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संभलो कि सुयोग न जाए चला

आज 3 अगस्त को जन्मदिन है मैथिली शरण गुप्त का. तो आज पढ़िए उनकी ये मोटिवेशनल कविता.

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मध्य प्रदेश में हर साल 3 अगस्त को कवि दिवस मनाया जाए. ये फैसला वहां की राज्य सरकार ने लिया. ऐलान किया संस्कृति राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने. 3 अगस्त हिंदी साहित्य के लिए खास तारीख है. इसी तारीख को सन 1886 में जन्में मैथिली शरण गुप्त. यूपी के झांसी, चिरगांव में. 12 साल की उम्र में कविता लिखनी शुरू की. लेकिन ब्रजभाषा में. क्योंकि यही तबका चलता हुआ पैटर्न था. लेकिन आगे जाकर एकदम शुद्ध हिंदी वाली भाषा पर आ गए. उनके जन्मदिन पर ये कविता पढ़िए. जिंदगी ने जिनको धर के रगड़ा है या हालात ने हारने पर मजबूर किया है. उनके लिए ये कविता लिखी गई है. कि वो इसे मोटिवेशनल स्पीच भर न समझें. जिंदगी को इसी लाइन पर आगे ले जाएं.

नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को नर हो, न निराश करो मन को.

संभलो कि सुयोग न जाय चला कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला समझो जग को न निरा सपना पथ आप प्रशस्त करो अपना अखिलेश्वर है अवलंबन को नर हो, न निराश करो मन को.

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहां फिर जा सकता वह सत्त्व कहां तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो उठके अमरत्व विधान करो दवरूप रहो भव कानन को नर हो न निराश करो मन को.

निज गौरव का नित ज्ञान रहे हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे सब जाय अभी पर मान रहे कुछ हो न तज़ो निज साधन को नर हो, न निराश करो मन को.

प्रभु ने तुमको कर दान किए सब वांछित वस्तु विधान किए तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो फिर है यह किसका दोष कहो समझो न अलभ्य किसी धन को नर हो, न निराश करो मन को.

किस गौरव के तुम योग्य नहीं कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं जान हो तुम भी जगदीश्वर के सब है जिसके अपने घर के फिर दुर्लभ क्या उसके जन को नर हो, न निराश करो मन को.

करके विधि वाद न खेद करो निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो बनता बस उद्‌यम ही विधि है मिलती जिससे सुख की निधि है समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को नर हो, न निराश करो मन को कुछ काम करो, कुछ काम करो...

स्रोत: कविता कोश
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‘पूछो, मां-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं’

‘ठोकर दे कह युग – चलता चल, युग के सर चढ़ तू चलता चल’

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जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख'

‘दबा रहूंगा किसी रजिस्टर में, अपने स्थायी पते के अक्षरों के नीचे’