The Lallantop

सुनील छेत्री ने बताया, पापा के साइन कर स्कूल में बड़ा कांड कर दिया था

सुनील छेत्री बताते हैं कि उन्हें अफ़सोस है कि उन्होंने अच्छे से पढ़ाई नहीं की. अब उन्हें लगता है कि पढ़ाई खेल के मुकाबले आसान होती है.

post-main-image
भारतीय फुटबॉलर सुनील छेत्री

दिग्गज फुटबॉलर और भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सुनील छेत्री (Sunil Chhetri) हाल ही में लल्लनटॉप के स्पेशल प्रोग्राम ‘गेस्ट इन द न्यूज़रूम’ में पहुंचे थे. यहां पर उन्होंने अपने जीवन के तमाम अनुभवों पर बात की. इस दौरान उन्होंने अपने बचपन के किस्से भी साझा किए. बकौल सुनील वो बचपन में बहुत शरारती थे. स्कूल डायरी पर जब भी उनकी किसी शिकायत के लिए उनके पिताजी का साइन मंगाया जाता तो वो अपने पापा के साइन को खुद कर देते थे. ऐसे ही उन्होंने एक बार पापा के साइन की कॉपी कर स्कूल से टीसी कटवाई थी.

सुनील छेत्री से सवाल पूछा गया कि स्पोर्ट्स में उनकी दिलचस्पी के कारण उनके पिताजी नाराज हो गए थे. प्रतिष्ठित आर्मी पब्लिक स्कूल को भी उन्होंने स्पोर्ट्स के चक्कर में छोड़ दिया. इस पर सुनील ने कहा, 

‘मैं मार खाने लायक ही था. मैंने अपने पिता को बिना बताए स्कूल से टीसी ले ली थी. जब भी मेरी स्कूल डायरी पर टीचर्स मेरी गलतियों और शिकायतों को लिखकर देती थीं, जिस पर मुझे अपने पिता के सिग्नेचर लेकर आने को कहा जाता था, तो मैं उन सब पर खुद से साइन कर देता था. मैं पहले दिन से स्कूल डायरी पर अपने पिता के सिग्नेचर को कॉपी कर देता था. लेकिन अब मैं उन्हें बताता हूं कि आपका सिग्नेचर पूरे देश में फेमस है, क्योंकि अब वही मेरा ऑटोग्राफ है. तो आप टेंशन मत लीजिए. पर उस समय पिता को अपनी शैतानियों के बारे में बताने की हिम्मत नहीं होती थी.’

जब सुनील छेत्री से उनकी शैतानियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया, 

‘आपने क्लास बंक कर दी, आपने ये बदतमीजी कर दी, आपने ग्लास तोड़ दिया, ये सब. जितने ख़राब काम होते थे, उसमें मैं डायरेक्टली या इनडायरेक्टली इन्वॉल्व रहता था. इस बात की मुझे कोई ख़ुशी नहीं है. पर ऐसा ही था.’

सुनील छेत्री अपने स्कूल के दिनों के अनुभवों के बारे में आगे बताते हैं, 

‘मेरी बहन और मैं एक स्कूल में थे. वो कक्षा सात और मैं कक्षा आठ में था. हम दोनों सगे भाई-बहन थे. पर स्कूल में हर पीटीएम में उसके मम्मी-पापा हरदम आते थे. और मेरे नहीं आते थे. तो स्कूल में टीचर्स को लगता था कि मैं और मेरी बहन कजिन भाई-बहन हैं. मैंने अपनी बहन को साफ़ कहा था कि यही हमारी सच्चाई है कि आप मेरी कजिन बहन हो. आपके माता-पिता आपके हैं. उनको स्कूल आना है, वो आते रहेंगे. मेरे माता-पिता पीटीएम में नहीं आने वाले.

 

मेरे पेरेंट्स शायद ही कभी पीटीएम आए थे. क्योंकि मैं उन्हें कभी अपने पीटीएम के बारे में बताता ही नहीं था. जो होगा खुद झेल लेता था पर उनको नहीं बताता था. टीचर्स ने बहुत बार मुझे पेरेंट्स को बुलाने को कहा. ये सब से मैं सिर्फ इस वजह से बच पाता था क्योंकि मैं किसी तरह से पढ़ाई को मैनेज कर लेता था. मुझे लगता है मैं थोड़ा तेज स्टूडेंट था. थोड़ा कम पढ़कर. कम वक्त देकर भी मैं एवरेज स्टूडेंट था. अगर मुझे किसी में अच्छा होना होता था तो मैं कैसे भी करके उसे कर लेता था.’

हालांकि सुनील छेत्री को अच्छे से पढ़ाई ना करने का अफसोस है. उन्होंने बताया, 

‘मुझे इस बात का अफसोस है कि मैंने पढ़ाई को वक्त नहीं दिया. क्योंकि अब मुझे समझ आया कि पढ़ाई तो बहुत आसान काम है… खेलना मुश्किल है. आप आज जिसके सामने खेल रहे हो कल वही सेम खिलाड़ी नहीं होगा. कोई और खिलाड़ी आएगा, स्ट्रेटेजी बदलनी पड़ेगी. हर दिन आपको कुछ अलग सोचना पड़ेगा. स्पोर्ट्स बहुत डायनामिक है. मैंने 24 साल फुटबॉल खेल लिया, लेकिन मुझे अभी भी दिक्कत होती है किसी नए खिलाड़ी के सामने. वो कुछ नया लेकर आएगा.

 

फिर मुझे लगा कि पढ़ाई तो आसान है. मैंने क्यों नहीं पढ़ा. पेड़ पर चढ़ना मुश्किल है. झूठ बोलना मुश्किल है. घर से भाग जाना मुश्किल है. पढ़ना मुश्किल नहीं था. खाना मिल रहा था, पढ़ाई करना था, सो जाना था. मस्त लाइफ थी. लेकिन आसान काम पसंद नहीं था उस समय. तो मैं अब पढ़ाई करता हूं. समसामयिक विषयों पर विकास दिव्यकीर्ति जैसे टीचर्स के लेक्चर्स सुनता हूं. जिससे मैं इतना काबिल बन जाऊं कि जब किसी ऐसी जगह बैठूं जो स्पोर्ट्स सेंट्रिक न हो तो कुछ बात कर पाऊं.’

सुनील छेत्री देश के उन चुनिंदा फुटबॉलर्स में से एक हैं जिन्होंने भारत के दो सबसे पुराने क्लब ईस्ट बंगाल और मोहन बागान दोनों के लिए खेला है. छेत्री को 2011 में अर्जुन अवार्ड, 2019 में पद्म श्री और 2021 में खेल रत्न मिला है.

ये सभी बातें  सुनील छेत्री ने लल्लनटॉप के गेस्ट इन दी न्यूज़रूम शो में बताई हैं. आप पूरा इंटरव्यू लल्लनटॉप ऐप पर 3 अगस्त को दोपहर 12 बजे देख सकते हैं.

वीडियो: आखिर कौन है मिडिल क्लास, क्या है परिभाषा?