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Neeraj Chopra Story! वजन कम करने से शुरू हुई कहानी, जो ओलंपिक्स में इतिहास रच गई!

Neeraj Chopra ने Paris Olympics 2024 में सिल्वर मेडल अपने नाम किया है. बचपन में भारी-भरकम वजन वाले नीरज दुनिया के इतने शानदार खिलाड़ी कैसे बने, आइये जानते हैं.

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नीरज चोपड़ा (फोटो: PTI)

नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra). इंडियन स्पोर्ट्स हिस्ट्री का सबसे बड़ा नाम. ये बात हम इतने कॉन्फिडेंस के साथ इसलिए लिख रहे, क्योंकि ये नाम सुनते ही आपको पता होता है कि मेडल आने वाला है. जैसे कहते हैं,"Success is no accident," और नीरज ने बार-बार इस बात को साबित किया है. साल 2014 में बैंकॉक में हुए यूथ ओलंपिक्स क्वॉलिफिकेशन से मेडल्स का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो आज भी जारी है. पेरिस ओलंपिक्स (Paris Olympics 2024) में नीरज ने सिल्वर मेडल अपने नाम किया है.

गोल्ड गया पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के थ्रोअर अरशद नदीम के पास. जिन्होंने 92.97 मीटर का नया ओलंपिक्स रिकॉर्ड बना दिया. पेरिस गए 117 भारतीय एथलीट्स के बीच इस बार ओलंपिक्स में सिल्वर मेडल जीतने वाला इकलौता नाम नीरज चोपड़ा का ही है. जिस नीरज से हर इवेंट में हर भारतीय को आस रहती है, क्या वो शुरू से ही जैवलिन थ्रो की दुनिया में कदम रखना चाहते थे या कहानी कुछ और है? आइए जानते हैं.

# कौन हैं नीरज चोपड़ा?

एकदम शुरू से जानते हैं. नीरज का जन्म 24 दिसंबर 1997 को हुआ. हरियाणा के पानीपत जिले के खांद्रा गांव में. पिता सतीश कुमार एक छोटे किसान हैं. बचपन में नीरज काफी भारी-भरकम थे. बचपन में एक बार पापा ने उन्हें कुर्ता दिलाया था. जिसे पहनकर वो स्कूल गए तो लोगों ने उन्हें 'सरपंच' कह दिया. उनके लगातार बढ़ते वजन से घरवाले भी परेशान होने लगे थे. ऐसे में अक्सर घरवालों को एक सॉल्यूशन नजर आता है, जिम. नीरज के भी घरवालों ने उन्हें जिम भेजना शुरू किया. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. किसी वजह से वो जिम बंद हो गया.

घरवालों के सामने अब बड़ी मुसीबत आ गई. आसपास के गांव में और कोई ऐसा जिम नहीं था. इस वजह से घरवालों ने 11 साल के नीरज को स्टेडियम भेजने का फैसला किया. पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में. अब वजन ज्यादा था तो थोड़ा आलस भी था ही. नीरज वहां जाकर रनिंग की जगह अक्सर वॉक करने लगे. एक दिन उनकी मुलाकात नेशनल लेवल के जैवलिन थ्रोअर जय चौधरी उर्फ जयवीर से हुई. उन्होंने नीरज से जैवलिन को थ्रो करने के लिए कहा. ये बिल्कुल ऐसा था जैसे थॉर ने कैप्टन अमेरिका के हाथ में पहली बार अपना हथौड़ा दे दिया हो. और अब कैप्टन अमेरिका ने हथौड़ा उठा लिया है तो, थैनॉस की पिटाई होनी ही थी.

नीरज ने भाला उठाया और पूरा मैदान लांघ गए. लिटरल मीनिंग में पूरा मैदान नहीं. लेकिन नीरज का थ्रो देख जयवीर दंग रह गए. इस बारे में जय ने TOI को दिए एक इंटरव्यू में बताया,

‘मैंने एक शाम नीरज को भाला फेंकने के लिए कहा. उन्होंने पहले थ्रो में ही 35-40 मीटर दूर भाला फेंक दिया. किसी अनुभवहीन खिलाड़ी के लिए ये शानदार था. वजन ज्यादा होने के बाद भी नीरज की बॉडी काफी फ्लेक्सिबल थी और उनका जो अप्रोच था, वो एक अनुभवी खिलाड़ी जैसा था.’

नीरज को अब पता चल चुका था कि उन्हें करियर में आगे क्या करना है. जय ने नीरज के परिवार वालों से बात की और साल 2011 बेहतर फैसिलिटी की तलाश में दोनों पंचकुला शिफ्ट कर गए. ताऊ देवीलाल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में. यहां नीरज को साथ मिला कोच नसीम अहमद का. जिन्होंने नीरज के टैलेंट को निखारा. नीरज ने स्टेट लेवल जूनियर चैंपियनशिप और फिर जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल्स जीत लिए.

