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अमित रोहिदास, इंडियन हॉकी का वो सितारा, जो अकेले दम पर भारत को दो ब्रॉन्ज़ जिता गया

Odisha के एक छोटे से गांव में जन्मे Amit Rohidas इंडियन हॉकी टीम के बैकबोन बन चुके हैं. Dilip Tirkey को देखकर हॉकी स्टिक थामने वाले अमित की यहां तक पहुंचने की कहानी काफी संघर्ष से भरी हुई है.

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भारत की मेडल जीत में अमित रोहिदास का बड़ा योगदान रहा (फोटो: AP)

इंडियन हॉकी टीम (Indian Hockey Team). ओलंपिक्स में इस टीम का सुनहरा इतिहास रह चुका है. लेकिन बीते कुछ समय से, आठ बार की गोल्ड मेडलिस्ट टीम के पास बताने को बस इतिहास ही था. लेकिन अब वक्त बदल चुका है. इंडियन हॉकी का गोल्डन फेज दोबारा से शुरू हो चुका है. ओलंपिक्स (Paris Olympics 2024) में बैक टू बैक मेडल आ चुके हैं. टोक्यो के बाद अब पेरिस में भी अपना झंडा गाड़ा जा चुका है.

गुरुवार, 8 अगस्त 2024 को भारत ने स्पेन को 2-1 से हराकर लगातार दूसरी बार ब्रॉन्ज़ मेडल अपने नाम किया. टीम की इस जीत में कप्तान हरमनप्रीत सिंह (Harmanpreet Singh) और गोलकीपर पीआर श्रीजेश (PR Sreejesh) समेत वैसे तो अनेकों हीरो रहे, लेकिन जिस एक खिलाड़ी ने स्पेन के खिलाफ मैच में हर किसी का दिल जीत लिया, उसका नाम है अमित रोहिदास (Amit Rohidas).

आपमें से कई ने फुटबॉल में पाओलो मालदीनी और नेस्टा को खेलते हुए देखा होगा. वो नहीं तो सर्जियो रामोस और जॉर्जियो किलीनी तो आपको जरूर याद होंगे. जब ये प्लेयर्स अपनी टॉप फॉर्म पर होते थे, तो अच्छे से अच्छे धुरंधर फॉरवर्ड्स इनके सामने पानी मांगने को मजबूर हो जाते थे. ठीक, इसी लेवल के एक डिफेंडर इंडियन टीम के पास भी हैं. बस वो खेल फुटबॉल नहीं, बल्कि हॉकी है. अमित रोहिदास, दुनिया की किसी भी टीम के खिलाफ गोलपोस्ट के सामने दीवार की तरह की डटकर खड़े हो जाते हैं. फिर क्या मजाल, इनके आसपास से कोई बॉल लेकर आगे चला जाए. जरूरत पड़ने पर 150 KMPH की रफ्तार से आ रहे शॉट्स को भी बेहिचक अपनी बॉडी पर खाने को रेडी रहते हैं.

स्पेन के खिलाफ मैच में तो ऐसा कई बार हुआ. लेकिन चाहे वो बॉल की चोट हो, या स्पेनिश प्लेयर्स की स्पीड...रोहिदास के कभी न हार मानने वाले जज़्बे को नहीं भेद पाई . नतीजा ये रहा कि भारत की झोली में फिर से एक ओलंपिक्स मेडल आ गया. ओडिशा के एक छोटे से गांव से निकले रोहिदास के यहां तक पहुंचने का सफर कैसा रहा. आइये जानते हैं.

# कौन हैं अमित रोहिदास?

अमित का जन्म 6 मई 1993 को सुंदरगढ़ जिले के छोटे से गांव सौनामारा में हुआ. हॉकी की नर्सरी माना जाने वाला सुंदरगढ़ जिला, जहां से दिलीप टिर्की जैसे जांबाज खिलाड़ी निकल चुके हैं. शुरुआत गांव के बच्चों के साथ हॉकी स्टिक पकड़ने से हुई. दिलीप टिर्की को हॉकी खेलते देख अमित ने भी उनके जैसा बनने की ठान ली थी.  उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. लेकिन उनके माता-पिता ने आर्थिक स्थिति को अमित और हॉकी की राह में अड़चन नहीं बनने दिया. साल 2004 में, 11 साल की उम्र में रोहिदास को पनपोश स्पोर्ट्स हॉस्टल में दाखिला दिलाया गया. जहां उनके करियर की शुरुआत एक गोलकीपर के तौर पर हुई.

