AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आने के बाद से, इंसानी कल्पना को नया आयाम मिला. मसलन हाल में वायरल हो रहे कुछ वीडियोज़ की बात करें, जिनमें 10-12 फुट लंबे लोगों को पिरामिड बनाते दिखाया गया है (Pyramid AI viral video). जाहिर सी बात है, ऐसे कोई सबूत या सुराग नहीं मिलते और यह वीडियो असली तस्वीर नहीं बयां करते हैं. पर इस वायरल वीडियो के साथ एक पुराना सवाल फिर से निकलता है. कि आखिर ये विशालकाय पिरामिड बनाए क्यों और कैसे गए?
पिरामिड बनाने के AI वीडियो वायरल हैं, पर असल में इनके बनने की क्या थ्योरी बताई जाती हैं
Pyramid viral video: आज से कुछ 4.5 हजार साल पहले गीज़ा के पिरामिड बनाए गए थे(Great Pyramid of Giza). जिसमें 23 हजार पत्थर लगे होने की बात कही जाती है. और जब से विश्वभर की नजर में ये आई हैं, तब से कई सवाल भी चल रहे हैं. मसलन ये बनाए क्यों गए, इनके भीतर क्या है और इतने विशालकाय पिरामिड बिना किसी आधुनिक तकनीक के बने कैसे?
पहले ये एक वायरल वीडियो देखिए फिर आगे बात करते हैं.
मिस्र (Egypt) का नाम लिया जाए और पिरामिड का जिक्र ना आए! और इनमें सबसे प्रसिद्ध और ऊंचा है, गीज़ा का पिरामिड. जिसे ग्रेट पिरामिड भी कहा जाता है. इसकी अपनी वजहें भी हैं, जब ये बना था तब इसकी ऊंचाई बताई जाती है, कुछ 480 फुट. वहीं आज 4 हजार पांच सौ साल बाद, इतनी हवा-पानी और तूफान सब झेल कर - अब भी इसकी ऊंचाई कुछ कम नहीं है, यह करीब 450 फुट ऊंचा.
मौत के बाद का इंतजामनेशनल जियोग्राफिक के मुताबिक, मिस्र के सम्राट या फैरोज़ - मौत के बाद भगवान बनने की उम्मीद में रहे होंगे. और अगले जीवन की तैयारी के लिए उन्होंने ये बनवाए. गॉड्स (Gods) के लिए टेंपल और अपने लिए बनवाए विशालकाय पिरामिड. जिनमें हर राजा अपनी जरूरत के हिसाब की चीजें रखवाता, इस उम्मीद में कि मौत के बाद के जीवन में ये काम आएंगे.
तूतनखामेन का मकबरा इस मामले में बेहद फेमस है. क्योंकि ये अपनी तरह का अनोखा साबुत मकबरा था. इस में एक सोने का मुखौटा भी मिला था. जो करीब तीन हजार साल बाद, साल 1922 में पहली बार खोजा गया था.
खैर पिरामिड में रखे ताबूतों के साथ कीमती सामान रखने की वजह से इनमें लूट का खतरा भी रहता था. इसलिए इससे बचने के इंतजाम भी किए जाते थे. बाहर से किसी पिरामिड एक ठोस सी संरचना से लग सकते हैं. लेकिन इनके भीतर तमाम चेंबर, सुरंगे और तहखाने वगैरह भी मौजूद हैं. जो इनकी संरचना को और भी जटिल बनाते हैं.
हाथियों से भारी पत्थरयही नहीं गीज़ा के पिरामिड में लगे पत्थर 2.5 से 15 टन भारी हो सकते हैं. यानी इनमें से कुछ हाथियों और कारों से भी ज्यादा भारी हो सकते हैं. वहीं अंदाजा लगाया जाता है कि इसमें करीब 23 लाख ऐसे पत्थर इस्तेमाल किए गए हैं.
यानी लाखों टन का भार ये जमीन पर डालते हैं. और कमाल की इंजीनियरिंग तो देखिए, सालों से पिरामिड इतना वजन लिए टस से मस नहीं हो रहे. और इन्हीं सब वजहों से सवाल आता है कि आखिर ये पत्थर ऊपर पहुंचाए कैसे गए?
कैसे बनाया ये मुजस्समाहालांकि सालों से दुनियाभर के साइंटिस्ट इस सवाल के जवाब की खोज में हैं. क्योंकि यहां एक ही पिरामिड नहीं बनाया गया है. ऐसे तमाम पिरामिड हैं, जो अलग-अलग समय पर बने हैं. इसलिए माना जाता है कि इनको बनाने की तकनीक भी समय के साथ विकसित होती रही होगी.
