हैरिस शील्ड के एक मैच में फड़कर ने एक पारी में 10 विकेट अपने नाम किए थे. डीबी देवधर. इंडियन क्रिकेट के ग्रैंड ओल्डमैन. उस वक्त वो महाराष्ट्र की टीम के कप्तान हुआ करते थे. उन्हें जब फड़कर के बारे में पता चला तो उन्होंने लड़के को रणजी ट्रॉफी खेलने के लिए बुला लिया. लड़के को बड़ा ब्रेक मिला. वो मौका चूका नहीं. अपने टैलेंट के दम पर टीम इंडिया में जगह हासिल की.
डीबी देवधर ने दत्तू फड़कर को महाराष्ट्र के लिए रणजी खेलने का मौका दिया था.
महाराष्ट्र का कोल्हापुर अपनी चप्पलों, ऐतिहासिक इमारतों और खान-पान के लिए मशहूर है. इस लिस्ट में एक नाम जोड़ लीजिए. क्रिकेट इतिहास से जुड़ा. 12 दिसंबर 1925 को इसी शहर में दत्तू फड़कर पैदा हुए थे. एक संयोग देखिए, ठीक 22 साल बाद 12 दिसंबर को ही सिडनी में दत्तू फड़कर क्रिकेट के मैदान पर डेब्यू कर रहे थे.
पहले टूर का हीरो
साल था 1947. अगस्त के महीने में देश को नई-नई आज़ादी हासिल हुई थी. दो महीने बाद आज़ाद भारत की क्रिकेट टीम पहला दौरा करने ऑस्ट्रेलिया जा रही थी. ये दौरा नवंबर 1947 में शुरू होकर फ़रवरी 1948 तक चला. डॉन ब्रैडमैन की कप्तानी वाली ऑस्ट्रेलिया की टीम ने पहला मैच पारी और 226 रनों के अंतर से जीता था.
दूसरे टेस्ट में दत्तू फड़कर को डेब्यू करने का मौका मिला. पहले बैटिंग करने उतरी इंडियन टीम 95 रन पर 6 विकेट गंवा चुकी थी. तब फड़कर ने इंडिया की पारी संभाली. अपने पहले टेस्ट की पहली पारी में फड़कर ने 51 रन बनाए. किसी इंडियन बल्लेबाज द्वारा ऑस्ट्रेलिया में डेब्यू मैच में बनाया गया सबसे बड़ा स्कोर. ये रिकॉर्ड अभी पिछले साल तक अटूट था. 71 साल बाद टूटा. जब मयंक अग्रवाल ने दिसंबर 2018 में मेलबर्न में अपने पहले टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 72 रनों की पारी खेली.
मयंक अग्रवाल ने मेलबर्न में अपने डेब्यू टेस्ट में 72 रन बनाए थे.
ऑस्ट्रेलिया अपनी पहली पारी में 107 पर सिमट गई थी. फड़कर ने तीन खिलाड़ियों को पैवेलियन भेजा था. बारिश की वजह से वो मैच ड्रॉ पर समाप्त हुआ. इंडिया सीरीज 0-4 के अंतर से हारी थी. लेकिन फड़कर 1947-48 की उस सीरीज में टीम इंडिया का हासिल थे. एक ऐसा खिलाड़ी, जो बैटिंग में जिम्मेदार पारियां खेल सकता था और जरूरत पड़ने पर विकेट्स भी निकाल सकता था. फड़कर ने इस सीरीज में चार टेस्ट खेले. 314 रन बनाए. साथ ही बॉलिंग में 8 विकेट भी झटके थे.
दत्तू फड़कर अपनी मर्जी से शॉट्स लगा सकते थे. तेज गेंदबाजी कर सकते थे. 1952 में वेस्टइंडीज दौरे पर गई इंडियन क्रिकेट टीम में उनका नाम काफी खास था. इंडिया के लिए 33 टेस्ट खेलने वाले जी एस रामचंद्र ने लिखा,
'दत्तू फड़कर किसी भी टीम के लिए जीत और हार का अंतर बनने वाले खिलाड़ी थे. उनमें चांस लेने की हिम्मत थी और खुद पर भरोसा भी था. ये बात उनकी बॉडी लैंग्वेज में झलकती थी.'माली, जो फड़कर को खूब सुनाता था
फड़कर की बॉलिंग के बारे में एक बात काफी मशहूर थी. वो गेंद को जब चाहे, आउटस्विंग या इनस्विंग करवा सकते थे. और जब दिल करे, वो ऑफ स्पिन भी फेंक सकते थे. ये हुनर उन्होंने कहां सीखा था?
