The Lallantop

T Dilip: इंडिया की फील्डिंग सुधारने वाला वो जादूगर, जिसके बारे में हमें बहुत देर से पता चला

मोमबत्ती के जलने के लिए मोम का गलना ज़रूरी होता है. टी दिलीप जैसे टीचर्स वही मोम हैं - आर अश्विन.

post-main-image
टी दिलीप की कहानी सुन इंसपायर हो जाएंगे! (फ़ोटो - BCCI)

2014 में एक हॉलिवुड मूवी आई थी. नाम था 'मिलियन डॉलर आर्म'. मूवी देखी है, तो इंडियन कनेक्शन जानते होंगे. नहीं देखी, तो हम बता देते हैं. अमेरिका से एक बेसबॉल स्काउट जॉन हैम भारत आता है, अच्छे थ्रोअर्स को ढूंढने. बेसबॉल की टेक्निकैलिटी में नहीं फंसेंगे. आसान भाषा में समझिए. एक ऐसा प्लेयर, जो बॉल को तेज़ी से फेंक सके, और वो भी एकदम सटीक.

2008 में 'मिलियन डॉलर आर्म' नाम का एक कंपटीशन भारत में कराया गया. इसमें दिनेश पटेल और रिंकू सिंह नाम के दो प्लेयर्स को चुना गया था. यानी ये मूवी सच्ची कहानी पर आधारित थी. सोचने वाले ने कितना कमाल सोचा होगा. क्रिकेट-प्रेमी देश से ऐसे लड़कों को ढूंढना, जिनका कंधा मज़बूत हो और थ्रो सटीक. अब आपको लिए चलते है असली कहानी की ओर.

2008 में IPL की शुरुआत हुई. डेक्कन चार्जर्स नाम की टीम भी शामिल हुई. दूसरे सीज़न का टाइटल जीत भी लिया. इस टीम का बेसबॉल से एक कनेक्शन था. माइक यंग. बेसबॉल प्लेयर, जिन्हें डेक्कन चार्जर्स का फील्डिंग कोच बनाया गया था. ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट टीम के साथ काम कर चुके माइक का IPL से रिश्ता नया-नया था. इससे टीम के प्लेयर्स की थ्रोइंग और कलेक्शन में काफ़ी सुधार देखने को मिला. रिकी पॉन्टिंग के दौर में ऑस्ट्रेलिया की फील्डिंग, क्रिकेट में नए आयाम सेट कर रही थी. उसके पीछे भी माइक ही थे.

माइक यंग ने डेक्कन चार्जर्स की फील्डिंग की काया पलट दी (सोर्स - स्पोर्ट्सकीड़ा)

माइक स्लिप कैचिंग प्रैक्टिस करवाने के लिए बेसबॉल बैट का इस्तेमाल करते थे. इससे बॉल में ज्यादा रेव्स आते थे, माने वो हवा में और ज़्यादा घूमती थी और इससे कैच पकड़ना ज्यादा मुश्किल हो जाता था. माइक यंग के साथ एक भारतीय भी था, जो डेक्कन चार्जर्स के प्लेयर्स के साथ यंग का कम्यूनिकेशन बेहतर करने के साथ-साथ फील्डिंग भी सुधार रहा था. नाम है, टी दिलीप. जी हां, वही टी दिलीप, जो फिलहाल BCCI की वीडियोज़ में टीम इंडिया के प्लेयर्स को फील्डिंग अवॉर्ड्स दे रहे है, और खूब तारीफ़ें कमा रहे हैं.

कौन हैं टी दिलीप?

अगर आप पुराने क्रिकेट फैन हैं तो आपने कई दौर के प्लेयर्स के नाम रिवाइज़ कर लिए होंगे और फिर सोचा होगा, ये बंदा इंडिया के लिए कब खेला? जवाब है, कभी नहीं. हैदराबाद में पैदा होने वाले इस लड़के के पिता को स्पोर्ट्स में रत्ती-भर भी दिलचस्पी नहीं थी. उन्होंने साफ़ कह दिया था, क्रिकेट नहीं खेलना है, पढ़ाई करो. पर खेल का नश्शा, रोके कहां रुके लड़का!

