‘Wow!’ एक्टर सैफ अली खान की मिमिक्री करने वाले इसी अभिव्यक्ति का सहारा लेते हैं, हालांकि उन्होंने कभी भी इसे अपना एक्टिंग स्टाइल नहीं बनाया. लेकिन एक बार इमेज बना दी गई तो कोई क्या ही कर सकता है. वैसे Wow का लेना देना सिर्फ सैफ से नहीं है. पृथ्वी पर हैरान करने वाली हर अच्छी या पॉजिटिव चीज के लिए ये लफ्ज मुंह से सबसे पहले निकलता है. अधिकतर लोगों को शायद ना पता हो कि साल 1977 में अंतरिक्ष से एक अंजान सिग्नल मिला, जिसे ‘वॉव सिग्नल’ (Wow signal) की संज्ञा दी गई. सालों तक साइंटिस्ट्स परेशान रहे, ये सिग्नल आया कहां से, किसने भेजा.
अंतरिक्ष का 'Wow signal' असल में आया कहां से? एलियंस का सिग्नल था या कुछ और... नई बात पता चली
Space: 15 अगस्त, 1977 को अमेरिका की ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में कुछ बड़ा हुआ. यहां का ‘बिग इयर रेडियो टेलीस्कोप’ अंतरिक्ष की तरफ से आने वाले सिग्ल्स पर नजर रखे हुए था. एक सिग्नल मिला भी, एक खास फ्रीक्वेंसी का सिग्नल.
बाद में रात में 10 बजे के बाद आने वाले टीवी शोज़ में एक युजुअल सस्पेक्ट निकलकर आया- रोहित का दोस्त. और हॉलीवुड की साई-फाई या सुपर हीरो फिल्मों में दिखने लगे एलियंस.
रात में अगर गलती से टीवी पर कुछ चैनल लग जाए तो हर रहस्यमय चीज के लिए, एलियंस को नामजद कर दिया जाता है. पिरामिड किसने बनाए? एलियंस आए होंगे. माया सभ्यता के मंदिर किसने बनाए? साहब, ‘जादू’ के रिश्तेदार होंगे.' वॉव सिग्नल किसने भेजा? साहब…
लेकिन अब कुछ रिसर्चर्स इस पुरानी गुत्थी में नई कड़ी जोड़ने की बात कह रहे हैं. पहले समझते हैं कि ये वॉव सिग्नल क्या बला है? फिर नई बातों पर नजर डालेंगे.
साल था 1977. देश में आपातकाल खत्म होने के बाद, जनता पार्टी की नई-नई सरकार बनी थी. मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री और उद्योग मंत्री बने, जॉर्ज फर्नांडिस. इसी साल फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (FERA) की शर्तें ना मानने के चलते, कोकाकोला के देश से निकलने की बात चल रही थी.
इस कड़ी में 15 अगस्त, 1977 को द न्यूयॉर्क टाइम्स में एक खबर छपती है. टाइटल रहता है,
कोकाकोला कंपनी के अधिकारी भारत सरकार की मांगों पर चर्चा करने वाले हैं.
Coca‐Cola Executive in India To Discuss Official's Demands
इधर भारत में अमेरिकी कंपनी के भविष्य पर चर्चा चल रही थी, उधर 15 अगस्त 1977 को ही अमेरिका की ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में कुछ बड़ा होने वाला था. यहां का ‘बिग इयर रेडियो टेलीस्कोप’ अंतरिक्ष की तरफ से आने वाले सिग्ल्स पर नजर रखे हुए था.
एक सिग्नल मिला भी, एक खास फ्रीक्वेंसी का सिग्नल. 1420.456 हर्ट्ज की ये फ्रीक्वेंसी हाइड्रोजन लाइन की फ्रीक्वेंसी के करीब थी. दरअसल अंतरिक्ष में मौजूद अलग-अलग चीजें अपनी अलग फ्रीक्वेंसी की तरंगें भी रखती हैं. जिनके आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि फलां फ्रीक्वेंसी, फलां चीज की है.
चूंकि यूनिवर्स में हाइड्रोजन भरपूर है, इसलिए इस फ्रीक्वेंसी को अंतरिक्ष में बातचीत करने के लिए एक न्यूट्रल उम्मीदवार माना जाता है. कहें तो अगर कोई एलियन बात करना चाहे, तो यही फ्रीक्वेंसी बेहतर बताई जाती है.
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ये सिग्नल करीब 72 सेकंड तक चला. और यह आमतौर पर यूनिवर्स के बैकग्राउंड से आने वाली फ्रीक्वेंसी से तीस गुना ज्यादा स्ट्रॉन्ग था.
इन बातों के चलते, यह सिग्नल एलियंस के संपर्क का एक सबूत बताया जाने लगा. इस सिग्नल के डेटा को टेलीस्कोप से एक पर्ची में निकाला गया. पर्ची पर एस्ट्रोनार्मर जेरी एहमैन ने ‘WOW’ लिख दिया. और तब से ये अंजान सिग्नल ‘वॉव सिग्नल’ के नाम से जाना जाने लगा.
हालांकि फिर कभी कुछ इस वॉव सिग्नल जैसा नहीं मिल पाया. अब एक्सपर्ट्स इस सिग्नल के पीछे की वजह पर रौशनी डाल रहे हैं.
एलियन या हाइड्रोजन के बादलयूनिवर्सिटी ऑफ पोर्टो रिको के एस्ट्रोबॉयोलॉजिस्ट, एबेल मेंडेज़ के मुताबिक, यह वॉव सिग्नल असल में अंतरिक्ष में मौजूद हाइड्रोजन के बादल से निकलने वाला एक सिग्नल हो सकता है. इस बारे में मेंडेज और उनके साथी एक रिसर्च पेपर में बताते हैं.
इनके मुताबिक, एक मैग्नेटोस्टार इस सिग्नल के पीछे हो सकता है. यानी ऐसा तारा जिसके आसपास एक तीव्र चुंबकीय बल रहता हो. बताया जाता है कि ऐसे तारे की वजह से ही इतनी तीव्र फ्लेयर निकल सकती है, जो हाइड्रोजन के बादल से ऐसी रेडिएशन या तरंगे निकाल सके.
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बकौल मेंडेज यह काफी दुर्लभ इवेंट है. और यह किसी अचंभे से कम नहीं कि एस्ट्रोनॉर्मर साल 1977 में इसे डिटेक्ट कर पाए. वहीं दूसरे एस्ट्रोनॉर्मर इस बात से पूरी तरह सहमत नजर नहीं आते हैं. उनके मुताबिक मामले में अभी और सबूतों की जरूरत है.
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