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बत्ती ना जलानी पड़े इसलिए लेखक ने अंधेरे में लिखने की नई टेक्नीक निकाल डाली, फेमस हो गया!

Science invention: कल्पना करिए दशकों पहले एक लेखक रहा हो, जिसकी रातों को जागने की आदत रही हो और वो अंधेरे में लिखना चाहता हो. वो क्या कहते हैं आज-कल नाइट पर्सन. खैर कल्पना क्या करनी है. ऐसे एक लेखक सच में थे. नाम था Lewis Carrol. इन्होंने अंधेरे में लिखने की तरकीब खोज निकाली थी.

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रात में लिखने का मन किया तो छोटे से डिवाइस से लगाया जुगाड़ (सांकेतिक तस्वीर: X)

एक जापानी हाइकू या अति लघु कविता सुनिए, जो एत्सुजिन् ने कही थी. गौर फरमाइए, “सिर्फ़ एक चहकते कीड़े ने मुझे बताया कि रात है, इतना चमक रहा था चांद” आज की जगमग करती लाइटों को देखकर, कल्पना करना मुश्किल है कि कभी सूरज ढलने के बाद कितना अंधेरा होता होगा. जब ये बिजली की लाइटें इतनी ज्यादा उपलब्ध नहीं रही होंगी. और बंद कमरे में बिना लाइट के रात का पता शायद चांद से ज्यादा, चहकते कीड़ों की आवाज से चलता होगा.

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(क्रेडिट- आपके जापानी हाइकू, एकलव्य)

अब कल्पना करिए, ऐसे में एक लेखक रहा हो. जिसकी रातों को जागने की आदत रही हो. वो क्या कहते हैं, आज-कल ‘नाइट पर्सन’. खैर, कल्पना क्या करनी है ऐसे एक लेखक सच में थे. नाम था- लेविस कैरल (Lewis Carroll). 

साल 1865 में आई इनकी किताब ‘एलिस्ज़ एडवेंचर इन वंडरलैंड’ (Alice's Adventure in the wonderland) भी खासी मशहूर है. साल 2010 में इस पर बेस्ड फिल्म भी आई, नाम था ‘एलिस इन वंडरलैंड’. फिल्म में जॉनी डेप और एन हैथवे जैसे कलाकारों ने शिरकत भी की थी. 

बहरहाल, ये कहानी लेखक कैरल की नहीं है. बल्कि एक इनवेंटर या खोजी कैरल की है. जिनको रात में जागने की आदत थी. और वो समस्याओं और उनके समाधानों के बारे में रातों में अक्सर सोचा करते थे. 

लेखक स्टुअर्ट डॉगसन कॉलिंगवुड अपनी किताब लाइफ एंड लेटर्स ऑफ लेविस कैरल में लिखते हैं, 

जैसा कि मैंने पहले भी बताया है कि कैरल को रात में सोचना और समस्याओं का हल खोजना पसंद था. अक्सर वो नए विचार उन रातों में लाते थे, जिन रातों में वो सो नहीं पाते थे. और वो कुछ ऐसा खोजना चाहते थे, जिसकी मदद से वो रात में भी अपने विचारों को लिखकर दर्ज कर सकें. 

बकौल स्टुअर्ट पहले उन्होंने गत्ते में कुछ कट वगैरह लगाकर अंधेरे में लिखने की कोशिश की लेकिन इसका कोई फल ना मिल सका. फिर साल 1891 में उन्हें एक डिवाइस का आइडिया आया जिसमें कुछ चौकोर हिस्से कटे हुए थे.  

कैरल ने इन चौकोर खांचों के किनारों को आधार मानकर, लिखना शुरु किया और अपनी एक लिपी सी बना डाली. जिसे वो दिन में अंग्रेजी में बदल सकें. इस तरकीब ने बढ़िया काम किया और और इसे नाम दिया गया- टाइफलोग्राफ (Typhlograph). लेकिन बाद में अपने छात्रों और भाई के सुझाव पर उन्होंने, इसका नाम बदलकर न्यक्टोग्राफ (Nyctograph) नाम चुना.

चौकोरों से अंधेरे में लिखाई कैसे

दरअसल, ये चौकोर छेदों वाली साधारण सी तख्ती, बड़े काम कर सकती है. इसमें दो पंक्तियों में 8-8 करके कुल 16 छेद होते हैं. दरअसल, इस खास लिखाई में चौकोर से अक्षर बनाए जाते हैं. जिन्हें लिखने में ये डिवाइस अंधेरे में गाइड करता है.

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चौकोर किनारों को गाइड की तरह इस्तेमाल किया जाता है (Image: X)

इस लिखाई में कुछ बिंदु होते हैं. कुछ सीधी लकीरें होती हैं, जो कभी एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं. वहीं कुछ लाइनों के किनारे बिंदु लगाकर और दूसरे अक्षर भी बनाए जाते हैं.

मसलन, a को बाएं ऊपरी कोने में एक बिंदु और दाहिने निचले कोने पर एक बिंदु के जरिए दर्शाया जाता है. (ऊपर लगी तस्वीर की मदद ले सकते हैं) ऐसे ही बाकी लकीरों और बिंदुओं को भी किसी ना किसी अंग्रेजी अक्षर की जगह लिख देते हैं. ऐसा करके एक अक्षरों की पूरी लिपी सी, कैरल ने बना डाली ताकि वो रात में आराम से अपने विचारों को कागजों पर उतार सकें.

कमाल है ना अब इसे आलस कहें या रचनात्मक्ता कि मोमबत्ती ना जलानी पड़े, इसलिए लिखने की एक नई तरकीब ही बना डाली.

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