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पत्थर में चेहरा, बादलों में माइकल जैक्शन... हर जगह दिमाग को 'चेहरे' क्यों दिखने लगते हैं?

Science explained: कभी खबरें आती हैं कि लोगों को बादलों में माइकल जैक्शन (Michael Jackson) दिख रहा है, कभी पहाड़ में हाथी नजर आते हैं. ये हमारे दिमाग का 'लोचा' है.

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दिमाग को हमेशा पूरी जानकारी एकदम सटीक तो मिलती नहीं. (फ़ोटो - गेटी)

एक चीज नोटिस की है? कई बार कुछ ऊल-जलूल जगहों पर इंसानी शक्ल-सा कुछ नजर आने लगता है. जैसे ‘चांदनी चौक टू चाइना’ फिल्म में आलू में गणेश जी दिखने लगते हैं. एक वक्त पर ब्रेड के जले हुए टुकड़े में जीसस का चेहरा दिखने की खबरें भी खूब चली थीं. वहीं,  कुछ लोगों को कभी बादलों में माइकल जैक्शन (Michael Jackson) दिखने लगता है. आखिर इसके पीछे की वजह क्या है? क्यों हर चीज में सूरत बन जाती है?

साइंस फोकस के मुताबिक, साइकोलॉजिस्ट इस प्रवृत्ति को पैरेडोलिया (Pareidolia) कहते हैं. दरअसल, इंसानों की आदत है, रैंडम चीजों में पैटर्न खोजने की. इसी को पैरेडोलिया कहा जाता है.

लेकिन इन रैंडम चीजों में सिर्फ चेहरे ही नहीं दिखते. इनमें किसी भी तरह का पैटर्न या जानी-पहचानी आकृति नजर आ सकती है. जैसे कभी खरखराती टीवी की आवाज में आपको अपना नाम सुनाई दे जाए. माने ये फेनोमना आवाजों में भी लागू होता है.

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इस तस्वीर में बादलों में लोगों को माइकल जैक्शन सा दिखा था
ऐसा क्यों करता है दिमाग?

कई लोग ये आकृतियां मन में देख पाते हैं. या इन्हें किसी जानी-पहचानी चीज से जोड़कर देख पाते हैं. इसकी वजह है कि हमारा बेचारा दिमाग दिन-रात काम करता है. ताकि आस-पास की चीजों का सही मतलब पहचान सके.

बकौल साइंस फोकस, यह रेयर है कि दिमाग को हमेशा साफ या सटीक जानकारी ही मिले. कई बार कुछ झिलमिल या धुंधला-सा भी रिकॉर्ड होता ही है. ऐसे में इन सारी जानकारियों का सेंस निकालना भी इसी बेचारे दिमाग का काम है. तभी ये एक पॉइंट से दूसरा पॉइंट जोड़कर कुछ जाना-पहचाना बनाने की कोशिश करता है. जैसे कि बादल में माइकल जैक्शन. 

अब सवाल ये है कि ये अच्छी बात है या बुरी. काश इसका कोई सरल जवाब होता, लेकिन है नहीं.

बताया जाता है कि इतिहास में कुछ साइकोलॉजिस्ट्स इसे गलत फैसलों या विवेक वगैरह से जोड़कर देखते थे. मगर हाल में ये भी बताया गया कि हर चीज में ज्यादा पैटर्न वगैरह डिटेक्ट करना, कॉन्स्पिरेसी थ्योरी या किसी विषय पर अलग ही मत रखने जैसी प्रवृत्तियों का शिकार भी बना सकता है.

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लेकिन इसके साथ कुछ अच्छी चीजें भी जुड़ी हैं. हाल ही में जर्मनी के रिसर्चर्स ने ये भी दिखाया है कि चीजों में सार्थक तस्वीरें देखना, जैसे कि बादल या पत्थरों में. ये रोजमर्रा के काम में क्रिएटीविटी से भी जुड़ा हो सकता है. 

तो अगर अगली बार आपको दीवार के उधड़े पेंट में दादा जी का चेहरा दिखाई दे, तो इसे अपने दिमाग की क्रिएटिविटी भी समझ सकते हैं. दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब…

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