनाए, भारत को 271 तक पहुंचाया. पर सनथ जयसूर्या अलग प्लानिंग कर आए थे. 76 बॉल में 79 रन बनाकर इस बाएं हाथ के ओपनर ने श्रीलंका को 137 तक पहुंचा दिया था. बचा हुआ काम हसन तिलकरत्ने और कप्तान राणातुंगा ने कर दिया. आठ बॉल रहते श्रीलंका ने मैच जीत लिया.

- अगला मैच केन्या से था, वो केन्या, जिसने हाल ही में वेस्ट इंडीज़ को हराया था. कैंडी में खेले गए इस मुकाबले में श्रीलंका ने कई रिकॉर्ड्स बना दिए. 398 का टोटल- ये तब वनडे क्रिकेट का सबसे बड़ा टोटल था. 144 रन की जीत. इस मैच में अरविंद डि सिल्वा ने 145 रन ठोके. जयसूर्या ने टीम को शानदार शुरुआत दिलाई थी.

- फ़ैसलाबाद में क्वॉर्टरफ़ाइनल हुआ. श्रीलंका को इंग्लैंड से टकराना था. चेज़ को मास्टर कर चुकी इस टीम के खिलाफ़ इंग्लैंड ने पहले बैटिंग करने का फैसला लिया. 235 का टार्गेट. जयसूर्या की आंधी फिर चली. 44 बॉल, 82 रन. वर्ल्ड कप के इतिहास में सबसे शानदार ओपनिंग पारियों में से एक. जयसूर्या ने अपनी स्लो लेफ्ट-आर्म स्पिन से दो प्लेयर्स को आउट भी किया था. एक बार फिर, प्लेयर ऑफ द मैच.

- सफ़र कोलकाता पहुंचा. भारत ने श्रीलंका को फिर होस्ट किया. दोनों ओपनर्स दो रन पर वापस लौट गए, पर पारी को मिडल ऑर्डर ने संभाला. 252 का टार्गेट दिया गया. सचिन ने एक बार फिर वो किया, जो वह लगातार करते आए थे. 23 ओवर तक भारत 100 के क़रीब पहुंच चुका था, सिर्फ नवजोत सिंह सिद्धू आउट हुए थे. लेकिन तेंडुलकर के आउट होते ही, पूरी पारी बिखर गई.

98/2 से भारत 120/8 हो गई. 22 रन में छह विकेट. फ़ैन्स का गुस्सा छलका. ग्राउंड में बोतल से लेकर पत्थर, सब फेंके गए. पुलिस प्रोटेक्शन में दोनों टीम्स को ग्राउंड से बाहर ले जाया गया. कुछ देर बाद मैच शुरू करने की कोशिश फिर की गई. पर फिर वही हाल. मैच रेफरी ने श्रीलंका को विजयी घोषित कर दिया. जयसूर्या ने सात ओवर में सिर्फ 12 रन देकर तीन विकेट चटकाए. 2011 में इस मैच को फिक्स करने के आरोप लगे. इसपर द लल्लनटॉप ने एक डिटेल्ड वीडियो भी बनाया है. हम नीचे चिपका दे रहे हैं.

- फ़ाइनल की शाम. लाहौर के गद्दाफ़ी स्टेडियम की लाइट्स चमचमा रही थी. श्रीलंका की गाड़ी में अब तक कोई ब्रेक नहीं लगा था. सामने थी वो टीम, जिसे ललकारा गया था. वो टीम, जो 1987 में वर्ल्ड कप जीत चुकी थी. वॉ ब्रदर्स, रिकी पॉन्टिंग, शेन वार्न, माइकल बेवन, ग्लेन मैक्ग्रा जैसे दिग्गज़ों से भरी तगड़ी टीम. और सामने श्रीलंका. अरविंदा डि सिल्वा ने तीन विकेट लेकर ऑस्ट्रेलिया की समस्याएं बढ़ा दीं.

हालांकि, कंगारुओं ने फिर भी 241 रन बना लिए थे. उस दौर के हिसाब से ये टोटल ठीक था, पर श्रीलंका की हालिया फ़ॉर्म के हिसाब से कमतर. हालांकि, एशियाई देश को अच्छी शुरुआत नहीं मिली. जयसूर्या और उनके पार्टनर रोमेश कालूवितर्णा 23 रन पर ही लौट गए थे. असंका गुरुसिंहा और अरविंदा डी सिल्वा ने शानदार पार्टनरशिप बनाई. गुरुसिंहा के आउट होने के बाद कैप्टन राणातुंगा ने डी सिल्वा के साथ काम पूरा किया. 46.2 ओवर, 245 रन और श्रीलंका का पहला वर्ल्ड कप.

दुनिया तो दूर, श्रीलंका से वर्ल्ड कप जीतने की उम्मीद उनके फ़ैन्स तक ने नहीं की थी. पर राणातुंगा की कप्तानी, अरविंदा डी सिल्वा का प्रेशर सिचुएशन में शानदार प्रदर्शन और टीम का एटीट्यूड, इस टूर्नामेंट में सफलता के लिए अहम था. इन सबसे ज्यादा अहम था एक ओपनर का बिना डरे बैटिंग करना, और अपनी स्पिन से विकेट्स निकालकर देना.

सनथ जयसूर्या को 221 रन बनाने और सात विकेट चटकाने के लिए प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया. इस टूर्नामेंट में रोमेश कालूवितर्णा और जयसूर्या ने वनडे क्रिकेट में बैटिंग का तरीका ही बदल दिया. पहले 15 ओवर में अटैक करने का जो अप्रोच वीरेंद्र सहवाग से लेकर जॉस बटलर तक ने आगे बढ़ाया, उसे इन दोनों ने ही शुरू किया था.

इस ख़बर की शुरुआत में हमने आपको एक खर्राटेबाज़ के बारे में बताया था, जिसकी वजह से टीम के बाकी प्लेयर्स सो नहीं पा रहे थे. ये सनथ जयसूर्या ही थे. और उन्होंने टीम को दिए इस दर्द पर 17 मार्च, 1996 को मरहम लगाया. और इसके बाद टीम ने अपनी नींद पूरी की.

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