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भेड़िया दिख जाए तो कैसे पहचानेंगे वो लोमड़ी या सियार नहीं है?

Wolf, Fox, Jackal- Indian Dog family; इंसान और कुत्तों के बीच संबंध 10,000 साल पहले से बताया जाता है. करीब 14 हजार साल पहले इंसानों के साथ कुत्तों के दफनाने के सुराग भी मिलते हैं. बताया जाता है कि आदिमानव, भेड़िए की ही एक खत्म हो चुकी प्रजाति के साथ फिरते थे.

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सुनहरा गीदड़ या सियार या शियार, ये आकार में भेड़ियों जैसे बताए जाते हैं (विकीमीडिया)

कैनडी (Canidae) या डॉग फैमली में भेड़िए (Wolf), सियार (Jackal) और लोमड़ी (Fox) वगैरह आते हैं. इस परिवार में तीस से भी ज्यादा जानवरों की प्रजातियां शामिल हैं. वहीं भारत में भी इस फैमली की कई प्रजातियां पाई जाती हैं. लेकिन अक्सर लोग इनके बीच फर्क नहीं कर पाते हैं. बहराइच (Bahraich) में भेड़ियों के इंसानों पर हमलों की खबरों के बाद, कुछ खबरें किसी सियार या कुत्ते को भेड़िया समझकर मारने की भी आईं. ऐसे में इन सभी के बारे में जान ही लेना चाहिए. उससे ज्यादा पहचान लेना चाहिए. 

पहले तो हमें एक बात समझनी होगी कि इंसानों और जानवरों के बीच संघर्ष की कई वजहें हो सकती हैं. भेड़िए भी आमतौर पर 'शर्मीले' किस्म के माने जाते हैं, जो कुछ वजहों से आदमखोर हो सकते हैं. इसके बारे में विस्तार से जानन के लिए आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

बहरहाल अब आते हैं 'डॉग फैमली' पर. इंसान और कुत्तों के बीच संबंध दस हजार साल पहले से बताया जाता है. करीब 14 हजार साल पहले इंसानों के साथ कुत्तों के दफनाने के सुराग भी मिलते हैं. बताया जाता है कि आदिमानव, भेड़िए की ही एक खत्म हो चुकी प्रजाति के साथ फिरते थे. जो कुत्तों के पूर्वज भी बताए जाते हैं.

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कैनिडी (Caniae) या डॉग फैमली के जीव (विकीमीडिया)

अब ये प्रजातियां चूंकि कैनडी फैमली से ही ताल्लुक रखती हैं. इसलिए इनमें कई समानताएं भी हैं. जिनकी वजह से ये एक से लग सकते हैं. लेकिन इनमें कुछ बुनियादी फर्क नेचर इन फोकस में बताए जाते हैं. समझते हैं-

भारतीय भेड़िए (Indian Wolf) की चाल

हमारे यहां ‘ग्रे वुल्फ’ या ग्रे भेड़िए की दो उप-प्रजातियां हैं. एक तिब्बतन वुल्फ (Tibetan Wolf) और एक इंडियन वुल्फ (Indian Wolf). 

1. तिब्बतन वुल्फ 

हिमालय के इलाकों में पाए जाते हैं. इनका फर या रोएं ठंड के हिसाब से घने और बाकी प्रजातयों के कुछ बड़े होते हैं.

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तिब्बतन वुल्फ (तस्वीर: विकीमीडिया)

लदाख के इलाकों में ये कई बार लोगों के मवेशियों को खा जाया करते थे. जिसके चलते वहां के लोग शंकु जैसा पत्थर का एक स्ट्रक्चर बनाया करते हैं. जिसे शैंगडॉन्ग (Shandong) कहा जाता है. ताकि भेड़ियों को पकड़ कर मारा जा सके.

लेकिन नेचर कंजरवेशन फाउंडेशन ने इन्हें बचाने और स्थानीय लोगों को समझाने के लिए अभियान चलाया. ताकि इनकी प्रजातियों को बचाया जा सके. दरअसल बाघ की तरह इनकी कई प्रजाति के जीवों की संख्या भी खतरे में है.

2. इंडियन वुल्फ (Indian Wolf)

ये गंगा के मैदानी इलाकों, गुजरात और राजस्थान वगैरह में ज्यादा पाए जाते हैं. ये छोटे झुंड में रहते हैं. इनका रंग कुछ भूरा-काले सा होता है. आमतौर पर इनका आकार लोमड़ियों से बड़ा होता है. वैसे ये झुंड में शिकार करते हैं. बताया जाता है कि ये हिरन वगैरह को दौड़ाकर थका देते हैं. फिर उनका शिकार करते हैं.

गीदड़ भभकी; गोल्डन जैकाल (Golden Jackal)

सुनहरा गीदड़ या सियार या शियार, वैसे तो ये आकार में भेड़ियों जैसे बताए जाते हैं. पर कहा जाता है ये भेडि़यों से ज्यादा कनिंग या चपल होते हैं. साथ ही इनका फर, भेड़ियों जैसा घना नहीं होता है.

भले लोगों को ये दिखे ना, लेकिन गांवों में रात में इनके हुआ हुआ करने की आवाजें आती हैं. बताया जाता है भेड़ियों के मुकाबले इनका थूथन और सिर छोटे आकार का होता है.

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सुनहरा गीदड़ (विकीमीडिया)

ये अक्सर अवसरवादी बताए जाते हैं. यानी ये कई बार दूसरों के मारे शिकार खाते हैं. वहीं कई बार इंसानी आबादी के पास कचरे वगैरह से भी पेट भरते हैं.

'चालाक' लोमड़ी (The Indian Fox)

ये आमतौर पर खेती-बाड़ी वाली जगहों और इंसानी आबादियों के पास देखी जा सकती हैं. आकार में ये थोड़ा छोटी होती हैं. इनकी लंबी, झाड़ू जैसी पूंछ होती है, जो सिरे पर काली होती है.

ये छोटे जीवों का शिकार करती हैं. और अवसरवादी होती हैं.

ढोल (Dhole) या सोनकुत्ता

ढोल या सोनकुत्ता भी कैनडी फैमली का हिस्सा हैं. इन्हें एशियाई जंगली कुत्ता भी कहा जाता है. लेकिन ये असल कुत्तों में नहीं आते हैैं. ये घरेलू कुत्तों से छोटे होते हैं.

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ढोल या सोनकुत्ता (विकीमीडिया)

बताया जाता है कि ये झुंड में रहते हैं. जिसमें 20 सदस्य तक हो सकते हैं. इनकी पूंछ भी किसी झाड़ू की तरह घनी होती है. जो आमतौर पर अंत में काली होती है. वहीं इनके कान कुछ गोल से होते हैं. 

इसके अलावा भारत में पाया जाने वाला लकड़बग्घा अपनी काली सी धारियों से पहचाना जा सकता है. वहीं लोमड़ी की कुछ और प्रजातियां भी हैं, जो भारतीय वन्य संपदा का हिस्सा हैं.

साथ ही एक बात हमें समझनी चाहिए कि ये जानवर जंगलों में रहना पसंद करते हैं. लेकिन जंगल कम हुए और इंसानों की बस्तियां बढ़ी तो कई बार ये आबादी वाली जगहों में आने को मजबूर हो जाते हैं. संभव है कि आपका भी इन जानवरों से सामना हो जाए तो ऐसे में अब आपको उन्हें पहचानने में दिक्कत नहीं होगी.

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