एक बार किसी लेखक की एक किताब आती है. किताब को लोग बेहद पसंद करते हैं. इतना कि इसकी लाखों कॉपीज़ बिकती हैं. कुछ ही दिनों में ये बेस्ट सेलर बन जाती है. इसी दौरान एक पत्रकार उस लेखक का इंटरव्यू लेने पहुंचता है. पत्रकार पहला ही सवाल कुछ ऐसा पूछ बैठता है, “आपको कैसा लग रहा है, आपको तो रातोरात सफलता मिल गई.” पत्रकार के इस सवाल पर लेखक कुछ देर शांत रहकर उसे देखता है. फिर जवाब देता है,
ना सरहद का भेद, ना धर्म की तकरार...लोगों का दिल तो अरशद और नीरज की मांओं ने जीता है!
Arshad Nadeem और Neeraj Chopra, ये दोनों ही एथलीट्स पिछली रात से छाए हुए हैं. Paris Olympics के जेवलिन थ्रो मुकाबले में जहां अरशद को गोल्ड मिला है, वहीं नीरज को सिल्वर. इस बीच दोनों के मांओं के बयान वायरल हो रहे हैं.
हां, सफलता तो रातोरात मिल गई दोस्त, लेकिन शायद तुम नहीं जानते वो रात कितनी लंबी थी.
13 साल की उम्र में स्पोर्ट्स का सफर शुरू करने वाले नीरज चोपड़ा के लिए भी ये रात कुछ कम लंबी नहीं थी. लेकिन इस रात की सुबह टोक्यो ओलंपिक्स 2020 में हुई. जब नीरज ने 87.58 मीटर दूर जैवलिन फेंका. गोल्ड मेडल का सुनहरा सूरज उनके जीवन में आया.
लेकिन हाल ही में हुए पेरिस ओलंपिक्स 2024 में, वो यह दोहरा ना सके. आमतौर पर भारत-पाक के क्रिकेट मैचों में ही लोग रात को जागकर कोई स्पोर्ट्स देखते हैं. पर इस बार कुछ अलग था. नीरज को टकटकी लगाए लाखों भारतीय स्क्रीन पर देखते रहे. गोल्ड की उम्मीद तो ना पूरी हो सकी. नीरज ने जैवलिन थ्रो में 89.45 मीटर का थ्रो किया. लेकिन यह पाकिस्तान के एथलीट अरशद नदीम के 92.97 मीटर लंबे थ्रो से कम था. नीरज को सिल्वर से संतोष करना पड़ा, अरशद ने गोल्ड जीता.
लेकिन इन आंकड़ों और मेडल के मुकाबले में दिल, तो दोनों देशों के खिलाड़ियों के पैरेंट्स ने जीत लिया है. बार्डर के दोनों तरफ से बेटों के मेडल जीतने पर बयान आए हैं.
‘वो भी हमारा लड़का है’नीरज को सिल्वर मिलने के बाद मीडिया उनके घर पहुंची. न्यूज एजेंसी ANI के रिपोर्टर ने नीरज की मां से पूछा कि इस बार तो वो गोल्ड नहीं जीत पाए, सिल्वर मिलने पर कितनी खुश हैं आप?
नीरज की मां ने जवाब दिया,
हम बहुत खुश हैं. हमें तो सिल्वर भी गोल्ड लग रहा है. गोल्ड जिसका आया है (अरशद नदीम) वह भी हमारा ही लड़का है. तीनों खिलाड़ी (मेडल पाने वाले) बच्चे ही हैं.
अब मम्मियां तो एक जैसी ही होती हैं! चाहे वो सरहद के इस पार हों या उस पार. इसी बीच इंडिपेंडेंट उर्दू को दिए एक इंटरव्यू में अरशद की मां ने भी ऐसी ही बात कही. कहा कि बेटे की जीत से खुश हूं. घरवालों ने जश्न मानाया, ढोल बजाए. वहीं नीरज के बारे में सवाल पूछे जाने पर जवाब दिया,
वो (नीरज) भी मेरे बेेटे जैसा ही है. नदीम का दोस्त और भाई है. दोनों भाई ही हैं, उसके लिए भी दुआ करती हूं.
