
महाबत खान के राज के दौरान जूनागढ़ की संसद इसी बिल्डिंग में बैठती थी.
20 फरवरी 1948 को वोटिंग हुई. 1 लाख 90 हजार 688 लोगों ने लाल और हरे रंग के बैलेट बॉक्स में अपने वोट डाले. लाल रंग भारत के लिए था, जबकि हरा रंग पाकिस्तान के लिए था. वोटिंग में 91 लोगों ने पाकिस्तान के पक्ष में वोट दिया, जबकि 1 लाख 9 हजार 688 लोगों ने भारत में रहने के पक्ष में वोट दिया था. नतीजे आने से पहले ही नवाब महाबत खान खुद पाकिस्तान भाग गया था. जूनागढ़ के इतिहासकार परिमल रूपाणी के मुताबिक नवाब कुत्तों का शौकीन था. उस वक्त उसके कुत्तों पर 800 से लेकर 1000 रुपये महीने तक का खर्च था. इसके अलावा नवाब को बंगले बनवाने का बहुत शौक था. जब वो भारत छोड़कर जाने लगा तो उसने अपनी कुछ बेगमों को भारत में ही रहने दिया, जबकि अपने साथ वो कुत्तों को लेकर गया था. उसकी बनवाई इमारत आज भी कराची में मौजूद है.
वोटिंग के बाद जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया. जूनागढ़ के इतिहासकार ने इस कहानी को लल्लनटॉप के साथ शेयर किया है, उसे देखिएः
अब इसी जूनागढ़ के लोग एक बार फिर से अपना वोट देने और अपनी सरकार बनाने के लिए तैयार हैं. इस जूनागढ़ में पांच विधानसभाएं हैं. इन पांच विधानसभाओं में तीन पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि दो सीटें बीजेपी के खाते में हैं. 1. मानावादर

बीजेपी ने इस बार नितिनभाई (बाएं) को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस से जवाहरभाई चावडा ही उम्मीदवार हैं.
इस सीट से पिछली दो बार से कांग्रेस के जवाहरभाई चावडा विधायक हैं. 2007 और 2012 के चुनाव में जवाहरभाई ने बीजेपी के रतिभाई सुरेजा को चुनाव में शिकस्त दी है. जीत का अंतर करीब 4 हजार वोटों का रहा है. बीजेपी ने इस बार यहां से नितिनभाई बालजीभाई फदादू को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस की ओर से यहां से फिर से जवाहरभाई चावडा को ही उम्मीदवार बनाया गया है. इस विधानसभा में पटेल और अहीर मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. पटेल बीजेपी से नाराज हैं और उन्होंने हार्दिक के नेतृत्व में आंदोलन भी किया है. ऐसे में पाटीदारों की नाराजगी एक बार फिर से बीजेपी को भारी पड़ सकती है. इस विधानसभा में पूरे साल पानी की दिक्कत बनी रहती है. कपास का भाव नहीं मिलने से भी यहां के किसानों में बीजेपी सरकार के प्रति नारजगी है.
2. जूनागढ़

महेंद्र मसरू (बाएं) पिछले छह बार से बीजेपी के विधायक हैं. वहीं कांग्रेस के भीखाभाई उनके सामने मैदान में हैं.
लगातार छह बार से विधायक रहे महेंद्रभाई मसरू सातवीं बार विधायक बनने के लिए बीजेपी के टिकट पर मैदान में हैं. महेंद्रभाई पूरे गुजरात में लोहाना समुदाय के एक मात्र विधायक हैं. इनकी सादगी के चर्चे पूरे गुजरात में है, जो रोडवेज बस से विधानसभा जाते हैं. उन्होंने अपना पहला चुनाव 1990 में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर जीता था. 1995 में भी महेंद्रभाई निर्दलीय ही लड़े और जीते. इसके बाद वो बीजेपी में शामिल हो गए और लगातार जीत रहे हैं. 2012 के चुनाव में महेंद्रभाई मसरू ने कांग्रेस के भीखाभाई को 13 हजार से अधिक वोटों से हराया था. इस सीट पर सबसे ज्यादा ब्राह्मण और लोहाना समुदाय के मतदाता है. खुद मसरू भी लोहाना समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. कांग्रेस ने इस सीट पर फिर से भीखाभाई पर ही दाव लगाया है. महेंद्र मसरू भले ही छह बार से विधायक रहे हैं, लेकिन विकास के नाम पर उनके खिलाफ भी नाराजगी देखने को मिल रही है.
मसरूभाई से पूरी बातचीत का वीडियो देखिए: 3.विसावदर