नेशनल जियोग्राफिक के मुताबिक, पिरामिड कुशल कारीगरों ने बनाए थे, जो पास बसाई गई 17 एकड़ की अस्थाई बस्ती में रहते थे. यहां इनके सुराग भी पाए गए हैं. जिनमें भट्टियां, जानवरों की ढेरों हड्डियां शामिल हैं.
पुरातत्वविद बताते हैं कि जिस प्रकार से यहां रहने वाली आबादी व्यवस्थित थी, इससे पता चलता है कि यहां कोई सेंट्रल अथॉरिटी रही होगी यानी कोई केंद्रीय अधिकारी की देख-रेख.
खैर मिस्र के कई इलाकों में मौजूद लिखित दस्तावेजों में भी पिरामिड्स के बनाने की जानकारी मिलती है. जिनको पपयरी (Papyri) कहा जाता है. जो पत्ते वगैरह पर लिखे जाते थे. इनसे पता चलता है, गीज़ा के पठार तक मटेरियल पहुंचाने के लिए, मानव निर्मित पानी की नहरों का इस्तेमाल किया जाता रहा होगा. जो नील नदी से जुड़े बड़े नेटवर्क की तरह रही होंगी.
तांबे के औजार और ग्रेनाइटनावों की मदद से लाए जाने वाले समान में तांबे के औजार, ग्रेनाइट पत्थर शामिल थे. वहीं लेबनान से लकड़ियां वगैरह लाई जाती रही होंगी. वहीं कारीगरों को खान-पान के लिए मवेशी भी लाए जाते थे.
ये तो फिर भी आसान काम रहा होगा. जिसे लेकर ज्यादा संशय नहीं जताया जाता है. मुश्किल काम जिसे लेकर आज भी एक्सपर्ट्स एक मत नहीं हो पाए हैं. वो ये कि इन हजारों किलो के पत्थरों को इतनी ऊंचाई तक कैसे ले जाया गया होगा.
ऊपर कैसे पहुंचे पत्थरइसे लेकर भी कुछ थ्योरी हैं. मसलन एक में कहा जाता है कि इन पत्थरों को ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए मिट्टी का लंबी ढलान वाला, अस्थाई रास्ता बनाया गया रहा होगा. जिनमें लकड़ी, रस्सियों और चर्खियों वगैरह की मदद से भारी पत्थरों को ले जाया गया रहा होगा.
वहीं एक थ्योरी में माना जाता है कि पिरामिड के चारों तरफ ढलान वाला, मिट्टी का रास्ता बनाया गया रहा होगा. या फिर जिग-जैग ढलान जैसे पहाड़ों के रास्तों में होती है, वैसा कुछ.
वहीं गीज़ा के पिरामिड से इतर बात करें, तो कुछ पिरामिड में पानी की मदद से पत्थरों को लकड़ी में तैराकर ऊपर पहुंचाने की बात भी कही जाती है.
पिरामिड के भीतर हैं झांकनावहीं ये भी माना जाता है कि पिरामिड के राज़ इसके नीचे की जमीन में दबे हों. और जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी एडवांस हो रही है. बेहतर स्कैन और भीतर की तस्वीरें निकालना संभव हो पा रहा है. इतिहासकार इस उम्मीद में हैं कि इससे शायद कुछ नई बातें भी पता चलें.
स्कैन पिरामिड्स प्रोजेक्ट के अंतर्गत एक इंटरनेशनल टीम, आधुनिक तकनीक की मदद से पिरामिड्स के भीतर झांकने की कोशिश भी कर रही है.
हालांकि पिरामिड के भीतर मौजूद खाली जगहों को लेकर भी ये कहा जाता है. कि ये किसी धार्मिक काम के लिए नहीं, बल्कि पिरामिड की संरचना में पत्थरों के भार को बराबर बांटने के लिए बनाए गए होंगे.
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बहरहाल, ये कहना गलत नहीं होगा कि पिरामिडों को बनाने के मामले में जवाबों से ज्यादा सवाल हैं. मसलन तांबे के औजारों से कठोर पत्थर काटे कैसे गए? इसके लिए रेत और किसी तरह की आरी वगैरह की मदद लेने की बात भी कही जाती है.
लेकिन इतनी थ्योरी और अब तक की तमाम जानकारी के बावजूद, किसी को इन रहस्यमई इमारतों के बारे में पूरी तरह नहीं मालूम है. शायद यही राज़ इन्हें और भी खूबसूरत भी बनाते हैं.
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