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पिता बनाना चाहते थे इंजीनियर ताकि टाटा इंडस्ट्रीज में काम करें, फिर भाभा कैसे भौतिक विज्ञान के रास्ते पर पहुंचे?

Homi J. Bhabha दूसरे खत में अपने पिता को लिखते हैं कि मैं भौतिक विज्ञान पढ़ने की इच्छा के तले दबा जा रहा हूं. वो यहां तक कहते हैं कि उनकी एक ‘सफल’ इंसान बनने की कोई इच्छा नहीं है. ना ही वो किसी बड़े फर्म के मुखिया बनना चाहते हैं.

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प्रधानमंत्री नेहरू को देश का पहला डिजिटल कंप्यूटर दिखाते हुए (Credit: TIFR)

साल 1939 में जब होमी जहांगीर भाभा (Homi J. Bhabha) छुट्टियों में वतन वापस लौटे, तब उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि परदेश में रहने के उनके दिन खत्म हो गए हैं. और दूसरे विश्व युद्ध के चलते वो हमेशा के लिए देश मेें रहने वाले हैं. लेकिन वो बेंगलुरु वापस लौटे, और नोबल विजेता फिजिसिस्ट चंद्रशेखर वेंकट रमन (C.V. Raman) ने उन्हें अपने संरक्षण में लिया, जो उस वक्त इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) में फिजिक्स डिपार्टमेंट के हेड थे. ऐसे भाभा और भारत की कहानी ने नया रुख लिया. आज तीस अक्टूबर को उनके जन्मदिन पर आइए जानते हैं, भाभा की भारत को बदलने की कहानी. 

दादा के नाम पर रखा गया नाम

होमी के पिता, जहांगीर भाभा बेंगलुरु में बड़े हुए और ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई करने के बाद. मैसूर की न्यायिक सेवा या ज्यूडिशियल सर्विसेज में काम करने लगे. इसके बाद भिकाजी फरामजी पांडे की बेटी मेहेर बाई से उनकी शादी हो गई. और शादी के बाद दोनों तब के बॉम्बे में रहने चले गए. जो उस दौर का पहला कमर्शियल शहर था. 

यहीं जहांगीर और मेहेर बाई भाभा के घर 30 अक्टूबर, 1909 को जन्म एक बच्चे ने जन्म लिया. जिसके दादा मैसूर के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ एजुकेशन थे. इन्हीं के नाम पर होमी जहांगीर भाभा का नाम रखा गया. होमी का ज्यादातर बचपन मुंबई में ही बीता.

टाटा से रिश्ता

होमी के परिवार का मशहूर भारतीय उद्योगपति परिवार से भी रिश्ता रहा है. दरअसल उनकी बुआ, जिनका नाम भी मेहेरबाई था- उनकी शादी उद्योगपति जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे दोराब टाटा से हुई थी.

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जारी डाक टिकट

खैर बॉम्बे के कैथेड्रल और जॉन कैनन स्कूल में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद, उनका रुख विज्ञान की तरफ हुआ.

फिर रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बॉम्बे में पढ़ाई खत्म होने के बाद, उन्हें साल 1927 में इंग्लैंड भेज दिया गया. जहां उन्होंने कैम्ब्रिज में दाखिला लिया. मैकेनिकल में, क्योंकि उनके पिता और फूफा, दोराब उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे, ताकि वो टाटा इंडस्ट्रीज को ज्वाइन कर सकें. 

लेकिन होमी का मन भौतिकी और गणित की तरफ लग गया. जिसका जिक्र वो 1928 में लिखे एक खत में करते हैं. वो अपने पिता को लिखते हैं, 

मैं आपसे गंभीरता से कह रहा हूं कि मैं व्यापार और इंजीनियर की नौकरी के लिए नहीं बना हूं. यह मेरे स्वभाव के एक दम विपरीत है और मेरे विचारों से परे है. मेरा रास्ता भौतिक विज्ञान का है. मुझे यकीन है कि मैं इस क्षेत्र में बड़े काम कर सकूंगा.

हर आदमी उस क्षेत्र में बेहतर कर सकता है - जिसके लिए उसके मन में प्रेम हो, जिसमें उसका विश्वास हो कि वह यह कर सकता है. यहां तक की उसका जन्म इसी के लिए हुआ हो और उसका भाग्य यही करने का हो. 

इक दूसरे खत में वो कहते हैं कि मैं भौतिक विज्ञान करने की इच्छा के तले दबा जा रहा हूं. वो यहां तक कहते हैं कि उनकी एक ‘सफल’ इंसान बनने की कोई इच्छा नहीं है. ना ही वो किसी बड़े फर्म के मुखिया बनना चाहते हैं. 

वो आगे लिखते हैं, 

बिथोवन (संगीतकार) को वैज्ञानिक बनने के लिए कहने का कोई फायदा नहीं, क्योंकि यह एक महान चीज है. क्योंकि उन्होंने कभी विज्ञान के बारे में नहीं सोचा.

अंत में उनके पिता मान गए और होमी को सैद्धांतिक भौतिकी पढ़ने की इजाजत दे दी. फिर भाभा कैवेंडिश प्रयोगशाला में शामिल हुए. और अपनी Phd पूरी की. 