स्पोर्ट्समैनशिप (Sportsmanship) के बारे में तो आपने सुना होगा. नीरज और अरशद की मांओं की बात सुनकर नया शब्द बनाना चाहिए, स्पोर्ट्स-मम-शिप (Sports-mum-ship).
इधर, इवेंट के बाद नीरज ने इंडिया टुडे से कुछ बातें साझा कीं. बताया कि उनका थ्रो काफी अच्छा था, लेकिन चोट के चलते वह बेहतर नहीं कर पाए. कहा कि दिन अरशद का था यह बात हमें माननी पड़ेगी.
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वहीं जीत के रोज़, अरशद ने ओलंपिक्स में थ्रो का रिकार्ड तोड़ा ही, खुद भी फूट-फूट कर रोने लगे. व्यक्तिगत तौर पर गोल्ड जीतने वाले, वह पहले पाकिस्तानी खिलाड़ी बने.
इधर, अरशद के पिता ने भी कुछ बातें कीं. जो पत्थरों में कारीगरी का काम करते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक अरशद के पिता बताया,
आज मेरा बेटा ओलंपिक्स में हिस्सा ले रहा है, लोग कहते हैं कि यह दुनिया के सबसे बड़े खेल हैं.
आगे वो कहते हैं कि अगर उनका बेटा मेडल जीता, तो यह उनके गांव के साथ-साथ पूरे पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ी बात होगी. और ऐसा ही कुछ हुआ भी, नदीम ने गोल्ड अपने नाम किया. लेकिन यह संघर्ष कम नहीं था.
अरशद के पिता आगे बताते हैं कि जवानी से लेकर अब तक उन्होंने पत्थर के कारीगर के तौर पर काम किया है. कई बार अरशद भी इस काम में उनके साथ रहता था. इसके अलावा नेज़ा-बाज़ी, जो घुड़सवारी का एक तरह का खेल है. ये देखने भी दोनों साथ जाया करते थे.
वो आगे बताते हैं कि साल 2010 में अरशद ने उनसे क्रिकेट बैट-बॉल की मांग की थी. क्रिकेट खेलने के साथ उन्होंने चक्का फेंक, हैमरथ्रो जैसे खेलों में भी हाथ आजमाया.
फिर कोच राशिद अहमद ने अरशद को पहली ट्रेनिंग दी. जो उनके गांव के एक मैदान में ही हुआ करती थी. बाद में वो पंजाब वगैरह में कई युवा खेलों में हिस्सा लेने लगे. एक शो में दिए इंटरव्यू में अरशद बताते हैं कि कभी वह बांस की छड़ी को कारीगर को देते थे और उसे भाले जैसा बनाने के लिए कहते थे. ताकि उससे अभ्यास कर सकें.
उनके पिता ने PTI को बताया था कि लोगों को मालूम नहीं है कि अरशद आज कैसे यहां तक पहुंचा है. गांव वाले पैसे दान दिया करते थे ताकि वह दूसरे शहरों में जाकर ट्रेनिंग कर सके, मुकाबलों में भाग ले सके.
बेटे की इस कामयाबी पर उनके पिता को बहुत गर्व है. उनका कहना है कि मेरे बेटे को नया घर मिला है. मैंने पूरी जिंदगी एक मजदूर की तरह काम किया है. देखो मेरा बेटा कितना आगे निकल गया है.
नीरज के सिल्वर से देश में खुशी तो है ही, गोल्ड ना आने का थोड़ा सा मलाल भी है. लेकिन इस मामले में हमें नीरज की मम्मी की ‘स्पोर्ट्स-मम-शिप’ पर भी ध्यान देना चाहिए. खेलों में मेहनत लगती है. कामयाबी रातोरात मिल सकती है, लेकिन वो रात बहुत लंबी होती है.
बहरहाल ज़फर जैदी का ये शेर निहारिये. बाकि आप खुद समझदार हैं.
इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए
जिस का हम-साए के आंगन में भी साया जाए
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