साल 2013-14 आते आते नीरज का जूनियर लेवल पर भौकाल सेट हो चुका था. अब बारी थी इंटरनेशनल लेवल पर जलवा दिखाने की. साल 2013 में नीरज ने यूक्रेन में हुई वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप में हिस्सा लिया. यहां उन्हें मेडल तो नहीं मिला लेकिन नीरज अगले टारगेट के लिए रेडी हो चुके थे. साल 2014 में बैंकॉक में हुए यूथ ओलंपिक्स क्वॉलिफिकेशन में सिल्वर के तौर पर अपना पहला इंटरनेशनल मेडल जीता. यहां से नीरज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 2015 में इंटर यूनिवर्सिटी एथलेटिक्स टूर्नामेंट में नीरज ने 80 मीटर से ज्यादा दूरी तक भाला फेंक वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया.

अब बारी थी जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप की. साल 2016 में ये टूर्नामेंट पोलैंड में होना था. नीरज तब तक अपनी अच्छी खासी पहचान बना चुके थे. ऐसे में उनसे मेडल की उम्मीदें भी जाग गई थी. कम से कम एक ब्रॉन्ज की. लेकिन नीरज के इरादे कुछ और ही थे. उन्होंने यहां 86.48 मीटर तक भाला फेंक दिया और बन गया इंटरनेशनल रिकॉर्ड. जूनियर लेवल पर तब इतना क्या, इसके आस-पास भी किसी का भाला नहीं पहुंचा था. नीरज को इस शानदार प्रदर्शन का इनाम भी मिला. सेना ने 2016 की वर्ल्ड चैंपियनशिप के बाद नीरज को जूनियर कमीशंड ऑफिसर बनाते हुए नायब सूबेदार की पदवी दे दी. नीरज अब नायब सूबेदार नीरज चोपड़ा बन चुके थे.

रियो ओलंपिक्स में जाते-जाते रह गए

अब आपके मन में भी वो सवाल आया होगा कि नीरज ने जब वर्ल्ड रिकॉर्ड बना ही दिया, तब वो रियो ओलंपिक्स 2016 में क्यों नहीं खेल पाए? दरअसल, नीरज ने यह कारनामा 23 जुलाई को किया था. जबकि ओलंपिक्स क्वॉलिफिकेशन के लिए कट ऑफ डेट 11 जुलाई थी. ऐसे में महज 12 दिन के अंतर से नीरज ओलंपिक्स का टिकट पाने से चूक गए.

इसके बाद नीरज ने साउथ एशियन गेम्स और एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. साल 2018 में गोल्ड कोस्ट में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में 86.47 मीटर के जैवलिन थ्रो के साथ गोल्ड मेडल जीता. जबकि इसी साल एशियन गेम्स में 88.07 मीटर तक भाला फेंक इतिहास रच दिया.

चोट से आई बाधा

साल 2019 नीरज के लिए मुश्किलों भरा रहा. कंधे की चोट के कारण उन्हें सर्जरी करानी पड़ी और वो कई महीनों तक इस खेल से दूर रहे. वो 2019 में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी हिस्सा नहीं ले पाए. जनवरी 2020 में उन्होंने फील्ड पर वापसी की. साउथ अफ्रीका में हुए टूर्नामेंट में 87.86 मीटर भाला फेंक नीरज ने टोक्यो ओलंपिक्स का टिकट हासिल कर लिया. फिर कोरोना महामारी की वजह से नीरज भी बाकी एथलीट्स की तरह काफी समय फील्ड से दूर रहे. हालांकि वो पटियाला में ट्रेनिंग करते रहे.

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टोक्यो ओलंपिक्स में रचा इतिहास

कोविड के बाद नीरज ने कई टूर्नामेंट्स में हिस्सा लिए और मेडल्स भी जीते. अब बारी थी टोक्यो ओलंपिक्स 2020 की. जहां उनके कंधों पर करोड़ों भारतीयों की उम्मीदें थी. नीरज ने उन्हे निराश भी नहीं किया. 7 अगस्त 2021 जैवलिन थ्रो के फाइनल्स में नीरज ने इतिहास रच दिया. 87.58 मीटर भाला फेंक नीरज ने गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया. वो इस खेल में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय बन गए. जबकि किसी इंडिविजुअल इवेंट में गोल्ड जीतने वाले अभिनव बिंद्रा के बाद दूसरे भारतीय.

यहां से नीरज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. अमेरिका के यूजीन में आयोजित हुई 18वीं वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उन्होंने 88.13 मीटर भाला फेंक कर सिल्वर मेडल जीता. वहीं 5 मई 2023 को दोहा में वांडा डायमंड लीग (Doha Diamond League) का खिताब अपने नाम किया. जबकि वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए. नीरज ने ये उपलब्धि 27 अगस्त 2023 को देर रात खेले गए फाइनल मुकाबले 88.17 मीटर तक भाला फेंक कर हासिल की.

नीरज की ये सक्सेस सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उनके कठिन परिश्रम, अटूट समर्पण, और अद्वितीय साहस की गाथा है. उनका हर थ्रो, हर एफर्ट, उसी अडिग कॉन्फिडेंस का प्रूफ है जो इम्पॉसिबल को भी पॉसिबल बना देता है. जब नीरज मैदान में उतरते हैं, तो जैसे वक्त थम जाता है, और पूरा देश एक सुर में कह उठता है- अब तो जीत पक्की है. खेल के प्रति जुनून और अनुशासन नीरज को भीड़ से अलग खड़ा करता है. संघर्ष की आंच में तपकर नीरज ने खुद को कुंदन की तरह निखारा है. आज वो सिर्फ एक लेजेंडरी एथलीट ही नहीं, बल्कि करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं.

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