मुंबई का सुंदर क्रिकेट क्लब का मैदान. फड़कर इसी मैदान में अपना हुनर मांजा करते थे. उस क्लब में एक माली काम करता था. नाम था नारायण. जब फड़कर बॉलिंग की प्रैक्टिस करते, नारायण को अंपायर बना दिया जाता था. जब फड़कर अपना गेंद फेंकने के लिए दौड़ना शुरू करते, नारायण चिल्लाकर पहले ही बता देते कि कौन सी गेंद फेंकनी है. टप्पा खाकर अंदर आने वाली इनस्विंग या टप्पा खाकर बैट्समैन को छोड़कर निकलने वाली आउटस्विंग. फड़कर उसी तरह की गेंद फेंकते भी थे. प्रैक्टिस से ये हुनर मजबूत होता गया और दत्तू फड़कर इस अनोखी कला के उस्ताद बन गए.
फड़कर ने ये बात खुद बताई थी,
'मुंबई में मेरे हर मैच के दौरान नारायण मौजूद रहते थे. जब कभी मैं खराब बैटिंग या बॉलिंग करता था, मुझे खूब सुनना पड़ता था.'नेचुरल गेम फड़कर की पहली पसंद थी
दत्तू फड़कर नेचुरल गेम खेलना पसंद करते थे. पहले टूर का किस्सा है. फड़कर डॉन ब्रैडमैन को बॉलिंग कर रहे थे. कप्तान ने उकसाया कि बाउंसर फेंकें. फड़कर ने बाउंसर किया, ब्रैडमैन ने करारा शॉट लगाया. सीधा बाउंड्री के बाहर. फड़कर को बात समझ में आ गई. अपने नेचुरल गेम से भटकना नहीं है. कुछ समय बाद बोर्ड की तरफ से उनको तेज गेंदबाजी सीखने के लिए इंग्लैंड के अल्फ गॉवर स्कूल में भेजा गया. जब वो वापस लौट कर आए, तो अपनी स्पीड खो चुके थे.
फड़कर नेचुरल गेम खेलना पसंद करते थे, एक्सपेरिमेंट से मात खाते थे.
खेल पत्रकार के आर वाधवानी ने अपनी किताब 'इंडियन क्रिकेट कंट्रोवर्सीज' में लिखा है,
'घरेलू क्रिकेट में वेस्टइंडीज के तेज बोलर्स को खिलाने से कोई फायदा नहीं हुआ. बोर्ड का तेज गेंदबाजों को इंग्लैंड के अल्फ गॉवर स्कूल भेजने का फैसला भी फेल साबित हुआ. दत्तू फड़कर ने लौटकर अपनी रफ्तार खो दी जबकि सलगावकर का वजन काफी ज्यादा बढ़ गया था.'टेलीग्राम मोड़कर जेब में रख लिया
1952 में कलकत्ता में टेस्ट मैच चल रहा था. उसी दौरान दत्तू फड़कर को एक टेलीग्राम मिला. खबर थी कि उनके नवजात बच्चे की मौत हो गई है. फड़कर ने टेलीग्राम को मोड़कर अपनी जेब में रखा. बैटिंग करने उतरे और ताबड़तोड़ 57 रन बनाए. जब फड़कर आउट होकर पैवेलियन लौटे तो उन्होंने दोबारा टेलीग्राम निकाला. पढ़ा और खूब फूट-फूटकर रोए.
4 दिसंबर 1959. मैदान पर उनका आखिरी दिन था. 31 टेस्ट, 1229 रन, 62 विकेट. ये उनके इंटरनेशनल करियर का लेखा-जोखा रहा. रिटायरमेंट के बाद भी दत्तू फड़कर क्रिकेट से जुड़े रहे. वो कुछ सालों के बाद टीम इंडिया के सलेक्टर बने. जब भी जरूरत महसूस हुई, कड़े डिसिजन लेने से नहीं झिझके. क्रिकेट के वो आजीवन शौकीन रहे. क्लब मैचों में उनको देखा जा सकता था. दर्शक दीर्घा में बैठे हुए.
अपने अंतिम दिनों में फड़कर जब अस्पताल में एडमिट हुए, उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था. अक्टूबर 2012. BCCI ने सात पूर्व क्रिकेटरों को 15-15 लाख रुपये की राशि सम्मान में देने की घोषणा की. इसमें एक नाम दत्तू फड़कर का भी था. लेकिन अफसोस, दत्तू फड़कर ये सम्मान लेने नहीं आ सके. 17 मार्च 1985 को वो दुनिया को अलविदा कह चुके थे. बोर्ड ने दत्तू फड़कर की कद्र करने में देर कर दी थी. 27 सालों की देर.
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