फिर साल 1939 में वो छुट्टियों में भारत लौटे, और दूसरे विश्व युद्ध के चलते उन्हें यहीं रहना पड़ा. और फिर उन्होंने IISc ज्वाइन किया. जहां सैद्धांतिक विज्ञान से उनका रिश्ता और मजबूत हुआ. और उनकी मुलाकात प्रोफेसर सी. वी. रमन से हुई, जो होमी भाभा से काफी प्रभावित हुए.  

J.R.D. Tata को लिखा खत

बेंगलुरु में पांच साल काम करने के बाद, भाभा को देश में विज्ञान से जुड़ी दिक्कतों के बारे में मालूम चला. अपने दोस्त और उद्योगपति जे. आर. डी. टाटा को लिखे एक खत में वो कहते हैं, 

सही माहौल और ठीक आर्थिक मदद के बिना भारत में साइंस के विकास में मुश्किलें आ रही हैं. इस गति से भारतीय टैलेंट प्रभावित होगा.

जे. आर. डी. टाटा ने भारत में विश्व स्तरीय रिसर्च इंस्टीट्यूट के अभाव को समझा, और भाभा को सुझाया कि वह टाटा ट्रस्ट को लिख कर - नए इंस्टीट्यूट के लिए आर्थिक मदद मांगें. 

भाभा ने खत लिखा भी और विज्ञान के संस्थान के लिए मदद मांगी. इसी खत में वो लिखते हैं, 

जब न्यूक्लियर एनर्जी को ऊर्जा के उत्पादन के लिए सफलतापूर्वक इस्तेमाल में लाया गया है. और आज से दशक भर बाद भारत को एक्सपर्ट्स के लिए विदेशों का मुंह नहीं ताकना होगा, बल्कि वह यहीं तैयार होंगे.

उनका प्रपोजल मान लिया गया और ऐसे स्थापना हुई, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की. जो आज भी भारत के अव्वल रिसर्च इंस्टीट्यूट में गिना जाता है. भाभा की इस दूर की सोच का फल भी निकला.

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) ने एटॉमिक रिसर्च कमेटी का गठन किया. और सुझाया गया कि TIFR को सभी बड़ी न्यूक्लियर फिजिक्स रिसर्च का केंद्र होना चाहिए.

इसके कुछ वक्त बाद देश की न्यूक्लियर पावर पॉलिसी का प्लान तैयार किया गया. जिसका जिक्र भाभा ने तब के प्रधानमंत्री नेहरू को लिखे एक नोट में किया. जिसमें उन्होंने एटॉमिक एनर्जी कमीशन के गठन की बात भी कही. सरकार ने जल्द ही प्रस्ताव मान लिया और एटॉमिक एनर्जी कमीशन का गठन किया गया.

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ऑस्टेरलिया के सिडनी में एटॉमिक पावर से जुड़े एक प्रोग्राम में

 फिर 1950 के शुरुआत में TIFR में न्यूक्लियर फिजिक्स में रिसर्च की शुरुआत हुई. और यह देश की परमाणु ऊर्जा प्रोग्राम का जन्म स्थान बना. साल 1954 में भाभा ने प्रधानमंत्री नेहरू से सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के फंड की व्यवस्था करने की बात की. ताकि देश के परमाणु ऊर्जा प्रोग्राम का काम सुचारू तौर पर हो सके. 

फिर मार्च 1955 में पहले स्विमिंग पूल रिएक्टर या लाइट वाटर रिएक्टर को बनाने का फैसला किया गया. बाद में जिसका नाम APSARA पड़ा. और पचास से भी अधिक वैज्ञानिकों के साझा प्रयासों की बदौलत रियेक्टर ने पहली बार परमाणु ऊर्जा पैदा की. भाभा ने न्यूक्लियर पावर को दुनिया की ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने वाला भी बताया. ऐसे देश की एटॉमिक एनर्जी का रास्ता भाभा की दूर की सोच के चलते निकला. उन्होंने देश और विदेशों में तमाम सम्मान लिए. 

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जेनेवा में इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन द पीसफुल यूज ऑफ एटॉमिक एनर्जी के दौरान भाभा 

फिर जनवरी 1966 में एक रोज TIFR बॉम्बे के ऑफिस में एयर इंडिया की तरफ से फोन आता है. बताया जाता है कि जेनेवा में लैंड होने वाली फ्लाइट वहां नहीं पहुंच सकी है. उनका जहाज, जिस पर भाभा विएना जा रहे थे - उसका संपर्क जेनेवा एयरपोर्ट से टूट गया. कहा गया कि एयर इंडिया आगे की जानकारी के लिए संपर्क में बनी रहेगी.

फिर खबर आती है कि एयर इंडिया का बोइंग 707 आल्प्स के मॉन्ट ब्लैंक में टकरा गया. हादसे में सभी यात्रियों की जान चली गई. इसी जहाज में होमी विएना में इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी की साइंटिफिक एडवायजरी मीटिंग में शामिल होने जा रहे थे. 

यह देश-दुनिया के लिए बहुत बड़ा नुकसान था.

वीडियो: तारीख़: शर्त लगी तो डॉ. होमी भाभा ने साल भर में न्यूक्लियर रिएक्टर बना डाला!