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इंडियन कॉर्पोरेट टीम के दोस्तों, शुक्र मनाओ BCCI बस बुरी आदतें सुधारना चाहती है!

BCCI ने टीम इंडिया के लिए 10 नए नियम लागू किए हैं, जिनमें घरेलू मैच खेलना अब कंपलसरी होगा, यात्रा में टीम के साथ ही रहना होगा और निजी स्टाफ को साथ रखने के साथ-साथ एड के शूट की अनुमति भी नहीं होगी.

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BCCI ने टीम इंडिया के लिए लाए 10 नए नियम (तस्वीर : AP Photo)

अनुशासन, एकता और सकारात्मकता. BCCI ने अब इन तीन स्तंभों पर नए भारत की नई इमारत का निर्माण शुरू कर दिया है. टर्निंग ट्रैक, फ़ास्ट ट्रैक और आटा-पाटा सब जगह हारने के बाद, BCCI ने टीम सुधार के लिए तीन सूत्रीय नियम बनाए. इन नियमों से सोशल मीडिया पर बहुत असंतोष है. लोगों को मालगुडी डेज़ नहीं, स्कूल डेज़ याद आ रहे हैं. लेकिन अब, मैं बताऊंगा कि कैसे ये नियम बहुत जरूरी थे. और अब इंडियन क्रिकेट की ज्वाला फ़टकर बाहर आ ही जाएगी.

शुरू से शुरू करते हुए पहले नियम पर आते हैं. घरेलू मैच खेलना अनिवार्य है. बिल्कुल. होना भी चाहिए. आखिरी ये लोग घरेलू मैच नहीं खेलेंगे, तो कौन खेलेगा? कब तक अभिमन्यु ईश्वरन और आशीष विंस्टन जैदी ही सुदूर मैदानों में पसीना बताएंगे? कभी तो विराट और रोहित का नंबर आना चाहिए. वैसे भी ये लोग साल भर करते ही क्या हैं. 2025 की बात करें तो इन्हें तक़रीबन 80 दिन इंटरनेशनल क्रिकेट खेलना है. और दो महीने का IPL. यानी साल में पांच महीने से भी कम वक्त तक ये ग्राउंड पर रहेंगे.

तो बचे हुए सात महीनों में से 2-4 महीने तो डोमेस्टिक क्रिकेट के उत्थान में लगा ही सकते हैं. भले ही इन मैचेज़ में सुविधाओं का कोई स्तर ना हो. फ़ैन्स को पीने का पानी, वॉशरूम जैसी सुविधाएं भी ना मिलें. लेकिन इन लोगों को तो प्लास्टिक की कुर्सियों पर छाता लगाकर बैठना ही चाहिए. अरे यार, ड्रिंकिंग वॉटर और वॉशरूम जैसी बेवजह की चीजों पर तो BCCI वैसे भी ध्यान नहीं देता है. बीते साल न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ हुआ पुणे टेस्ट ही याद कर लीजिए. नारेबाजी, धरने के बाद कहीं जाकर पीने का पानी मिला था.

टिकट के लिए लाठियां, भयंकर गंदी कुर्सियां, बरसात में टपकती छतें, ये सब तो बहुत नॉर्मल सा है. लेकिन BCCI को इससे क्या, ये सब उनका काम नहीं है. उनका काम है निठल्ले बैठे क्रिकेटर्स को लगातार काम पर लगाए रखना. लंबा हो रहा है, अब दूसरे पॉइंट की ओर चलते हैं.

प्रैक्टिस, मैच के बाद सबको साथ ट्रेवल करना चाहिए. परिवार के साथ अलग से यात्रा से अनुशासन भंग होता है. साथ ही टीम का आपसी जुड़ाव भी प्रभावित होता है. ऐसा BCCI ने लिखित तौर पर कहा है. और ये बात एकदम सच है. आप बताइए, टीम किसी मैच में हार गई और आप अपने बच्चे के साथ खेलते हुए प्राइवेट गाड़ी में जा रहे हैं. ये भी कोई बात है? आपके साथियों में से किसी ने चार ओवर में 50 रन खाए होंगे.

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मैच के दौरान क्रिकेटर्स की फैमिली (सोर्स : PTI)

कोई बिना खाता खोले आउट हुआ होगा. तो किसी के हाथों से कोई कैच फिसल गया होगा. ऐसे हाल में आप अपने परिवार के साथ खुशी का बेहूदा प्रदर्शन करते हुए कैसे लगेंगे? बल्कि मुझे तो लगता है कि ये नियम थोड़ा कम कड़ा है. टूर के दौरान परिवार से सिर्फ़ चिट्ठी अलाउ होनी चाहिए. या हफ़्ते में एक बार, PCO से लाइन लगाकर फ़ोन. अगर सीमा पर सैनिक इस व्यवस्था में रह सकते हैं, तो उनसे कई सौ गुना ज्यादा कमाने वालों के इतने नखरे क्यों?

रही बात बैगेज वाली. तो भैया, जितना कम बोझ रहेगा जीवन उतना आसान होगा. ऐसा सदियों से कहा जा रहा है. तो ये वाले पॉइंट पर तो कुछ कहना ही नहीं है.  अब बारी अगले पॉइंट की. जहां साफ किया गया है कि किसी टूर पर आप अपना पर्सनल स्टाफ़ नहीं ले जा सकते. सही बात है. पर्सनल स्टाफ़ की जरूरत क्या है? सपोर्ट स्टाफ़ है ना. वैसे भी ये लोग खाली रहते हैं. कभी बॉडीगार्ड बना लो, कभी नैनी. तो कभी कुक.

