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डियर ओलंपिक्स एथलीट्स बराबर सम्मान चाहिए, तो आलोचना झेलनी ही पड़ेगी!

Lakshya Sen और Olympics Medals पर प्रकाश पादुकोण की बात की बहुत चर्चा है. कई लोग मानते हैं कि उन्होंने ज्यादा कठोर बातें कर दीं. इस तरह से एथलीट्स की आलोचना नहीं करनी चाहिए. लेकिन हमें लगता है कि उन्होंने एकदम ठीक किया.

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प्रकाश सर लंबे वक्त से लक्ष्य सेन को ट्रेनिंग दे रहे हैं (X/beastieboy07)

प्रकाश पादुकोण. बीते जमाने के सबसे बड़े भारतीय बैडमिंटन स्टार. खूब चर्चा में हैं. 5 अगस्त, सोमवार को इन्होंने एक बयान दिया. इस बयान में प्रकाश एकदम आम आदमी की भाषा में बोले. उन्होंने देश के टॉप प्लेयर्स को आड़े हाथों लिया. ओलंपिक्स मेडल ना जीतने पर खूब सुनाया. सरकार की खूब तारीफ़ की. और अब इस पर भयंकर बवाल है.

पूर्व प्लेयर्स और कई जाने-माने लोग प्रकाश के पीछे पड़ गए हैं. लोग लगातार प्रकाश को सुना रहे हैं. और इनके खिलाफ़ जाने वालों में ओलंपिक्स मेडलिस्ट से लेकर, ओलंपिक्स में फ़ेल्ड एथलीट्स और फ़ैन्स तक शामिल हैं. लोगों का कहना है कि प्रकाश को इस तरह से प्लेयर्स की आलोचना नहीं करनी चाहिए थी.

लेकिन मेरा मानना है कि प्रकाश सर ने बिल्कुल ठीक किया. बिल्कुल ये प्लेयर्स की जिम्मेदारी है. उन्हें सोचना चाहिए कि कहां गलती हो रही है. अगर सारी मांगें पूरी की जा रही हैं, तो मेडल क्यों नहीं आ रहे. अगर सुविधाओं में कमी नहीं है, हर मांग पूरी हो रही है, तो मेडल्स आने ही चाहिए. और रही आलोचना की बात, तो ओलंपिक्स से पहले कहते हैं कि ये सही वक्त नहीं है.

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ओलंपिक्स के दौरान कहा जाता है, ये सही वक्त नहीं है. ओलंपिक्स के बाद कहा जाता है, अब जाने भी दीजिए. तो भाई आलोचना हो कब? कब वो वक्त आएगा, जब बराबर सपोर्ट की मांग करने वालों की बराबर आलोचना पर रोना नहीं मचाया जाएगा? हर दूसरे दिन, किसी भी गेम की तुलना क्रिकेट और क्रिकेटर्स से हो जाती है. और जरा ही आलोचना आते ही, पूरी कायनात डिफेंड करने आ जाती है.

अदर गेम्स के एथलीट आलोचना से परे क्यों हैं? हर चौथे साल नाकाम होने वालों से सवाल क्यों ना किया जाए? सवालों से भागना क्यों? अगर आप चाहते हैं कि मेडल लाने पर आपको सेलिब्रेट किया जाए, तो नाकाम होने पर आलोचना झेलने रोहित शर्मा थोड़े ना आएंगे. प्रकाश सर की आलोचना करने वालों ने उनकी बात सुनी. उन्होंने यही कहा ना,

'मैं थोड़ा निराश हूं कि हम बैडमिंटन में एक भी मेडल नहीं जीत पाए. हम तीन मेडल्स के दावेदार थे. इसलिए, मैं एक से भी खुश हो सकता था. मैं व्यक्तिगत तौर पर निराश हूं. इस बार सरकार, सपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया और फाउंडेशंस, TOPS, सभी ने अपना काम किया. इसलिए, मुझे इनसे कोई शिकायत नहीं है. मुझे नहीं लगता कि कोई भी इससे ज्यादा कर पाता, जो सरकार ने किया है. खेल मंत्रालय, Tops ने किया है. वक्त आ गया है कि प्लेयर्स भी कुछ जिम्मेदारी लें.