विसावदर से बीजेपी के किरितभाई पटेल (बाएं) उम्मीदवार हैं. उनके सामने कांग्रेस के हर्षदभाई रबाडिया हैं.
1995 में यहां से केशुभाई पटेल चुनाव लड़ते आए थे. गुजरात के मुख्यमंत्री रहे केशुभाई ने 2012 में गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाकर यहां से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. 2014 में उन्होंने स्वास्थ्य कारणों के चलते इस्तीफा दे दिया. उन्होंने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय भी कर दिया था. उपचुनाव हुए तो बीजेपी ने केशुभाई के बेटे भरत पटेल को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन भरत भाई पटेल कांग्रेस के हर्षदभाई रिबाडिया से चुनाव हार गए. बीजेपी ने यहां से किरीटभाई पटेल को चुनावी मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस से हर्षदभाई रिबाडिया उम्मीदवार हैं. यहां पर पाटीदारों की संख्या ज्यादा है, जिससे हार्दिक पटेल यहां पर अहम किरदार निभा सकते हैं. विधायक हर्षदभाई के साथ कई बार हार्दिक पटेल मंच साझा कर इसका संकेत भी दे चुके हैं. इस विधानसभा के लोगों को भी पीने के पनी की खासी दिक्कत है. इसके अलावा फसल खराब होने के बाद किसानों को फसल बीमा नहीं मिल पाया है, जिससे वो खासे नाराज हैं. किसान हर बार प्रीमियम भर रहे हैं, लेकिन उन्हें बीमे की रकम नहीं मिल पा रही है.
4. केशोद

अरविंद लाडानी (बाएं) बीजेपी के विधायक और उम्मीदवार हैं. उनके सामने कांग्रेस के जयेश लाडानी हैं.
केशोद सीट से बीजेपी के अरविंद केशवभाई लाडानी विधायक हैं. 2012 के चुनाव में उन्होंने कोतादिया मगनभाई करशनभाई को लगभग 8 हजार वोटों से हराया था. इस बार बीजेपी से अरविंद केशवभाई ने फिर से टिकट मांगा था, लेकिन बीजेपी ने उनका टिकट काटकर देवाभाई पूजाभाई मालम को उम्मीदवार बना दिया. इसकी वजह से अरविंद समर्थकों में खासी नाराजगी है. यहां कांग्रेस ने जयेश कुमार वी लाडानी को उम्मीदवार बनाया है. इस क्षेत्र में भी पीने के पानी की दिक्कत है, जिससे लोगों में विधायक के प्रति नाराजगी थी. इसके अलावा खराब सड़कें और सिंचाई के पानी की किल्लत यहां की सबसे बड़ी समस्या है.
5. मांगरोल-मालियागरोल

कांग्रेस विधायक बाबूभाई वाजा (बाएं) के सामने बीजेपी के भगवानजीभाई करगटिया उम्मीदवार हैं.
2012 में जब चुनाव हुए तो बीजेपी के राजेशभाई चुडासमा ने जीत हासिल की थी. उन्होंने कांग्रेस की चंद्रिकाबेन चुडासमा को हराया था. चंद्रिका बेन चुडासमा कांग्रेस से 2002 और 2007 में सीट जीत चुकी थीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राजेश चुडासमा को लोकसभा का उम्मीदवार घोषित कर दिया, जिसके बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. उपचुनाव हुए तो बीजेपी की ओर से लक्ष्मणभाई रामभाई यादव उम्मीदवार थे. कांग्रेस ने बाबूभाई के वाजा को उम्मीदवार बनाया था. बाबूभाई के वाजा ने बीजेपी उम्मीदवार को हराकर ये सीट जीत ली. इस बार बीजपी की ओर से भगवानजी भाई करगटिया उम्मीदवार हैं. कांग्रेस ने बाबूभाई के वाजा को यहां से उम्मीदवार हैं. मांगरोल सीट पर कोली समाज के वोटरों की संख्या ज्यादा है और वो यहां पर निर्णायक भूमिका में हैं. इस क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी की है. इसके अलावा खेती के लिए भी पानी की उपलब्धता कम है, जिससे यहां के किसानों में नाराजगी है.

जूनागढ़ की अब्दुल्ला बिल्डिंग.
गिरनार हिल की गोद में बसे इस शहर को समय-समय पर हिंदू, मुस्लिम बौद्ध और जैन धर्म का प्रभाव रहा है. यह मुस्लिम शासक बाबी नवाब के राज्य जूनागढ़ की राजधानी थी, जिसे आज मंदिरों का शहर कहा जा सकता है. दो भागों में बंटे इस शहर में एक मुख्य शहर है और दूसरा है अपरकोट. मुख्य शहर के चारों ओर दीवारों से किलेबंदी की गई है, जबकि अपरकोट पुराना दुर्ग है, जो शहर से बहुत ऊपर बना हुआ है. माना जाता है कि जब कृष्ण ने द्वारका को अपनी राजधानी बनाया था, तो उनके लोगों ने इस अपरकोट का निर्माण करवाया था. अपरकोट मौर्य और गुप्त शासकों के लिए भी मजबूत साबित हुआ, क्योंकि इस किले ने पिछले 1000 साल में 16 आक्रमणों का सामना किया है. अपरकोट का प्रवेशद्वार हिंदू तोरण स्थापत्य कला का अच्छा नमूना है. यहां पर नीलम और कांडल नाम की दो तोपें भी रखी हुई हैं, जो मिस्र में बनी थीं.
जूनागढ़ के पुराने शहर का नाम इसके पुराने किले के नाम पर रखा गया है. इस किले में पूर्व-हड़प्पा काल के स्थलों की खुदाई हुई है. ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक शहर को नौवीं शताब्दी में बनाया गया था, जो चूड़ासमा राजपूतों की राजधानी थी. यह एक रियासत थी. इस रियासत पर मौर्य शासक अशोक (लगभग 260-238 ई.पू.) रुद्रदमन (150 ई.) और स्कंदगुप्त (लगभग 455-467) ने शासन किया है. 100-700 ई. के दौरान बौद्धों द्वारा बनाई गई गुफ़ाओं के अलाव स्तूप, कई मंदिर और मस्जिदें इस शहर का इतिहास बयान करने के लिए काफी हैं. 15वीं शताब्दी तक राजपूतों का गढ़ रहे जूनागढ़ पर 1472 में गुजरात के महमूद बेगढ़ा ने कब्जा कर मुस्तफ़ाबाद नाम दिया. महमूद बेगढ़ा ने यहां एक मस्जिद भी बनवाई, जो अब खंडहर हो चुकी है.

