The Lallantop

'बिग बैंग' से पहले यूनिवर्स में क्या था? नई रिसर्च में आई 'डार्क मैटर' बनने की कहानी

Big Bang and Universe: बताया जाता है कि बिग बैंग के बाद ही समय की शुरुआत हुई. यानी इसके पहले समय जैसी कोई चीज़ नहीं थी. समय न हो, इसकी कल्पना कर सकते हैं? आइए. आपकी कल्पना पर बल डालें.

post-main-image
Big Bang के अलावा, यूनिवर्स की शुरुआत से जुड़ी दूसरी थियरीज़ भी हैं. (सांकेतिक तस्वीर)

‘हिंदी’ के ऊपर जो ये बिंदी (ं) दिखती है, उसमें कितने प्रोटॉन हैं? पता करेंगे, तो पता चलेगा कि इसमें कुछ 500,000,000,000 तक प्रोटॉन हो सकते हैं. दस लाख सालों में जितने सेकंड होते हैं न, उससे भी ज्यादा. लब्बोलुआब ये कि प्रोटॉन बहुत-बहुत-बहुत छोटे होते हैं. इतने छोटे कि इनके साइज की कल्पना करना भी बल का काम है. अब थोड़ा और बल लगाइए. कल्पना कीजिए कि एक प्रोटॉन को भी सौ करोड़ गुना छोटा किया जाए. इतना कि प्रोटॉन भी उसके सामने विशालकाय लगे. अब इस स्पेस में एक आउंस (28.3495 ग्राम) मैटर या पदार्थ भर दीजिए. अहा! अब आप एक यूनिवर्स यानी ब्रह्माण्ड की शुरुआत करने के लिए तैयार हैं.

दुनिया बनी कैसे?

पढ़ने मिलता है कि यूनिवर्स की शुरुआत बिग बैंग (Big Bang) के साथ हुई थी. इस ‘बड़के धमाके’ के बारे में अमेरिकी पत्रकार बिल ब्रायसन ने अपनी किताब ‘अ शार्ट हिस्ट्री ऑफ नियरली एवरीथिंग’ में ठीक-ठाक लिखा है. बकौल ब्रायसन, ये रेसिपी ‘इन्फ्लेमेटरी यूनिवर्स’ बनाने की है. इन्फ्लेमेटरी यूनिवर्स माने जब बिग बैंग के फौरन बाद सेकंड के कुछ हिस्से में यूनिवर्स तेजी से फैला था, वो वाला यूनिवर्स.

लेकिन पुराना बिग बैंग वाला यूनिवर्स बनाने के लिए इस रेसिपी से काम नहीं चलेगा. बताया जाता है कि इसके लिए आपको ब्रह्माण्ड के सिरे तक के आखिरी कणों को जमा करना पड़ेगा, और उसे इतना संकुचित करना पड़ेगा कि उसमें कोई डाइमेंशन या आयाम ही न बचें. माने न इसमें कोई ऊंचाई हो, न चौड़ाई, न ही लंबाई. इसे कहते हैं, सिंगुलैैरिटी (Singularity). 

भला ऐसी कोई चीज कैसे हो सकती है, जिसमें ऊंचाई-लंबाई वगैरह न हो. अजीब बात है न? हिम्मत रखिए. धीरे-धीरे आएगा. खैर, एक ब्रह्माण्ड कैसे बना होगा, ये इसकी कुछ थियरीज़ हैं.

लेकिन माजरा इतना आसान नहीं है. अगर आपकी इच्छा है कि बिग बैंग देखा जाए, तो ये मुमकिन नहीं होगा. हो ही नहीं सकता. क्योंकि बिग बैंग के पहले कोई स्पेस ही नहीं था, जहां इसे होता हुआ देखा जा सके. सिंगुलैरिटी के बाहर कोई जगह नहीं थी. कहीं कुछ नहीं.

बिल इस मामले को समझने के लिए एक उदाहरण भी देते हैं. वो बताते हैं,

स्वाभाविक तौर पर हम सिंगुलैरिटी को एक अनंत खाली और अंधेरे स्पेस में लटके ‘गर्भवती बिंदु’ की तरह सोचते हैं. पर ये गलत है. क्योंकि तब न स्पेस था, न अंधेरा. सिंगुलैरिटी के आसपास कुछ नहीं था. कोई जगह नहीं थी, जिसमें ये लटका हो.

हम ये भी नहीं पूछ सकते कि ये कब से लटका रहा होगा? या फिर ये किसी अच्छे आइडिया की तरह अचानक से आ गया था. या फिर ये हमेशा से वहां था. सही समय के इंतजार में. लेकिन समय तो तब था ही नहीं. न ही कोई भूतकाल था, जहां से ये आया हो. 

इसे धरती में मौजूद किसी चीज के उदाहरण से समझना मुश्किल है. क्योंकि यहां सभी चीजें स्पेस या ‘जगह’ घेरती हैं. सभी समय के साथ चल रही हैं. लेकिन सिंगुलैरिटी के साथ ऐसा नहीं था. बताया जाता है कि बिग बैंग के बाद ही तो समय की शुरुआत हुई. यानी इसके पहले समय जैसी कोई चीज़ नहीं थी.

तब विनोद कुमार शुक्ल के लिखे का और मतलब खिलता — ‘घड़ी देखना समय देखना नहीं होता.’

बड़के धमाके के बाद ही स्पेस यानी आयाम (चीजों की लंबाई-चौड़ाई-ऊंचाई) आए. यानी इसके बाद ही यूनिवर्स में चीजों ने जगह घेरी. तारे, पिंड, तत्व आदि बने. ऐसा इस थियरी में माना जाता है.