बीते तमाम साल हम कह सकते थे कि सुविधाएं और प्रोत्साहन इतना नहीं था. लेकिन, मैं सोचता हूं कि अब ये सब बेहतर है. खासतौर से टॉप 30 प्लेयर्स, मैं बस बैडमिंटन की बात नहीं कर रहा हूं. सारे स्पोर्ट्स में टॉप 30-40 प्लेयर्स जिनके पास मेडल जीतने का मौका था, उन्हें वो सब मिला, जो वह चाहते थे. कई बार, तो उनकी अनुचित मांगें भी पूरी की गईं.'

क्या प्लेयर्स से जिम्मेदारी लेने की उम्मीद करना गलत है? अगर सारे स्पोर्ट्स के टॉप-30 प्लेयर्स को सारी सुविधाएं देने के बाद, पेरिस गेम्स के आखिरी दिनों में हम तीन ब्रॉन्ज़ मेडल सेलिब्रेट कर रहे हैं, तो सवाल क्यों ना हों? सारे सुख, सारी सुविधाएं देने के बाद अगर आप ग्रुप के तीनों मैच हार रहे हैं. अगर आप 40 लोगों में 36-38 नंबर पर फ़िनिश कर रहे हैं. तो निश्चित तौर पर आपको जवाब देना चाहिए. और नहीं देना, तो ऐसी एक नौकरी बता दीजिए जहां लगातार बदतर प्रदर्शन के बावजूद सवाल ना पूछे जाएं?

ये आपकी नौकरी ही तो है ना? आप लोग प्रफ़ेशनल एथलीट हैं. पूरी दुनिया में, तक़रीबन हर प्रफ़ेशनल हर रोज खुद को साबित करता है. आप लोग नहीं कर पा रहे, तो सवाल होंगे ही. और प्रकाश सर ने बस सवाल ही किए. जिस एक प्लेयर का उन्होंने नाम लिया, वो लक्ष्य सेन हैं. उनके खुद के स्टूडेंट. रिपोर्ट्स थीं कि लक्ष्य को चोट लगी. लेकिन प्रकाश सर ने इसे खारिज़ कर दिया. उन्होंने कहा,

'नहीं, मुझे नहीं लगता. वहां कोई चोट नहीं थी. ये उनका तरीका है... वह फ़ेल होते ही रहते हैं. उनकी ये आदत बनती जा रही है. हमें कुछ एरियाज़ में काम करने की जरूरत है. हम उनके प्रदर्शन से खुश हैं, लेकिन मैं बैडमिंटन में मेडल ना आने से निराश हूं.'

इस बात पर विवाद करने वालों को इस विषय में और जानने की जरूरत है. हर कोच का अपना तरीका होता है. जसपाल राणा से लेकर जोस मोरीनियो तक, दुनिया भर में तमाम कोच हुए हैं जो अपने प्लेयर्स के साथ टफ़ रहते हैं. लेकिन तभी तक, जब  तक आप परफ़ॉर्म ना करें. परफ़ॉर्म करने पर आपको गोद में उठाने भी सबसे पहले यही आते हैं. डैले अली के साथ मोरीनियो की बातचीत नज़ीर है. किस स्पष्टता के साथ उन्होंने डैले को समझाया था.

दोनों को पता था कि ये चीजें रिकॉर्ड हो रही हैं. पब्लिक डोमेन में जाएंगी, लेकिन फिर भी मोरीनियो ने स्पष्टता रखने में कोई कोताही नहीं बरती. लोग हजार बार कहेंगे कि ये बातें पर्दे के पीछे होनी चाहिए. लेकिन नहीं. अगर तारीफ़ सामने हो रही है, तो आलोचना में क्या दिक्कत है? आपके मेडल जीतने के बाद, कोच आपकी तारीफ़ से पहले आपके कमरे में आने का इंतजार नहीं करता ना? तो आलोचना करते वक्त क्यों करे. इस आलोचना पर रिएक्ट करने का सबसे सही तरीका आपका प्रदर्शन होना चाहिए. कहीं और रिएक्ट करेंगे, तो विनोद कांबली से लेकर डैले अली तक, हजारों उदाहरण हैं. टॉप पोटेंशियल के टॉप प्लेयर ना बन पाने के.

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