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रेलवे की नौकरी से लेकर एंबुलेंस चलाने तक, कमाल है इंडिया के पहले कॉमनवेल्थ मेडलिस्ट की स्टोरी!

राशिद अनवर ने पहली बार कॉमनवेल्थ में उतरते ही जीता था मेडल.

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राशिद अनवर (फोटो: फाइल इमेज)

भारतीय रेलवे. अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचा रही है. और साथ ही हमें दे चुकी है बहुत सारे उम्दा खिलाड़ी. इंडियन स्पोर्ट्स के कई दिग्गज हैं जिनका रेलवे से कोई ना कोई रिश्ता रहा है. फिर चाहे वो महेंद्र सिंह धोनी और निक्की प्रधान जैसे टीम गेम के इंटरनेशनल स्टार हों, या फिर तमाम ऐसे दिग्गज जिन्होंने पर्सनल इवेंट्स में कमाल किया.

कॉमनवेल्थ नज़दीक है. तो हमने सोचा कि क्यों ना आपको ऐसे ही एक स्टार के बारे में बताया जाय. इस खिलाड़ी का नाम राशिद अनवर था. और यह केडी जाधव से पहले भारतीय कुश्ती के स्टार थे. राशिद अनवर (Rashid Anwar) कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतने वाले पहले भारतीय थे. उन्होंने 1934 के एम्पायर गेम्स में ब्रॉन्ज़ मेडल जीता था.

जान लीजिए कि कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू में एम्पायर गेम्स के नाम से जाने जाते थे. और इनकी शुरुआत 1930 में हुई थी. पहली बार ये कनाडा के ओंटारियो शहर में आयोजित हुए. इसमें भारत की ओर से किसी एथलीट ने हिस्सा नहीं लिया. दूसरे ब्रिटिश एम्पायर गेम्स इंग्लैंड की राजधानी लंदन में हुए. इसमें भारत के छह खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया.

भारत के छह एथलीट्स ने 1934 कॉमनवेल्थ गेम्स में एथलेटिक्स और कुश्ती में हिस्सा लिया था. और यहीं पर राशिद अनवर ने देश का पहला मेडल जीता. कुश्ती की वेल्टरवेट कैटेगरी में उन्होंने तीसरा स्थान हासिल करते हुए ब्रॉन्ज़ मेडल अपने नाम किया था.

राशिद अनवर का जन्म 12 अप्रैल 1910 को हुआ था. भारतीय रेलवे में काम करने वाले राशिद की पोस्टिंग लखनऊ में थी. दावा किया जाता है कि वह वेल्टरवेट कैटेगरी में आठ बार से ज्यादा नेशनल चैंपियन रह चुके हैं. उन्होंने 1936 बर्लिन ओलंपिक्स में भी हिस्सा लिया था. वहां राशिद को दूसरे राउंड में हार का सामना करना पड़ा था.

इसके अलावा उन्होंने कई और इंटरनेशनल इवेंट्स में भी भाग लिया. दूसरे विश्व युद्द के बाद राशिद ने उस समय के चैंपियन ब्रिटिश रेसलर्स अल फुलर (Al Fuller) और बिली रिली (Billy Riley) को हराया. इसके बाद इंग्लैंड में राशिद अनवर के चर्चे होने लगे. लोग बातें करते थे कि कैसे एक गुलाम देश का पहलवान अपने विरोधियों को पछाड़ रहा है. और फिर इन चर्चाओं को और हवा तब मिली, जब राशिद ने प्रसिद्ध ओलम्पियन और रेसलर नार्मन मोरेल (Norman Morrel) को भी पटखनी दे दी.

इतना ही नहीं, माना जाता है कि अगर 1940 में ओलंपिक्स हुए होते, तो अनवर निश्चित रूप से मेडल जीत लेते. उस दौर में वो अपनी बेस्ट फॉर्म में थे और ओलंपिक्स मेडल के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे. लेकिन दूसरे विश्व युद्ध की वजह से इसका आयोजन नहीं हो सका. इस युद्ध के दौरान अनवर ने एंबुलेंस ड्राइवर के रूप में घायलों की मदद की थी.

हालांकि, 1957 में उन्होंने एक बार फिर रेसलिंग में वापसी की. 1959 में उन्होंने मशहूर कुश्ती चैंपियन हैंस स्ट्रीगर (Hans Streiger) को मात दी. और इसी के साथ उनके शानदार कुश्ती करियर का अंत हुआ. 1973 में लंदन में राशिद अनवर का निधन हो गया. कई रिपोर्ट्स में यह भी कहा जाता है कि उनका निधन 1983 में हुआ था.

जानने लायक है कि कॉमनवेल्थ की कुश्ती में भारत दूसरा सबसे सफल देश है. कुश्ती की ओवरऑल मेडल टैली में भारत, कनाडा के बाद दूसरे स्थान पर है. अभी तक भारत ने रेसलिंग में कुल 102 मेडल जीते हैं. इसमें 43 गोल्ड, 37 सिल्वर और 22 ब्रॉन्ज़ हैं.

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