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फिल्म रिव्यू- अ थर्सडे

'अ थर्सडे' एक गंभीर मसले की वकालत करती है. मगर अपने सब्जेक्ट को बड़ा दिखाने के चक्कर में उसका वजन कम करती चली जाती है.

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फिल्म 'अ थर्सडे' के एक सीन में यामी गौतम.
डिज़्नी+हॉटस्टार पर एक नई फिल्म रिलीज़ हुई है. इसका नाम है A Thursday. फिल्म की कहानी नैना नाम की एक लड़की के बारे में. उसने लॉ की पढ़ाई की है. मगर एक प्ले स्कूल में टीचर है. अपने 30वें जन्मदिन के ठीक पहले नैना उस स्कूल में पढ़ने वाले 16 बच्चों को होस्टेज ले लेती है. यानी उन बच्चों को बंधक बना लेती है. वो पुलिस को खुद फोन करके इसकी जानकारी देती है. उसकी कुछ डिमांड्स हैं. अगर वो पूरी नहीं हुईं, तो वो एक-एक करके उन बच्चों को मार देगी. उसकी सबसे बड़ी डिमांड है कि वो देश की प्रधानमंत्री माया राजगुरु से फेस टु फेस मिलकर बात करना चाहती है. अब सवाल ये है कि नैना ये सब क्यों कर रही है? और वो प्रधानमंत्री से मिलकर क्या बात करना चाहती है?
नैना ने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को होस्टेज रखा है. मगर वो बच्चों को अच्छे से एंटरटेन करती है. ताकि उन्हें पता न चले कि वो किडनैप हो गए हैं.
नैना ने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को होस्टेज रखा है. मगर वो बच्चों को अच्छे से एंटरटेन करती है. ताकि उन्हें पता न चले कि वो किडनैप हो गए हैं.


'अ थर्सडे', नाम से नीरज पांडे की नसीरुद्दीन शाह स्टारर फिल्म 'अ वेन्सडे' की स्पिरिचुअल सीक्वल जैसा साउंड करती है. कमोबेश उसी कॉन्सेप्ट को थोड़े बहुत हेर-फेर के साथ कॉपी करना चाहती है. मगर 'अ वेन्सडे' की खासियत थी, उसका टाइट स्क्रीनप्ले. 'अ थर्सडे' इस डिपार्टमेंट में फेल हो जाती है. ये फिल्म जो बात कहना चाहती है, वो अपने आप में डिबेटेबल टॉपिक है. कि किस जुर्म के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान होना चाहिए? मगर यहां तक पहुंचने के लिए ये लंबा रास्ता लेती है. इस दौरान क्लिकबेट और ब्रेकिंग न्यूज़ की भूखी मीडिया पर भी टिप्पणी की जाती है. आयरॉनिक बात ये कि जो फिल्म खुद हिंसा और मेंटल ट्रॉमा को कॉन्टेंट के नाम पर इस्तेमाल करती है, वो मीडिया के ऐसा करने को गलत ठहराती है. ये हम मीडिया को डिफेंड करने के लिए नहीं, फिल्म को क्रिटिसाइज़ करने के लिए कह रहे हैं.
वो क्लोज़ अप शॉट्स जिनका ज़िक्र हम ऊपर कर रहे थे.
फिल्म के एक सीन में नैना जैसवाल का रोल करने वाली यामी गौतम. इन्हीं तरह के क्लोज़ अप शॉट्स का ज़िक्र हम नीचे कर रहे हैं. ऐसे फिल्म में कई हैं. 


'अ थर्सडे' एक गंभीर मसले की वकालत करती है. मगर ये अपने सब्जेक्ट को बड़ा दिखाने के चक्कर में उसका वजन कम करती चली जाती है. इसलिए ये फिल्म प्रेडिक्टेबल हो जाती है. क्लाइमैक्स आने से पहले आप अंदाज़ा लगा लेते हैं कि क्या होने वाला है. 'अ थर्सडे' में आपको यामी गौतम के बहुत सारे क्लोज़ अप शॉट्स देखने को मिलेंगे. ये चीज़ आपको ऐसा फील करवाती है, मानों आप पर वो भाव महसूस करने का दबाव बनाया जा रहा है, जो नैना महसूस कर रही है. ये चीज़ कई बार होती है. जो रेपिटिटीव लगती है. फिल्म में गाने नहीं है. मगर बैकग्राउंड म्यूज़िक भी नैरेटिव को कुछ खास बल नहीं देता. बेसिकली 'अ थर्सडे' को देखते हुए लगता है कि ये फिल्म कुछ सालों पहले बनाई गई है, जो दर्शकों तक अब जाकर पहुंची है. अन्य शब्दों में कहें, तो इसका ट्रीटमेंट काफी डेटेड है.
नेहा धूपिया का निभाया कैथरीन का कैरेक्टर वैसे तो काफी सीनियर है. मगर वो ऐसा कुछ गंभीर नहीं करती, जिससे उसके कैरेक्टर की गंभीरता का अंदाज़ा लग सके.
नेहा धूपिया का निभाया कैथरीन का कैरेक्टर वैसे तो काफी सीनियर है. मगर वो ऐसा कुछ गंभीर नहीं करती, जिससे उसके कैरेक्टर की गंभीरता का अंदाज़ा लग सके.