दिलीप का फर्स्ट-क्लास करियर आम प्लेयर्स की तुलना में काफ़ी देर शुरू हुआ. हैदराबाद जूनियर टीम में जगह मिली और फिर सीनियर टीम के लिए भी खेले. हालांकि, दिलीप समझ चुके थे, उन्हें कुछ और करना था. में वो कहते हैं,

'मैंने देखा, अपने खेलने के दिनों में ही मैं 8-9 साल के बच्चों को सिखा रहा था. जब ये बच्चे मेरे सिखाए हुए शॉट्स मैच में या नेट्स में खेलते थे, तब मुझे बहुत खुशी मिलती थी. मुझे इससे ही स्पार्क मिला. मैं भी उस दौर में मदद ढूंढ रहा था, जिससे मेरा गेम और इंप्रूव हो सके, जिससे मैं और बड़े लेवल पर खेल सकूं.'

सीखने-सिखाने को थोड़ा नज़दीक से समझने के लिए दिलीप ने 2004 में BCCI का लेवल-1 कोर्स कर लिया. कोचिंग करने का तब कोई टार्गेट नहीं था. लेकिन उनका मन ऐसा लगा कि उन्होंने इस कोर्स में फोड़ दिया. अगले दो साल तक दिलीप खुद भी खेल रहे थे, साथ ही एक ज़ोनल टीम की कोचिंग भी कर रहे थे.

फिर आई फैसले की घड़ी. क्या सबकुछ छोड़कर क्रिकेटिंग करियर पर ध्यान देना है, या आगे का सोचना है? दिलीप बताते हैं,

2007 में मैंने कोचिंग करने का फैसला लिया, और फिर BCCI का लेवल 2 पूरा किया… 

टी दिलीप से बातचीत में रविचन्द्रन अश्विन कहते हैं,

एक क्रिकेटिंग कम्यूनिटी के तौर पर, हम लोग भी कई बार बाहरी लोगों को स्वीकार नहीं करते हैं, जिन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट नहीं खेला हो. पर कोचिंग और टीचिंग में यही समानता है. हम सब स्कूल जाते हैं. कोई भी टीचर जो हमें कंप्यूटर साइंस, मैथ्स, फिज़िक्स या केमेस्ट्री पढ़ाते हैं, वो साइंटिस्ट, इंजीनियर, या डॉक्टर नहीं रहे हैं. वो पूरी जिंदगी सिर्फ टीचर्स रहे हैं. आज के इंजीनियर, डॉक्टर, साइंटिस्ट, सबको इन टीचर्स ने ही पढ़ाया है. मोमबत्ती के जलने के लिए मोम का गलना ज़रूरी होता है. ये टीचर्स वही मोम हैं.

टेस्ट क्रिकेट के सबसे शानदार बॉलर्स में से एक अश्विन जब दिलीप के लिए ये बात कहते हैं, तब वो उनकी कहानी को बखूबी बयां कर रहे हैं. दिलीप टीम इंडिया का हिस्सा कैसे बने, अब वो जान लीजिए.

एम एस धोनी और विराट कोहली की कैप्टेंसी में टीम इंडिया की फील्डिंग में ख़ासा सुधार आया. इसके पीछे आर श्रीधर को क्रेडिट जाता है. श्रीधर ने टीम इंडिया की फील्डिंग पर खूब मेहनत की और विराट कोहली, रविन्द्र जडेजा और केएल राहुल जैसे प्लेयर्स को बेहतर फील्डर्स बना दिया. 2021 के बाद ये ज़िम्मा थमाया गया दिलीप को. इस चोटी पर चढ़ने तक दिलीप का सफर कैसा रहा?

