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आशीष विंस्टन ज़ैदी - क्रिकेट का बदनसीब अमर अकबर एंथनी

वो लड़का जिसके बारे में आगे चलकर कहावत बनी कि 'वह गेंद को ताड़ी पिला देता है.' आज जन्मदिन है.

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satya vyas
सत्य व्यास. गजब का आदमी. लेखक हैं और क्रिकेट प्रेमी भी. और ये बहुत घातक कॉम्बो रहता है. तिसपर ज़ुल्म ये कि बनारस से प्रेम है. क्या कहने! इन्हें क्रिकेट के किस्से सुनाने में भयानक मौज आती है. एक वक़्त था जब क्रिकेट सम्राट को गीता बना बैठे थे. जो कि कमोबेसी थी भी. आज खुद में एक छोटी मोटी क्रिकेट सम्राट लेकर चलते हैं. और हमें उस दौर से रूबरू करवाते हैं जबके नाम ज़ेहन में आ जायें तो खुद-ब-खुद गले में कुछ अटक सा जाता है. सुना रहे हैं एक और किस्सा.



साल था 1988. न्यूजीलैंड की क्रिकेट टीम भारत के दौरे पर आई थी. भारत अपनी चिरपुरातन समस्या से जूझ रहा था. समस्या- तेज गेंदबाजों की. उस दौरे पर रशीद पटेल से लेकर संजीव शर्मा तक ने 'थकते कपिल देव' का साथ देने की कोशिश की थी, मगर नाकाम रहे थे. आलम यह भी था कि एक टेस्ट में तो कपिल एकमात्र मध्यम तेज गति के गेंदबाज थे.
उसी साल, ठीक उसी साल कानपुर के ट्रायल में एक 17 साल का लड़का 'तबाह' गेंदबाजी कर रहा था. वो लड़का जिसके बारे में आगे चलकर कहावत बनी कि 'वह गेंद को ताड़ी पिला देता है.' गेंद उसके हाथ से निकल कर घूमती नहीं, झूमती है.

वह लड़का- आशीष विंस्टन ज़ैदी. दोस्तों का अमर अकबर एंथनी. 16 सिंतबर को हैप्पी बड्डे है.

खैर, तब सचिन युग की शुरुआत नहीं हुई थी और 17 साल की उम्र कच्ची मानी जाती थी. माना गया कि लड़का अभी कच्चा है. पकने की जरूरत है. पकने के लिए क्या करना होगा? पकने के लिए भारत के लिए अंडर 19 खेलने पाकिस्तान जाना होगा. रणजी खेलना होगा और MRF पेस फाउंडेशन में विवेक राजदान, सुब्रोतो और श्रीनाथ जैसों के साथ तकनीक सीखनी और निखारनी होगी. लड़के ने तीनों किया. 1989 में पाकिस्तान के खिलाफ अंडर 19 खेलते हुए बासित अली, मोईन खान और नासिर अहमद जैसों के पांवो में विकेट देख लिए. रणजी खेलने लगा तो ऐसा खेला कि 1988-89 से 2006-07 तक बिला नागा खेलता ही रहा. MRF पेस फाउंडेशन गया तो गेंद को ताड़ी पिलाना सीख आया.
आशीष का जन्म 16 सितंबर 1971 को हुआ.
आशीष का जन्म 16 सितंबर 1971 को हुआ.

मगर सब कुछ फ़िज़ूल. अगले 10 सालों तक लड़का अपने साथ खेले लड़कों को 'इंडिया' खेलते देखता रहा. श्रीनाथ, सुब्रोतो, राजदान, जडेजा, मोंगिया यहां तक कि आशीष कपूर और ज्ञानेन्द्र पाण्डेय भी. मगर लड़का लगा रहा. 'पाटा विकेट' पर पसीने बहाता रहा. क्यों?
क्योंकि किसी ने बताया था कि तेज गेंदबाज की असल उम्र होती है 27 से 30 वर्ष. पक जाने की उम्र. साल 1999-2000 का था और गेंदबाज अब तक पक चुका था. विदर्भ के खिलाफ इसी साल के रणजी मुकाबले में अगर मुहम्मद सैफ ने एक विकेट नहीं ले लिया होता तो आशीष विंस्टन ज़ैदी का रिकार्ड पूरे 10 शिकार का होता. आशीष ने 45 रन देकर 9 विकेट से संतोष कर लिया. पूरे सीजन में कुल 49 विकेट.
ashish winston

उस साल चारों ओर यही चर्चा थी कि आशीष का अंतिम चौदह में आना तय है. खुद आशीष भी मुतमइन थे. मगर सेलेक्शन कमिटी का कमरा शायद किसी पांचवी ओर ही आता था. आशीष इस साल भी चयनित नहीं हुए. फिर भी चोटों और सेलेक्शन कमिटी के वोटों से लापरवाह खेलते रहे. मायूसी साल दर साल पांव पसारती रही.
क्रिकेटीय गलियारे की कहावत है कि 'जब देश से मायूस हो जाओ तो प्रदेश पर दिल लगाओ.' पद्माकर शिवल्कर ने किया. राजिंदर गोयल ने किया. सो आशीष ने भी वही किया. सालों लगातार खेलने के बावज़ूद रणजी न उठा पाने की कसक लिए आशीष जूते टांगना नहीं चाहते थे. हालांकि बातें उठने लगीं थीं. साल आया 2005-06 का. उत्तर प्रदेश और बंगाल के बीच फाइनल मैच. मुहम्मद कैफ़ की अगुआई में आशीष का सपना साकार हुआ. विकेट तो उन्हें महज दीपदास गुप्ता का ही मिला मगर रणजी ट्रॉफी उठाने का सौभाग्य मिला. आशीष मन तो काफी पहले बना चुके थे और फिर अगले सीज़न के साथ ही उन्होंने भरे मन से अपनी पारी घोषित कर दी. 110 प्रथम श्रेणी मैचों में कुल 378 विकेट. किसी भी अंतराष्ट्रीय क्रिकेट खेल चुके गेंदबाज से इस आंकड़े की कीमत यह बता कर पूछिये कि यह सारे विकेट भारत में ही लिए गए हैं. जवाब उनकी हैरत में मिल जायेगा.
बाद के दिनों में जब वह उत्तर प्रदेश टीम के प्रबंधक रहे और मुम्बई में पिच का मुआयना करने गए तो वहीं बैठे सचिन तेंदुलकर ने उन्हें देखकर स्वस्थ मजाक में कहा- 'फिर आ गया तू?' 'नहीं भाई! मेरा तो हो गया.' आशीष विंस्टन ज़ैदी ने हंसते हुए जवाब दिया.
इस बात पर आप जैसा इंसान ही हंस सकता है आशीष. हम तो रो पड़ेंगे.


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