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छोटे से कीड़े से इतिहास रच दिया, क्यों microRNA की खोज ने इन वैज्ञानिकों को नोबेल दिला दिया?

Nobel Prize Medicine 2024: 1980 के आसपास का दौर था. विक्टर और गैरी दोनों ही रॉबर्ट हार्विट्ज़ की लैब में पोस्ट डॉक्टोरल फेलो थे. मजेदार बात ये कि इनके गुरू रॉबर्ट को भी साल 2002 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

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सांकेतिक तस्वीर

खबर आई, मेडिसिन या चिकित्सा के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) साझा तौर पर विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन (Victor Ambros and Gary Ruvkun) को दिया गया. कुछ साइंटिफिक नाम सुनने को भी मिले, मसलन microRNA और जीन रेगुलेशन. जिनके पीछे का आंचा-पांचा बताने के लिए - इन दोनों को विज्ञान का ये सबसे प्रतिष्ठित माना जाने वाला पुरस्कार मिला है. साथ में मिले 1.1 करोड़ स्वीडिश क्राउन या 11 लाख अमेरिकी डॉलर. अपने लिए, आज के हिसाब से रुपयों में बदलें तो 9 करोड़ रुपए से ज्यादा. लेकिन ये ईनाम रुपयों से ज्यादा प्रतिष्ठा का है. और साथ में उन तमाम संभावनाओं का, जो इस खोज की बदौलत साकार हो सकेंगी. मसलन तमाम बीमारियों को समझने में मदद मिलेगी. लोगों के इलाज का रास्ता खुलेगा.

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इसको एक उदाहरण से समझते हैं. एक दौर था जब हल्का सा घाव और बैक्टीरिया का इंफेक्शन जानलेवा हो सकता था. लेकिन फिर साल 1928 में सर एलेग्जैंडर फ्लेमिंग ने एक खोज की.

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खोज पेनिसिलीन की, जो थी एक एंटीबायोटिक. यानी इसकी मदद से बैक्टीरिया वगैरह से लड़ने में मदद मिल सकी. तभी शायद इस खोज को बीमारियों के खिलाफ एक बड़ी जीत के तौर पर बताया जाता है. इस खोज के लिए इन्हें भी साल 1945 में मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार दिया गया.

अब इसके कुछ 80 साल बाद ये पुरस्कार दिया गया है, microRNA की खोज वगैरह के लिए. एक बार इस पुरस्कार का नाम फिर आया, समझा जा सकता है कि आज से लेकर आने वाले दौर में, यह खोज भी लोगों के इलाज में बड़ी भूमिका निभा सकती है. इसलिए इसके बारे में समझते चलते हैं.  

अब ये तो हम जानते हैं कि हमारा शरीर कई छोटी-छोटी कोशिकाओं या सेल्स से मिलकर बना होता है. लेकिन पूरे शरीर में एक जैसी ही कोशिकाएं नहीं होती हैं. जैसे दिमाग में Nerve cells या तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं. मसल्स या हार्ट में भी कुछ अलग कोशिकाएं होती हैं. और जाहिर तौर पर इनका काम अलग-अलग होता है. 

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दरअसल हमारी कोशिकाओं में क्रोमोजोम (Chromosome) नाम की संरचना होती हैं, जिनमें स्टोर जानकारी कोशिकाओं के लिए किसी इंस्ट्रक्शन जैसे काम करती है. यानी ये बताते हैं कि कोशिका में कौन सा प्रोटीन कैसे बनेगा वगैरह-वगैरह. 

