भारतीय मूल की अमेरिकी एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) ने 5 जून 2024 को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के लिए उड़ान भरी थी. लेकिन कई प्रयासों के बाद, कई बार तारीखें बदलने के बाद, वो अभी तक वापस धरती पर नहीं आ पाईं हैं. नासा और स्पेस-एक्स (SpaceX) अब इन्हें वापस लाने की तैयारी में जुटे हैं. इस मिशन के लॉन्च की तारीख 26 सितंबर बताई जा रही थी. लेकिन साइक्लॉन नाइन के चलते, इस लॉन्च मिशन पर भी खतरे के बादल मंडला रहे हैं. खैर, अब एक हालिया रिसर्च में अंतरिक्ष में रहने के दौरान दिल पर पड़ने वाले असर के बारे में बताया गया है.
क्या स्पेस से लौटने के बाद सुनीता विलियम्स का दिल 'बूढ़ा' हो जाएगा?
Sunita williams in Space: नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में छपी एक रिसर्च के मुताबिक, स्पेस में एक महीना बीतने के बाद, इंजीनियर्ड इंसानी हार्ट टिशू कमजोर पड़ गया. इंजीनियर्ड इंसानी हार्ट टिशू लैब में तैयार इंसानी दिल की नकल जैसा होता है.
ये रिसर्च नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में छपी है. इसके मुताबिक, स्पेस में एक महीना बीतने के बाद, इंजीनियर्ड इंसानी हार्ट टिशू कमजोर पड़ गया.
इंजीनियर्ड इंसानी हार्ट टिशू लैब में तैयार इंसानी दिल की नकल जैसा होता है. स्पेस में ये भी देखा गया कि इसके धड़कने का पैटर्न अनियमित हो गया. और इसमें ऐसे बदलाव देखे गए, जो बुढ़ापे के लक्षणों जैसे थे.
इस बारे में कैलिफोर्निया की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के कार्डियोलॉजिस्ट, जोज़फ वू, ब्रिटिश साइंस जर्नल नेचर से बताते हैं कि इस स्टडी से स्पेस फ्लाइट में इंसानी हार्ट पर पड़ने वाले असर के बारे में जरूरी जानकारी मिलती है.
बताया जाता है, माइक्रोग्रैविटी यानी कम या ना के बराबर गुरुत्वाकर्षण की मौजूदगी - शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकता है. जो एस्ट्रोनॉट्स इसमें रहे हैं उन्होंने कार्डियोवैस्कुलर या दिल से जुड़े बदलाव महसूस किए हैं. जैसे कि धड़कन में अनियमितता.
रिसर्च से जुड़े, बाल्टीमोर की जॉन हॉप्किंस यूनिवर्सिटी के डेओक-हो-किम का कहना है,
“इन अनियमितताओं के बारे में जानकारी होने के बावजूद, लंबे समय तक स्पेस में रहने की वजह से दिल पर होने वाले बदलावों को समझना मुश्किल था. कि उनमें क्या मॉलिक्यूलर बदलाव आ रहे हैं.”
लेकिन इस समस्या का तोड़ भी निकाला गया.
चिप में दिलइस समस्या से निपटने के लिए किम और उनके साथियों ने एक इंजीनियर्ड हार्ट टिशू 30 दिनों के लिए, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन भेजा. दरअसल, साइंटिस्ट्स ने एक तरह की स्टेम सेल्स (जो किसी भी तरह की सेल्स में बदल सकती हैं) को प्रोग्राम किया कि वो हार्ट के मसल सेल्स में बदल जाएं.
फिर टीम ने ऐसे छह सैंपल्स को एक चिप में ऐसे फिट किया कि वो धड़कन की नकल कर सके. इस सिस्टम को ‘हार्ट ऑन अ चिप’(Heart on a chip) नाम दिया गया. जो कि एक फोन से आधे आकार में रचा-बसा था.
अब किम की टीम ने ऐसे दो चिप बनाए. एक को धरती पर रखा, तो वहीं दूसरे को स्पेस स्टेशन पर भेजा गया. साथ ही सेंसर की मदद से इन पर निगरानी भी रखी गई.
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12 दिन बाद ही पता चला कि स्पेस में मौजूद सिस्टम की स्ट्रेंग्थ लगभग आधी रह गई. जबकि धरती वाला सिस्टम तुलनात्मक रूप से स्टेबल था. यहां तक कि स्पेस वाले सिस्टम को जब धरती पर वापस लाकर 9 दिन रिकवरी की गई, तब भी इसमें कमजोरी साफ दिख रही थी.
साथ ही, स्पेस में मौजूद सिस्टम की ‘हार्ट बीट’ भी अनियमित हो गई थी. हालांकि, धरती पर वापस आने के बाद सैंपल में यह नहीं देखा गया.
किम इस बारे में कहते हैं कि इससे इस बात की तरफ इशारा मिलता है कि नासा के एस्ट्रोनॉट्स सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर - जो तकनीकी खराबियों के चलते महीनों से स्पेस में हैं - शायद वे कार्डियोवैस्कुलर स्ट्रेस महसूस कर रहे होंगे, जो कि उनके धरती पर आने पर सही हो जाएगा.
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