मामला जरा-सा जटिल है. क्योंकि कहा जाता है ‘कुछ नहीं’ से ‘कुछ’ बना होगा. खैर, यूनिवर्स विचित्र है. अपने हिसाब से चलता है. इसके ऊपर कोई दबाव या जिम्मेदारी नहीं है कि ये हम इंसानों के लिए सेंस बनाए.

तो अभी जितनी कल्पना अपन से हो पा रही है, उतने के साथ आगे का मामला समझते हैं. 

मगर… एक थियरी और है

इस थियरी के मुताबिक, शायद बिग बैंग से दुनिया की शुरुआत न हुई हो. कॉस्मोलॉजी की ये थियरी कहती है कि यूनिवर्स शायद दो फेज के बीच में बाउंस करता हो: कॉन्ट्रैक्शन और एक्सपैंशन. यानी किसी गुब्बारे की तरह सिकुड़ना और फूलना. वैसे ही पूरा यूनिवर्स पहले सिकुड़ता है, फिर फैलता है.

कहते हैं कि अगर ये वाली थियरी सही है, तो इससे ब्रह्माण्ड के नेचर की नई तस्वीर सामने आ सकती है. साथ ही इसके दो सबसे रहस्यमय हिस्सों - ‘ब्लैक होल’(Black Hole) और ‘डार्क मैटर’ (Dark Matter) - को समझने में भी मदद मिल सकती है.

क्या है उछलता कॉसमॉस?

कॉसमॉस (cosmos). ब्रह्माण्ड के लिए इस्तमाल किया जाने वाला फैंसी शब्द. दूसरी थियरी इसी से जुड़ी है. इस थियरी को ‘नॉन-सिंगुलर मैटर बाउंसिंग कॉस्मोलॉजी’ कहा जाता है. 

हाल में आई एक स्टडी सुझा रही है कि ‘डार्क मैटर’ शुरुआती 'ब्लैक होल' से बना हो सकता है. ऐसा तब हुआ होगा, जब यूनिवर्स पिछली कॉन्ट्रैक्शन फेज से अभी चल रही एक्सपैंशन फेज में आया होगा.

इस थियरी के मुताबिक, संभवतः ब्रह्माण्ड एक कॉन्ट्रैक्शन फेज से गुजरा होगा. माने सिकुड़ गया होगा. लेकिन मैटर की डेंसिटी बढ़ती गई होगी और इस फेज का अंत हुआ. जाहिर सी बात है एक ही स्पेस में मैटर को दबा-दबा के ठूसा जाएगा, तो किसी न किसी पॉइंट पर इसकी क्षमता खत्म हो ही जाएगी. बताया जाता है, इस कॉन्ट्रैक्शन फेज के बाद बिग बैंग हुआ और यूनिवर्स फैला, जिसे एक्सलरेटेड एक्सपैंशन कहते हैं. 

BIG BANG
(Image credit: NASA/WMAP Science Team/Robert Lea)
नई रिसर्च में क्या बताया है?

जर्नल ऑफ कॉस्मोलॉजी ऐंड एस्ट्रोपार्टिकल फिजिक्स में छपी एक रिसर्च डार्क मैटर के बनने के बारे में कुछ बातें बता रही है.

लाइव साइंस के मुताबिक, गैलेक्सी के मूवमेंट्स और ब्रह्माण्ड की माइक्रोवेव बैकग्राउंड - यानी बिग बैंग के बाद तरंगों की हलचल - से ये अंदाजा लगाया जाता है कि यूनिवर्स में 80% मैटर, डार्क मैटर होगा.

यानी ऐसी चीज, जिससे न तो लाइट निकलती है और न जाती है. माने जो लाइट अब्जॉर्ब नहीं करता. न ही इससे टकराकर लाइट इधर-उधर जाती है. अगर ऐसी चीज की कल्पना करने में मुश्किल लगे, तो घबराना नहीं है. मुश्किल वक्त कमांडो सख्त. क्योंकि साइंटिस्ट्स भी नहीं बता पाए हैं कि ये डार्क मैटर असल में बना किस चीज से है.

DARK MATTER RESEARCH
डार्क मैटर को दर्शाती सांकेतिक कलात्मक तस्वीर

अब वापस आते हैं रिसर्च पर. रिसर्चर्स का कहना है कि जब पिछली बार युनिवर्स अपने कॉन्ट्रैक्शन फेज से एक्सपैंशन फेज में आया होगा, तब हो सकता है, मैटर की डेंसिटी में कुछ उथल-पुथल हुई हो. इसकी वजह से कुछ शुरुआती ब्लैक होल बने होंगे. इन्हीं से डार्क मैटर बने होने की संभावना को इस रिसर्च सिनैरियो में खोजने की कोशिश की गई.

समझते हैं, ब्लैक होल की डेंसिटी इतनी ज्यादा होती है कि इनके गुरुत्वाकर्षण की वजह से लाइट भी इनसे बाहर नहीं निकल सकती है. बताया जाता है कि जब यूनिवर्स कॉन्ट्रैक्ट होकर फिर से फैला होगा, तब पदार्थ (मैटर) की डेंसिटी भी बहुत ज्यादा रही होगी. इसकी वजह से छोटे-छोटे ब्लैक होल बने होंगे, जो कि डार्क मैटर बनाने के लिए एक उम्मीदवार हो सकते हैं.

यानी डार्क मैटर किससे बना हो सकता है, उसमें शायद थोड़ी सी 'लाइट' पड़ती दिख रही है. लेकिन ये मामला टाइट है, क्योंकि ये सारी थियरी ही हैं. 

अभी तो ली अंगड़ाई है, आगे बहुत लड़ाई है.

वीडियो: माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय की तुलना में 'The Big Bang Theory' ने Netflix को बुरा फंसा दिया