जैसे किसी कॉलेज के मैनुएल में लिखा रहता है कि सिलेबस क्या होगा, परीक्षाएं कैसे होंगी, विषय क्या होंगे…

पर दिलचस्प बात ये है कि इन सभी तरह की कोशिकाओं में क्रोमोजोम की संख्या एक ही होती है. इसलिए सभी कोशिकाओं में एक ही सेट के जीन्स (Genes) भी होते हैं, जो इन क्रोमोजोम पर सवार होते हैं. जो एक तरह की फंक्शनल यूनिट है. कामकाज की बुनियादी इकाई यही है. माने कोशिका के कुछ कामकाज के इंस्ट्रक्शन्स इन्हीं से जुड़े हैं. ये कोशिकाओं को प्रोटीन्स वगैरह बनाने के इंस्ट्रक्शन्स दे सकते हैं.

अब सभी कोशिकाओं में एक बराबर सेट जीन्स के हैं, इंस्ट्रक्शन्स के भी सेम सेट हैं. पर फिर भी मसल्स या नर्व की सेल्स के काम में अंतर क्यों?

इनके कामकाज में अंतर की क्या वजह है? इसी सवाल का जवाब उस शब्द से जुड़ा है, जो हमने शुरुआत में पढ़ा- जीन रेगुलेशन या जीन का नियंत्रण. जैसे गाड़ी में स्टीरिंग, टायर व इंजन तो एक हो सकते हैं, लेकिन इसको चलाया कैसे जाएगा ये तो कोई ड्राइवर भाई तय करेगा. 

यही काम जीन रेगुलेशन में होता है. ताकि हर सेल में केवल कुछ खास और जरूरी इंस्ट्रक्शन्स ही दिए जाएं. जिससे जीन्स का सही सेट अलग-अलग कोशिकाओं में एक्टिव हो. 

जैसे कॉलेज का मैनुएल एक हो सकता है, लेकिन किस कोर्स में क्या पढ़ाया जाएगा, क्लास कैसे चलेंगी वो सभी विषयों के लिए अपने हिसाब से चुना जा सकता है.

विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन इसी सवाल को समझना चाहते थे कि कैसे अलग-अलग तरह की कोशिकाएं डेवलप होती हैं? इसके लिए इन्होंने microRNA खोजा, नई क्लास का एक छोटु सा RNA अणु, जो जीन रेगुलेशन में अहम भूमिका निभाता है.

छोटा कीड़ा, बड़ी खोज

1980 के आस-पास का दौर था. विक्टर और गैरी दोनों ही रॉबर्ट हार्विट्ज़ की लैब में पोस्ट डॉक्टोरल फेलो थे. मजेदार बात ये कि इनके गुरू रॉबर्ट को भी साल 2002 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. 

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(Image: Nobel.org)

इनकी लैब में ये दोनों एक छोटे से वर्म या कीड़े पर रिसर्च कर रहे थे. करीब 1 मिलीमीटर लंबे राउंडवर्म पर. लेकिन इसके छोटे साइज के बावजूद ये कीड़ा खास था. काहे कि इसमें भी नर्व, मसल्स सेल्स जैसी कोशिकाएं पाई जाती हैं. जैसा कि हम इंसानों जैसे बड़े जीवों में होती हैं. इन्हीं ने इस कीड़े को इन कोशिकाओं को समझने और विक्टर और गैरी के प्रयोगों के लिए बेहतरीन उम्मीदवार बनाया.

दरअसल इसके जरिए ये समझा जा रहा था कि बहुकोशिकीय वाले जीवों में जीन का एक्टिवेशन कैसे काम करता है?

जिसकी मदद से ये समझने में मदद मिली कि हम इंसानों जैसे जीवों का विकास कैसे होता है. 

वहीं रिसर्च ये भी बताती हैं कि MicroRNAs के बिना कोशिकाएं और टिशू ठीक से विकसित नहीं होते हैं. और कोशिकाओं और टिशू के इस असमान्य विकास से कैंसर जैसी बीमारी भी हो सकती है. साथ ही गड़बड़ियों की वजह से सुनने की समस्या, आंखों की दिक्कत और हड्डियों की बीमारियां भी हो सकती हैं. इसलिए जीन्स के रेगुलेशन को समझकर इन बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिल सकती है. 

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