अपनी स्टेट टीम की जूनियर टीम्स को कोच करने से दिलीप की कहानी शुरू हुई. वहां से IPL और फिर NCA तक का सफ़र तय किया गया. 2012 से ही दिलीप कई ज़ोनल क्रिकेट अकादमियों के साथ काम करते रहे हैं. धीरे-धीरे उनके काम को देखा जाने लगा, तो नेशनल क्रिकेट अकादमी से बुलावा आ गया. दिलीप अपने टार्गेट तक पहुंच गए थे. वो NCA में युवा भारतीय क्रिकेटर्स के साथ काम करना चाहते थे. इससे पहले डेक्कन चार्जर्स वाला स्टिंट हो ही चुकी थी. उसी दौर में अपनी अकादमी चलाने के लिए दिलीप बच्चों को मैथ्स का ट्यूशन दिया करते थे. स्पोर्ट्स और पढ़ाई का कितना सही मिक्स है ना?

पीटीआई से बात करते हुए BCCI के एक सोर्स ने कहा,

'दिलीप बहुत मेहनती कोच हैं. वो माइक यंग के असिस्टेंट के तौर पर काम कर चुके हैं. लेवल 2 और लेवल 3 कोर्सेस में उनका प्रदर्शन उम्दा रहा था. इसके बाद उन्होंने आर. श्रीधर के साथ काम किया. उन्होंने कई सालों तक BCCI का 150-दिन सालाना काम वाला कॉन्ट्रैक्ट मिलता रहा.'

दिलीप लगे रहे. NCA में कड़ी मेहनत कर वो राहुल द्रविड़ की नज़र में आ गए थे. जब द्रविड़ NCA के हेड बने, उन्होंने सुनिश्चित किया कि दिलीप को इस मेहनत का रिवॉर्ड मिले. उन्हें इंडिया के टूर्स पर भेजा जाने लगा. वो लगातार शुभमन गिल, यशस्वी जायसवाल और तिलक वर्मा जैसे टैलेंट्स के साथ काम कर रहे थे. आगे चलकर उन्हें टीम इंडिया का फील्डिंग कोच नियुक्त कर दिया गया.

एशिया कप और फिर वनडे वर्ल्ड कप 2023

एशिया कप में टीम इंडिया की फील्डिंग आम रही थी. कई कैच ड्रॉप हुए, और इसपर कोचिंग स्टाफ की खूब किरकिरी भी हुई. दिलीप अपना काम जानते थे. उन्होंने वनडे वर्ल्ड कप से पहले एक हेल्दी कंपटीशन शुरू किया, बेस्ट फील्डर का. इससे टीम की यूनिटी और मूड, दोनों पर पॉज़िटिव इफ़ेक्ट पड़ा. प्लेयर्स फील्डिंग करते हुए जी-जान लगा रहे हैं, और अच्छे कैच पकड़कर इशारा कर रहे है, 'कोच, वो फील्डिंग वाला अवार्ड अबकी बार मेरा!'

वनडे वर्ल्ड कप में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ टीम इंडिया से फील्ड में कई ग़लतियां हुईं. हालांकि, अगले ही मैच से इसमें एक बार फिर सुधार देखने को मिला. कुलदीप यादव और मोहम्मद सिराज जैसे फील्डर्स को सुधारने का क्रेडिट दिलीप को दिया जा रहा है. दिलीप के बारे में कैप्टन रोहित और कोच द्रविड़, दोनों कह चुके हैं कि कैसे उनके इस आइडिया से टीम की बॉन्डिंग मज़बूत हुई है. और ये चीज़ आपने-हमने, सबने देखी भी है. कई फ़ैन्स का कहना है कि फील्डिंग अवार्ड वीडियोज़ में प्लेयर्स की दोस्ती ऐसी लग रही है, मानो स्कूल के दोस्त हों.

दिलीप जैसे टीचर/कोच/मेंटॉर 50 ओवर वाले वर्ल्ड कप जैसा एक बड़ा टूर्नामेंट जीतने के लिए कितने ज़रूरी होते हैं, ये किसी भी चैंपियन टीम से पूछने पर पता चल जाएगा.  

वीडियो: मोहम्मद सिराज ने बोलिंग के बाद फील्डिंग में जो किया मज़ा ही आ गया