फिल्म में यामी गौतम ने नैना जैसवाल का रोल किया है. नैना एक ऑथर बैक्ड कैरेक्टर है. क्योंकि ये पूरी फिल्म उसी किरदार के बारे में है. यामी गौतम अपने करियर में पहली बार ऐसा कोई रोल कर रही हैं. इस रोल में वो अच्छी लगती हैं. कई बार होता है कि एक्टर्स किसी कैरेक्टर में वैल्यू ऐडिशन कर देते हैं. यानी उनकी परफॉरमेंस फिल्म को ऊंचा उठा देती है. यामी, नैना जैसवाल के किरदार में ऐसा कुछ तो नहीं करतीं. मगर उनकी परफॉरमेंस ऐसी नहीं है, जिसके लिए आप उनके नंबर काटें. यामी के अलावा फिल्म में नेहा धूपिया भी नज़र आती हैं. उन्होंने कैथरीन नाम की प्रेग्नेंट पुलिस ऑफिसर का रोल किया है, जो नैना का केस हैंडल कर रही है. उनका कैरेक्टर 'मनी हाइस्ट' की अलिशिया की याद दिलाता है. मगर उनके हिस्से वॉकी टॉकी में बात करने के अलावा कुछ है नहीं.
अतुल कुलकर्णी ने जावेद खान का रोल किया है. जावेद बड़ा मिसोजिनिस्टिक सा कैरेक्टर है, जिसे लगता है कि वो बहुत कूल है.
अतुल कुलकर्णी ने जावेद खान का रोल किया है. जावेद बड़ा मिसोजिनिस्टिक सा कैरेक्टर है, जिसे लगता है कि वो बहुत कूल है.


अतुल कुलकर्णी ने जावेद खान नाम के पुलिस ऑफिसर का रोल किया है. नैना और जावेद का एक पुराना कनेक्शन है. मगर जावेद बड़ा अजीबोगरीब किरदार है. वो महिलाओं को उसी घिसे-पिटे नज़रिए से देखता है. अतुल की परफॉरमेंस अच्छी हो सकती थी, अगर उनके खाते में कुछ कायदे के सीन्स होते. यहां तमाम एक्टर्स यामी के किरदार के आसपास ही बुने गए हैं. नैना के अलावा किसी को कुछ इंपॉर्टेंस नहीं दी जाती. डिंपल कपाड़िया का निभाया पीएम माया राजगुरु इकलौता ऐसा कैरेक्टर है, जो स्टैंड आउट करता है. क्योंकि वो फिल्म के नैरेटिव के लिहाज़ से ज़रूरी किरदार है.
फिल्म के एक सीन में डिंपल कपाड़िया का निभाया माया राजगुरु का किरदार, जो अपने सबोर्डिनेट को सख्त शब्दों में हिदायत दे रही हैं कि वो कभी उन्हें अंडरमाइन करने की कोशिश न करें.
फिल्म के एक सीन में डिंपल कपाड़िया का निभाया माया राजगुरु का किरदार, जो अपने सबोर्डिनेट को सख्त शब्दों में हिदायत दे रही हैं कि वो कभी उन्हें अंडरमाइन करने की कोशिश न करें.


'अ थर्सडे' खुद को एक महिला प्रधान फिल्म के रूप में पेश करती है. जिसमें एक महिला, महिलाओं से जुड़े मसलों के लिए खड़ी होती है. इसमें एक बढ़िया थ्रिलर फिल्म बनने के सारे गुण मौजूद थे. मगर फिल्म की लंबाई, उसके आड़े आती है. भारी-भरकम बिल्ड-अप के बाद कहानी जब खुलनी शुरू होती है, तब तक दर्शक उसका साथ छोड़ चुके हैं. फिल्म के आखिर में कुछ एक वीयर्ड सीन्स भी देखने को मिलते हैं. मानों फिल्म खुद नैना की पीठ थपथपाकर कर रही हो- वेल डन. मुझे उसके पीछे का आइडिया कुछ समझ नहीं आया. ओवरऑल 'अ थर्सडे' औसत फिल्म है, जिसे लगता है कि उसने क्रांति का बिगुल बजा दिया है. मगर उस बिगुल की आवाज़ लोगों तक पहुंच नहीं पाती.

'अ थर्सडे' को आप डिज़्नी+हॉटस्टार पर स्ट्रीम कर सकते हैं.