बारिश के साथ आती है नमी. और ये नमी लोहे की कट्टर दुश्मन मानी जाती है. इसकी मौजूदगी में चमकते लोहे पर, लाल परत पड़ जाती है. मानो कोई अदृश्य ‘मिस्टर इंडिया’ पान थूक के चला गया हो. लेकिन पान थूकने को इतने ‘मिस्टर इंडिया’ भी नहीं होंगे, जितनी जंग लोहे की चीजों पर लगती है. लोहे पर जंग लगाने का काम करती हैं, कुछ अदृश्य चीजें. हवा में मौजूद ऑक्सीजन (O2) और नमी (H2O). दरअसल जंग लगने को टेक्निकल भाषा में ऑक्सीडेशन कहते हैं. इसमें क्या होता है, हौले-हौले से समझते हैं.
मजबूत लोहे को जंग जकड़ लेती है, पर स्टेनलेस स्टील के आगे ये हार कैसे मान लेती है?
Science Explained: बारिश का मौसम है. चाय-पकौड़ों से मन भर गया हो, तो घर की चीजों पर भी नजर डाली जाए. पता चले टोंटी में ‘मुर्चा’ लग गया है, कहें तो जंग लग गई है. लोहे और जंग का रिश्ता तो पुराना है. सवाल ये कि जंग स्टेनलेस स्टील को अपना शिकार क्यों नहीं बना पाती?
एक चीज है, हमारा लोहा (Iron)- केमिस्ट्री की किताबों में इसका नाम आपने ‘Fe’ पढ़ा होगा. अब ये जो लोहे जैसी धातुएं होती हैं, ये थोड़ा ‘अशांत’ होती हैं. कहें तो रिएक्टिव होती हैं. तभी हवा में मौजूद ऑक्सीजन के साथ रिएक्शन कर लेती हैं. तांबे में भी आपने देखा होगा. कुछ हरी-नीली सी परत लग जाती है, ये भी ऐसी ही रिएक्शन की वजह से होता है.
मामला लोहे के उदाहरण से समझते हैं. होता ये है कि नमी की मौजूदगी में लोहा या आयरन, ऑक्सीजन और पानी (H2O) के साथ मिलकर ऑक्साइड बनाता है. इसको 'हाइड्रेटेड फेरिक ऑक्साइड' कहते हैं.
जटिल शब्द में मत जाइए. सीधा सा मतलब है- ‘हाइड्रेटेड’ बताता है कि इसमें पानी के अणु हैं, ‘फेरिक’ बताता है कि लोहे के अणु हैं और ऑक्साइड, ऑक्सीजन की तरफ इशारा करता है. कुल मिलाकर हम समझे कि जंग ज्यादा कुछ नहीं धातु के साथ ऑक्सीजन और H2O का संगम है. एक सीधी सी केमिकल रिएक्शन है.
ये रिएक्शन कई धातुओं में होती है, लोहा, तांबा या फिर स्टील. लेकिन जैसा की नाम से इशारा मिलता है- स्टेनलेस स्टील, जंग से बचा रह जाता है. जंग (War) में इसका इस्तेमाल भले होता हो, लेकिन आमतौर पर इसमें जंग (rust) नहीं लगती है.
फन फैक्ट: लोहे की जंग (rust) इंसानों के लिए आमतौर पर नुकसानदायक नहीं होती है. और टिटनेस एक तरह के बैक्टीरिया की वजह से होता है, जिसका नाम है, क्लास्ट्रीडियम टिटैनी(Clostridium tetani).
स्टेनलेस स्टील किस से बना होता है?आम स्टील में 99 फीसदी आयरन, 0.2 से 1 फीसदी के बीच कार्बन होता है. वहीं स्टेनलेस स्टील में 62-75 फीसदी आयरन, 1 फीसदी तक कार्बन और 10 फीसदी से ज्यादा क्रोमियम हो सकता है. आमतौर पर इसमें कुछ मात्रा में निकिल भी मिलाया जाता है.
लेकिन जंग से लड़ने में ‘असली’ काम क्रोमियम का है. मिलाया गया क्रोमियम, स्टेनलेस स्टील को जंग से बचाने में अहम भूमिका निभाता है.
इस बारे में बेल्जिम बेस्ड ‘वर्ल्ड स्टेनलेस’ के सिक्रेट्री जनरल और मटेरियल साइंटिस्ट टिम कॉलिंस लाइव लाइंस बताते हैं,
क्रोमियम स्टेनलेस स्टील की जंग प्रतिरोधकता को बनाने के लिए जरूरी है. क्रोमियम हवा में मौजूद ऑक्सीजन के साथ रिएक्ट करता है. जिससे क्रोमियम ऑक्साइड (Cr2O3) की एक महीन परत बन जाती है. जिसे ‘पैसिव लेयर’ कहा जाता है. यह परत वातावरण की ऑक्सीजन को स्टील में मौजूद आयरन के संपर्क में आने से रोकती है.
मामला सिंपल सा है, जो ऑक्सीजन, आयरन के साथ मिलकर जंग बनाती है. उसे आयरन तक पहुंचने से रोक दिया जाए, तो जंग को भी रोका जा सकता है. यही काम स्टेनलेस स्टील में क्रोमियम बाबू करते हैं. लेकिन एक बात ये भी जानने वाली है कि कुछ कंडीशन या केमिकल्स के मौजूद होने पर स्टेनलेस स्टील पर भी जंग लग सकती है. बाकी वो कहानी फिर कभी.
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