जूनागढ़ का किला.
इस शहर की बड़ी खासियतों में से एक ये भी है कि यहां गिरनार जाने के रास्ते पर सम्राट अशोक के लगवाए 14 शिलालेख देखे जा सकते हैं. इन शिलालेखों पर शक राजा रुद्रदमन और स्कंदगुप्त के खुदवाए अभिलेख भी मिलते हैं. रुद्रदामन के अभिलेख को ही संस्कृत भाषा का पहला शिलालेख माना जाता है. इसके अलावा जूनागढ़ में गुजरात का सबसे पुराना प्राणीउद्यान है, जो 500 एकड़ में फैला हुआ है. एक वक्त में गिर के शेरों की संख्या में कमी आने लगी थी, जिसके बाद जूनागढ़ के नवाब ने 1863 में इसे बनवाया था. इसमें अब भी शेर के अलावा बाघ, तेंदुआ, भालू, गीदड़, जंगली गधे, सांप और चिड़िया पाई जाती हैं, जिन्हें देखने के लिए दूर-दराज से लोग यहां आते हैं.

बौद्ध गुफाएं.
जूनागढ़ में बौद्ध गुफाएं भी हैं, जो चट्टानों को काट कर बनाई गई हैं. इस गुफा के खंभे, एंट्री गेट, पानी इकट्ठा करने के लिए बनान कुंड, चैत्य हॉल, वैरागियों का प्रार्थना कक्ष और चैत्य खिडकियां स्थापत्य कला का अच्छा नमूना हैं. खापरा-कोडिया की गुफाएं देखने भी दूर-दराज से लोग आते हैं. इसके अलावा यहां पर अड़ी-काड़ी वेव और नवघन कुंआ है, जिसे चूडासमा राजपूतों ने बनवाया था. ये ऐसे कुंए थे, जिनमें एक बार पानी आने के बाद लड़ाई के दौौरान दो साल तक पानी से भरे रहते थे. अड़ी-कड़ी वाव तक पहुंचने के लिए 120 पायदान नीचे उतरना होता है, जबकि नवघन कुएं की हगराई 52 मीटर है. कुओं तक पहुंचने के लिए गोलाकार सीढियां बनी हैं. जूनागढ़ में जामी मस्जिद भी है, जिसे रानकीदेवी का निवास स्थान माना जाता है. मोहम्मद बेगड़ा ने जूनागढ़ फतह के दौरान (1470 ईस्वी) अपनी विजय की याद में इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया था.

जूनागढ़ का वेरावल बंदरगाह. तस्वीर 114 साल पुराने बंदरगाह की है.
जूनागढ़ में मूंगफली, कपास, ज्वार, बाजरा, तिलहन, दलहन और गन्ने की खेती होती है. इस शहर में वेरावल और पोरबंदर दो प्रमुख बंदरगाह भी हैं. जूनागढ़ में बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने का काम भी होता है. जूनागढ़ में उद्योगों का कोई खास विकास नहीं हुआ है. खेती और टूरिज़म ही यहां का मुख्य आधार है. यहां की खेती भी बारिश पर आधारित है, इसलिए हर चुनाव में पीने का पानी और सिंचाई का पानी ही मुख्य मुद्दा रहता है. सौराष्ट्र नर्मदा अवतरण सिंचाई योजना के जरिए प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात के हर गांव तक पानी पहुंचाने का वादा किया है.

धीरूभाई अंबानी (बीच में) जूनागढ़ के ही रहने वाले थे. उनक बेटे अनिल (बाएं) और मुकेश देश के सबसे बड़े कारोबारी हैं.
इस जूनागढ़ से एक और शख्स का गहरा नाता है, जिसे लेकर विपक्ष हमेशा से पीएम मोदी पर हमलावर रहता है. वो हैं मुकेश अंबानी. मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के पिता धीरूभाई अंबानी का जन्म भी इसी शहर में हुआ था. कहा जाता है कि धीरूभाई अंबानी इन्हीं गिरनार की पहाड़ियों पर सप्ताह के आखिरी दिनों में आने वाले टूरिस्टों को पकौड़े बेचा करते थे.
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