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'मैं ट्रांसजेंडर से हारी, ये गलत...', भारत की महिला एथलीट ने एशियन गेम्स में क्या बवाल कर दिया?

हार के बाद भारतीय एथलीट स्वप्ना बर्मन ने आरोप लगा दिया कि वो एक ट्रांसजेंडर महिला से हारी हैं. इस बयान से सोशल मीडिया पर विवाद छिड़ गया है.

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बाएं, स्वप्ना बर्मन और दाएं, नंदिनी अगासरा. (फोटो - सोशल मीडिया)

भारतीय एथलीट स्वप्ना बर्मन. 2018 एशियाई खेलों (Asian Games) में महिला हेप्टाथलॉन में गोल्ड मेडलिस्ट रही हैं. इस बरस चीन के हांगझू में चल रहे मुक़ाबले में अपना टाइटल नहीं बचा पाईं. अपनी ही टीम (भारत) की नंदिनी अगासरा से पीछे रह गईं. हार के बाद उन्होंने आरोप लगा दिया कि वो एक ट्रांसजेंडर महिला से हारी हैं. इस बयान से सोशल मीडिया पर विवाद छिड़ गया है.

कांस्य पदक विजेता नंदिनी ने अपने ऊपर लगे 'आरोपों' का खंडन किया है. ज़ोर देकर रहा कि वो एक महिला हैं. अपनी जीत को लेकर हुए विवाद पर निराशा व्यक्त की और कहा कि वो इस मुद्दे को भारतीय एथलेटिक्स महासंघ (AFI) तक ले जाएंगी. नंदिनी ने इंडिया टुडे को बताया,

"मैं जानती हूं कि मैं क्या हूं. उनसे सबूत दिखाने को कहो. मैं भी दिखाऊंगा कि मैंने भारत के लिए पदक जीता है. मैं केवल देश के लिए अच्छा करना चाहती हूं. मैं जीत गई हूं तो लोग इसके बारे में बातें बना रहे. मैं निश्चित रूप से इस मुद्दे को AFI तक लेकर जाऊंगी. मैं पदक जीतने की ख़ुशी महसूस करना चाहती थी, लेकिन अब भारत वापस जा रही हूं.."

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इससे पहले स्वप्ना बर्मन ने सोशल मीडिया पर दावा किया था कि नंदिनी एक ट्रांसजेंडर महिला हैं, जो एथलेटिक्स नियमों के ख़िलाफ़ है. हालांकि, स्वपना ने कोई नाम नहीं लिया था, मगर उन्होंने कांस्य पदक की बात की थी. तो साफ़ है कि इशारा किसकी ओर था. स्वप्ना ने पोस्ट किया था:

"मैंने 19वें एशियाई खेलों में ट्रांसजेंडर महिलाओं के कारण अपना कांस्य पदक खो दिया. मुझे मेरा पदक वापस चाहिए. क्योंकि ये हमारे नियमों के ख़िलाफ़ है. मेरी मदद करें, मेरा समर्थन करें. #protestforfairplay."

स्वपना ने अपना ये पोस्ट डिलीट कर दिया है. हालांकि, उन्होंने इंडिया टुडे के नितिन कुमार श्रीवास्तव से कहा था कि जैसा प्रदर्शन नंदिनी ने किया, चार महीनों की तैयारी में मुमकिन ही नहीं है.

कैसे हारी थीं स्वप्ना?

हेप्टाथलॉन में कुल 7 इवेंट्स हैं. 100 मीटर की हर्डल दौड़, हाई जम्प, शॉटपुट, 200-मीटर दौड़, लॉन्ग जम्प, जैवलिन और 800 मीटर दौड़. हर प्रतियोगी ये सातों इवेंट्स करता है. फिर इन सातों के नंबर जोड़े जाते हैं. और, इसी हिसाब से जीत-हार तय होती है.

अब जिस इवेंट पर पूरा बवाल है, उसमें क्या हुआ था? स्टार्ट का बिगुल बजा और 100 मीटर हर्डल में स्वप्ना ने मज़बूत शुरुआत की. दूसरे नंबर पर थीं. लेकिन हाई जम्प तक आते-आते पिछड़ भी गईं और जितना ऊंचा कूदना था, उतना कूद नहीं पाईं. शॉटपुट का प्रदर्शन भी ख़राब रहा और वो तीसरे नंबर पर थीं. फिर तेलंगाना की 20 वर्षीय एथलीट नंदिनी अगासरा ने अपना बेस्ट परफ़ॉर्मेंस दिया और अपने बेस्ट स्कोर के साथ तीसरे नंबर जगह बना ली. उनके और स्वप्ना के स्कोर में मात्र 4 अंकों का फ़र्क़ था.

ट्रांस खिलाड़ियों के लिए अलग कैटगरी?

इस केस में तो नंदिनी ने ट्रांसजेंडर होने से इनकार किया है. अपनी पहचान एक महिला के तौर पर ही की है. लेकिन दुनिया भर में अलग-अलग इवेंट्स में ये बहस पुरानी है. संक्षेप में दोनों पक्ष समझ लीजिए:-

जो लोग ट्रांस एथलीट्स को विमेन्स कैटेगरी में शामिल करने के ख़िलाफ़ हैं, उनका तर्क है कि खेलों की मूल संरचना में ही सेग्रिगेशन है. मसलन, अंडर -12 की कैटेगरी में 15 साल के लड़के नहीं खेल सकते. मीडियम-वेट के साथ हेवी-वेट मुक्केबाज़ नहीं लड़ सकता. पैरालंपिक में भी बहुत सारी अलग-अलग कैटेगरीज़ हैं. ये सब इसलिए कि स्पोर्ट्स निष्पक्ष बने रहें. सभी को लेवल-प्लेयिंग फ़ील्ड मिले.

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जो लोग ट्रांस एथलीट्स के महिला कैटेगरी में खेलने के पक्ष में हैं, उनका कहना है कि खेल को समावेशी होना चाहिए. जैसे समाज को. सदियों से समाज ने ट्रांस समुदाय के लोगों की उपेक्षा की है. आर्थिक और सामाजिक, दोनों डोमेन्स से उनको सिस्टमैटिकली बाहर रखा है. और ये सब केवल इनकी पहचान की वजह से. ऐसे में कुछ लोगों का मानना है कि अगर ट्रांसजेंडर के लिए एक नई कैटेगरी शुरू की जाती है, तो ये उन्हें उनकी पहचान के चलते अलग-थलग करने जैसा होगा.