वैसे कुक की जरूरत क्या है? हमारे क्रिकेटर्स खुद को रोनाल्डो क्यों समझ रहे हैं? भाईसाब, देसी पीपुल हैं आप. दाल-भात, इडली-सांभर, पाव-शाव खाइए. और काम पर चलिए. ये सारी चीजें हर होटल में मिल जाती हैं. फिर ये कुक वाला नाटक क्यों? यहां जनता नाइट मैच में शराबें पीकर मस्त खेलती है और आप बैलेंस्ड डाइट के चोंचले फैला रहे हैं. शर्म करिए, कितने लोगों को खाना नहीं मिल पा रहा. और आपको हर बार फरमाइशी फू़ड चाहिए. ज़नाब, ये टीम इंडिया है कोई रेडियो प्रोग्राम नहीं.

पांचवां पॉइंट तो कुछ खास है नहीं. इसमें तो समस्या नहीं होनी चाहिए. ये तो आपका ही सामान भिजवाया जा रहा. फ़ोन करके, कोऑर्डिनेट कर लीजिएगा. अब आ जाते हैं छठे पॉइंट पर. प्रैक्टिस सेशन में साथ आना और साथ जाना. ये तो बहुत जरूरी मुद्दा है. आप अकेले आएंगे या जाएंगे तो खराब प्रैक्टिस सेशन से परेशान होकर कुछ उल्टा-सीधा कर बैठने की गुंजाइश रहेगी. टीम साथ में होगी तो कम से कम ये समस्या दूर हो जाएगी.

साथ ही, सब एकसाथ रहेंगे तो कोई भी राइट आर्म क्विक बोलर सिराज और बुमराह से सीख सकता है. तो कोई रिचर्ड्स किसी हिटमैन या किंग को देख चार चीजें सुधार सकता है. क्या कहा, ये सब तो वीडियो देखकर भी हो सकता है? भाई ये BCCI है, आपका गोलचा नहीं. चुपचाप लाइव देखिए सब, यहां स्क्रीनिंग नहीं होती. साथ में कमिटमेंट और वर्क एथिक्स भी बेहतर होंगे. अकेले जाते वक्त आपका मन भटक सकता है. कोई छोले-भटूरे या बड़े वाले पाव की दुकान आपको खींच सकती है. स्कूल बस में रहेंगे तो सीधे मम्मा के पास ही उतरेंगे. कोई समस्या ही नहीं.

सातवां पॉइंट और वैलिड है. सीरीज़ या टूर के दौरान आपको पर्सनल शूट क्यों करने भाई? BCCI की कमिटमेंट कम हैं क्या? सट्टे वाले ऐप का प्रचार करिए, टायर वाला ऐड बाद में शूट कर लीजिएगा. अपने लिए शूट के चक्कर में आप लोगों का फ़ोकस खराब हो जाता है. BCCI के लिए करेंगे तो फ़ोकस बरक़रार रहेगा.

आठवें पॉइंट पर ज्यादा कुछ कहने की जरूरत कोनी. नारी नरक का द्वार है. हम सब जानते हैं. तो इन्हें जितना दूर रखा जाए, उतना ही बेहतर रहेगा. और भाई जिनके बच्चे 18 की उम्र पार कर चुके हैं, वो अभी तक टीम के साथ क्यों हैं? सर, आपका वानप्रस्थ आश्रम का वक्त है. झोला उठाकर चल दीजिए, फट से.

और नंबर नौ तो होना ही चाहिए. कॉर्पोरेट वाली सुविधाएं मिल रही हैं, तो कॉर्पोरेट जैसा घिसना भी पड़ेगा ही. थोड़ा डांस, थोड़े फ़ोटोशूट, कुछ सट्टा वट्टा का प्रमोशन ही तो रहेगा. अपनी सैलरी के लिए इतना तो आप लोग कर ही सकते हैं. और अब बचा पॉइंट नंबर 10. तो भाई, स्कूल में कोई पीरियड खाली रहेगा तो पहले घर थोड़े ना भाग जाएंगे. छुट्टी का वक्त होने तक तो क्लासरूम में बैठना ही रहेगा.

मैच पहले खत्म हुआ, तो साथ बैठिए. पत्ते-वत्ते खेलिए. चोर-सिपाही भी ट्राई कर सकते हैं. लूडो जैसे गेम्स भी हैं. 5-5 रुपये की शर्त लगाकर खेलेंगे तो और मन लगा रहेगा. टीम की एकता, बॉन्डिंग जैसी चीजें ऐसे ही तो बनेंगी. बल्कि BCCI तो अभी तक काफी लिबरल दिख रही है. ये लोग चाहते तो एक प्रसिद्ध मुख्यमंत्री की तरह ह्यूमन चेन भी बनवा सकते थे. कह देते ही बस से उतरते वक्त सब लोग हाथ पकड़कर चलेंगे.

और जबतक फ़ील्डिंग पर ना जाना हो, हाथ छोड़ना नहीं. चाहते तो हर दो मिनट बाद गले मिलने का प्रावधान भी ला सकते थे. या फिर साथ ही सूसू-पॉटी भी कम्पल्सरी कर सकते थे. या यूं भी बोल सकते कि जैसे केदार-महेंद्र को खिलाते थे. वही प्रक्रिया अब सबको करनी होगी. लेकिन इन लोगों ने ऐसा तो नहीं किया. फिर समस्या क्या है. देशहित में लोग गोलियां खा लेते हैं, घर-बार छोड़ देते हैं. इन लोगों से बुरी आदतें ना छू रहीं. धिक्कार है.

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