RCB ने वो कर दिखाया जो कुछ घंटे पहले तक असंभव माना जा रहा था. दूसरों का क्या कहूं, मुझे खुद यक़ीन नहीं था. पहले आठ में से सात मैच में हार. सीजन वहीं ख़त्म था अपना. लेकिन ये टीम उठी. धीरे-धीरे उम्मीदें जगानी शुरू की. मैच दर मैच, मज़ाक़ बनता रहा. बाहर का शोर बढ़ता रहा. फ़ैन्स, आलोचक, जानकार, कॉमेंटेटर्स! किसी ने भाव नहीं दिया. ऑफिशल ब्रॉडकास्टर पर बैठे पूर्व क्रिकेटरों के पूरे समूह ने टॉस के वक़्त तक CSK को आगे रखा. टॉस हुआ, पहले बैटिंग मिली. दस ओवर्स तक बची खुची उम्मीदें भी ख़ाक हो चुकी थीं.
गुरु कबीर खान की सीख, RCB ने ऐसे किया असंभव को संभव!
Virat Kohli ने जो शुरू किया, रजत पाटीदार, कैमरन ग्रीन, डीके और मैक्सी ने उसे अंजाम तक पहुंचाया. वो भी तब जब पहले दस ओवर्स तक बची खुची उम्मीदें भी ख़ाक हो चुकी थीं. ऐसी पिच जहां गेंद जबरदस्त टर्न ले रही थी.
रन ही नहीं बन रहे थे. हालात ये थे कि मैच के बाद डुप्लेसी खुद बोले,
‘पहले बैटिंग करते हुए, मैं सोचता हूं कि ये अभी तक मेरे द्वारा खेली गई T20 की सबसे कठिन पिच थी. बारिश के बाद वापस आते वक्त मैं और विराट 140-150 की बात कर रहे थे.’
लेकिन रन बने. विराट कोहली ने जो शुरू किया, रजत पाटीदार, कैमरन ग्रीन, डीके और मैक्सी ने उसे अंजाम तक पहुंचाया. स्कोर 218 चला गया. वो भी ऐसी पिच पर, जहां नोएडा गिरी गेंद ग़ाज़ियाबाद जा रही थी. जहां सैंटनर और तीक्षणा ने आठ ओवर्स में 48 रन दिए. बचे हुए बारह ओवर्स में 170 खींचने का मतलब समझते हैं? कहां समझ पाएंगे, आप मिडल में थोड़े ना थे. और ये चीज़ किसी बॉक्स या सोफ़े से समझ ना आती है. खैर, आगे बढ़ते हैं.
बिग शो ने पहली ही गेंद पर रुतुराज गायकवाड़ को निपटा दिया. पूरी दुनिया में बैठे RCB फ़ैन्स उछल पड़े. थोड़ी देर के लिए रहाणे, रविंद्र ने डराया, लेकिन बाक़ी वक्त मैच मुट्ठी में रहा. CSK निपट गई. लास्ट ओवर में हीरोगिरी नहीं चली, ना तलवार भांजने का मौक़ा मिला. मैच 18 की जगह 27 रन से जीता गया. तमाम कैल्कुलेशंस, रंगे गए सफ़ेद पन्ने काम आए. RCB एलिमिनेटर खेलेगी. अपने दम पर. पहले आठ में से सात मैच हारने के बाद इनके यहां तक आने के एक परसेंट चांस बताए गए थे. और इस एक परसेंट को अपने दम पर इन लड़कों ने सौ परसेंट में बदला. जो डेडिकेशन पहले हाफ़ में मिसिंग थी, वो लौटी.
और इसका बड़ा क्रेडिट जाता है रजत पाटीदार को. पाटीदार ने भारत की पिचेज पर पहली गेंद से स्पिनरों को गेम से बाहर कर दिया. पूरे सीजन लोगों ने शिवम् दुबे के गुण गाए, लेकिन खेल तो ये एमपी का लड़का कर रहा था. माही की टिप्स के बिना, खेल पलट दिया. पाटीदार ने लगातार दो सौ के आसपास की स्ट्राइक रेट से रन बनाए. ये चीज़ आपको आंकड़ों में नहीं दिखेगी क्योंकि इनका पहला हाफ़ बहुत ख़राब गया था, लेकिन जैसी रिकवरी रजत ने की, वो क़ाबिले तारीफ़ है.
यश दयाल का ज़िक्र भी तो ज़रूरी है. कॉमेंट्री कर रहे मुरली कार्तिक ऑन रिकॉर्ड इन्हें कचरा बोल गए थे. लेकिन, यश ने कार्तिक समेत तमाम ट्रोल्स को दिखा दिया कि रिंकू के पांच छक्के कहीं पीछे छूट चुके हैं. ये वो यश हैं जिनकी रगों में अब बर्फ़ बहती है. Ice cold. एकदम सर्द. माही जैसे फ़िनिशर का गेम ऐसे फ़िनिश किया कि हमेशा शांत रहने वाले धोनी भी ग़ुस्सा गए.
ये परीकथा लिखते वक्त शायद ही किसी ने सोचा होगा कि इसमें बोलर मैक्सी की ऐसी तारीफ़ होगी. लेकिन स्पिन की मददगार पिच पर मैक्सवेल ने ऐसा फेंका, लग ही नहीं रहा था कि वो पार्ट टाइम बोलर हैं. डुप्लेसी का वो कैच कौन भूल सकता है! कुल मिलाकर RCB लगातार एक टीम के जैसी खेली.
शुरुआत से ही इस टीम के बारे में कहा जाता है कि यहां टीम नहीं स्टार्स होते हैं. लेकिन इस टीम ने बीते छह मैचेज में लोगों की ये सोच बदल दी. किसी मैच में नॉनस्ट्राइकर एंड पर खड़ा कोहली विल जैक्स के छक्के देख विस्मित हो रहा था, तो किसी मैच में कोहली का स्ट्राइक रेट तमाम लॉबीज को लथेर दे रहा था.
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RCB की ये जीत, ये प्रदर्शन बहुत ख़ास है. क्योंकि ये तब आया जब सबने इन्हें ख़त्म मान लिया था. शायद इनका ये सफ़र एलिमिनेटर में रुक भी जाए. लेकिन वो मायने नहीं रखता. मायने ये रखता है कि जब इनके पास चुपचाप डूब जाने का ऑप्शन था, लोग इन्हें डूबा हुआ मान चुके थे, तब इन्होंने तैरना चुना. और मान ली वो बात, जो गुरु कबीर खान ने कही थी- ‘कोई तो चल ज़िद फड़िए, डूबे, तरिए या मरिए!’
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