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एक बैक्टीरिया की मदद से जापान वालों ने ऐसी तलवार बना दी जो बंदूक की गोली को भी बीच से फाड़ दे!

SCIENCE: Shōgun सीरीज आने के बाद, जापान की कटाना तलवारें चर्चा में हैं. लेकिन ये तलवारें आम नहीं हैं. ये इतनी मजबूत और तेज होती हैं कि गोली को भी आधे हिस्से में काट दें. लेकिन इन तलवारों को बनाने का तरीका सदियों से बदला नहीं है.

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सांकेतिक तस्वीर.

सोलहवीं सदी की ताची तलवार की कीमत, 100 मिलियन डॉलर के करीब लगाई जाती है. आज के हिसाब से रुपयों में कुछ 8 सौ करोड़ से भी ज्यादा. जो जापान के मशहूर योद्धा फुकूशिमा मासानोरी से ताल्लुक रखती थी. हाल ही में आई Shōgun सीरीज के बाद जापानी तलवारें, कटाना फिर से चर्चा में हैं. लेकिन कटाना की दीवानगी यहीं तक नहीं है. क्विंटिन टेरेंटीनों (Quentin Tarantino) की फिल्मों में भी ये खूब देखने मिलती हैं. 

लेकिन ये तलवारें आम नहीं हैं. ये इतनी मजबूत और तेज होती हैं कि गोली को भी आधे हिस्से में काट दें. इन तलवारों को बनाने का तरीका सदियों से बदला नहीं है. और जिस तरीके से इन तलवारों को बनाने का स्टील बनाया जाता है, वो भी लगभग वैसा ही रहा है. इसे नाम दिया जाता है- टटारा(Tatara) मैथड. और इस मैथड से बना स्टील ही बेहतरीन जापानी तलवारों को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है.

लेकिन स्टील बनाने के लिए जरूरी है, लोहा. और कोई नई बात नहीं है, ये तो आप जानते ही हैं. पर क्या आप ये जानते हैं, यही लोहा कभी समंदर में घुला था. और जापानी तलवारों तक लोहा पहुंचने के लिए, एक बैक्टीरिया की मेहरबानी हुई. अजीब बात लगी ना, लेकिन पूरी कहानी सुन के बांछें खिल जाएंगी.

एक बार की बात है

करीब 300 करोड़ साल पहले की बात है. कभी लोहा या आयरन समंदर में घुला होता था. ये समय के साथ पट्टियों के तौर पर तल में जमा होता गया. लेकिन करोड़ 300 साल पहले की इन पट्टियों से पता चलता है कि तब वातावरण और समंदर में ऑक्सीजन थी नहीं. 

लेकिन फोटोसिंथसिस या प्रकाश संश्लेषण करने वाले बैक्टीरिया प्रकाश की मौजूदगी में ऑक्सीजन बना रहे थे. फिर ये ऑक्सीजन जा कहां रही थी. बताया जाता है कि ये ऑक्सीजन समंदर के पानी में घुले आयरन के साथ रिएक्ट करके आयरन ऑक्साइड नाम का मिनरल बना रही थी. जो धीरे-धीरे समंदर की तलहटी पर बैठता गया और बनाता गया आयरन ऑक्साइड की पट्टियां. इसे नाम दिया जाता है- बैंडेड ऑयरन फॉर्मेशन (BIF). दुनियाभर में मिलने वाला करीब आधा लौह अयस्क इन्हीं BIF में ही पाया जाता है.

इसमें लोहे के अयस्क और सिलका वगैरह की पट्टियां एक के बाद एक बैठती जाती हैं. और एक खास तरह की चट्टान में तब्दील हो जाते हैं. 

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एक के बाद एक लौह अयस्क की पट्टियां जमा होती गईं (विकीमीडिया)

बात निकली है इस बैक्टीरिया की जिसकी वजह से समंदर में घुला लोहा चट्टानों में बदला तो थोड़ा इसके बारे में जान लेते हैं. 

सायनोबैक्टीरिया का उदय और अस्त…

ये खूबसूरत पट्टीदार चट्टानें हमें सैकड़ों करोड़ साल पहले की नाटकीय कहानी बताती हैं. जब इन बेहद नन्हें जीवों यानी सायनोबैक्टीरिया का उदय हुआ और फिर इनका साम्राज्य अस्त भी हुआ. और ये बार-बार हुआ तब जाकर ये BIF बने.

दरअसल करीब दो सौ करोड़ साल पहले धरती पर कोई पौधे या जन्तु नहीं थे. झीलों और समंदर पर इन एक कोशिका वाले जीवों यानी सायनोबैक्टीरिया का राज़ था. 

ये पौधों की तरह सूरज की रौशनी की मदद से ऊर्जा बनाते थे. और अवशेष के रूप ऑक्सीजन बनी. यानी जो चीज आज हम इंसानों के लिए बेहद जरूरी है. वो ये सायनोबैक्टीरिया ‘कचरे’ के रूप में निकालते थे. 

खैर धीरे-धीरे ये सायनोबैक्टीरिया ऑक्सीजन बनातो गए. लेकिन एक वक्त पर ये ऑक्सीजन का लेवल इतना ज्यादा हो गया कि इस ऑक्सीजन की वजह से ये सायनोबैक्टीरिया खुद ही मरने लगे. 

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फिर जब सायनोबैक्टीरिया मरने लगे तो ऑक्सीजन का लेवल फिर घटा. नए सायनोबैक्टीरिया आए और ऑक्सीजन फिर बढ़ी जो आयरन के साथ रिऐक्ट की और एक तह आयरन के अयस्क की फिर बनी. ऐसे करके ये साइकिल चलता रहा और ये धारीदार चट्टानें बनीं. जो कि इनके इस डेथ साइकिल का सबूत बताए जाते हैं. 

कमाल की बात ये है कि ये परतें अपने आप में इतिहास के एक दौर के बारे में बताती हैं कि कब ऑक्सीजन ज्यादा और कब कम थी, और एक्सपर्ट्स इन्हें पढ़कर बहुत कुछ जानकारी दे सकते हैं.

खैर, ये लोहा चट्टानों तक तो पहुंच गया, अब बात करते हैं कि ये तलवारों तक कैसे पहुंचा. बताया जाता है कि समय के साथ ये पत्थर टूट-टूट कर जापान की नदियों में रेत में बदलते गए. जिसे नाम दिया जाता है- आयरन सैंड. इसी आयरन सैंड को जमा किया जाने लगा. 

जापान में टटारा मैथड से स्टील बनाने के लिए, इसी आयरन सैंड का इस्तेमाल किया जाता है. यानी इस रेत में मौजूद लोहे और कोयले या कार्बन को मिलाकर स्टील बनाया जाता है. जिससे बनती हैं ये शानदार तलवारें.

बताइए आपने सोचा था कि नन्हें बैक्टीरिया की वजह से एक रोज़ गोली को भी काटने वाली तलवारें बनाई जा सकेंगीं?

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