लेकिन रोहिदास को फॉरवर्ड प्लेयर के तौर पर खेलना ज्यादा पसंद था. ऐसे में उन्होंने फ़ॉरवर्ड के तौर पर अपनी किस्मत आजमानी शुरू कर दी. फिर कोच विजय लाकड़ा ने उनके असली टैलेंट को पहचानते हुए उन्हें डिफेंडर बनने की सलाह दी. यहां से शुरुआत हुई एक लड़के के दुनिया का सबसे बेहतरीन डिफेंडर बनने की.

उनका सेलेक्शन जल्द ही ओडिशा की हॉकी टीम में हो गया. जहां वो रेगुलर स्टार्टर बन गए. फिर साल 2009 में जूनियर एशिया कप के लिए भारतीय टीम में शामिल किया गया. ये टूर्नामेंट अमित की किस्मत को बदलने वाला साबित हुआ. रोहिदास शानदार प्रदर्शन के लिए 'प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट' चुने गए. यहां से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. जल्द ही वो भारतीय अंडर -21 टीम के उप-कप्तान बने. फिर, उनका चयन भारतीय टीम में हो गया.

उन्होंने साल 2013 में इंटरनेशनल डेब्यू किया. लेकिन रुपिंदर पाल सिंह, बीरेंद्र लाकड़ा और हरमनप्रीत सिंह जैसे दिग्गज डिफेंडर्स की मौजूदगी में अमित के लिए टीम में जगह बनाना आसान नहीं रहा. वो साल 2014 से 2017 तक टीम से बाहर रहे. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.  अमित रोहिदास इस दौरान रेलवे स्पोर्ट्स प्रमोशन बोर्ड (RSPB) के लिए खेले. जहां कोच सुनील कुमार सिंह ने उनके टैलेंट को काफी निखारा. अगस्त 2017 में अमित की फिर से इंडियन टीम में वापसी हुई. यूरोपियन टूर के लिए. यहां से अमित ने इंडियन टीम में ना सिर्फ अपनी जगह पक्की कर ली, बल्कि वो इंडियन डिफेंस की बैकबोन भी बन गए.

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2017 एशिया कप में भारत की जीत में अमित का अहम योगदान रहा. जबकि वो 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स और चैंपियंस ट्रॉफ़ी 2018 में सिल्वर जीतने वाली इंडियन हॉकी टीम का हिस्सा रहे. लेकिन अभी उन्होंने अपना बेस्ट बचाकर रखा हुआ था. जो आया साल 2020 के टोक्यो ओलंपिक्स में. अमित रोहिदास की पेनल्टी-कॉर्नर स्पेशलिस्ट्स के शॉट को नाकाम करने की क्षमता ने उन्हें बाक़ी खिलाड़ियों से अलग किया. जर्मनी के खिलाफ ब्रॉन्ज़ मेडल मैच में तो अमित रोहिदास ने खूंटा ही गाड़ दिया. मैच के दौरान जर्मनी ने 13 पेनल्टी कॉर्नर हासिल किए. लेकिन रोहिदास की अगुवाई में भारतीय बैकलाइन ने कमाल का खेल दिखाते हुए उनसे जीत छीन ली. टोक्यो 2020 ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें साल 2021 में अर्जुन पुरस्कार से नवाज़ा गया.

अमित रोहिदास ने FIH प्रो लीग 2022 में पहली बार भारत की कप्तानी की. जबकि FIH हॉकी विश्व कप 2023 में भारतीय टीम के उप-कप्तान थे. एशियन गेम्स 2023 में अमित रोहिदास ने छह गोल भी दागे और भारत को यहां भी गोल्ड मेडल दिलाने में अहम भूमिका अदा की.

पेरिस ओलंपिक्स के दौरान अमित ने हर मुकाबले में कमाल का खेल दिखाया. लेकिन इंग्लैंड के खिलाफ क्वॉर्टर फाइनल मुकाबले में भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया. एक गलती के कारण अमित को मैच के दूसरे क्वॉर्टर में ही रेड कार्ड मिल गया. इस वजह से उन्हें उस मैच से बाहर जाना पड़ा. साथ ही लगा एक मैच का बैन. जर्मनी के खिलाफ हुए सेमी-फाइनल मैच में बैन के कारण वो नहीं खेल पाए. उनकी गैरमौजूदगी में पूरे मुकाबले के दौरान इंडियन डिफेंस बिखरा-बिखरा नजर आया. नतीजा ये रहा कि भारत इस मुकाबले को 3-2 से हार गया.

अमित रोहिदास की कहानी संघर्ष, साहस और संकल्प की कहानी है. उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें भारतीय हॉकी का सबसे भरोसेमंद डिफेंडर बना दिया है. वो 160 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मुक़ाबलों में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. साथ ही जीत चुके हैं दो ओलंपिक्स ब्रॉन्ज़.

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