करीब दो दशक पहले, उत्तर-पश्चिम चीन (China) का तारिम बेसिन. यहां की ज़िओहे कब्रगाह में कई ममीज़ (mummies) दफ्न मिली थीं. लेकिन ये इतना चौंकाने वाला नहीं था. जितना कि इन ममीज़ के माथे और गले पर लगाया गया एक रहस्यमयी लेप था. लेकिन अब एक हालिया रिसर्च में इस लेप के बारे में खुलासा हुआ है.
छत्तीस सौ साल पुरानी ममीज़ पर लगा था रहस्यमयी सफेद लेप, खूब जांच हुई, अब 'पनीर' निकला
Archeology and History: हाल में रिसर्च जर्नल सेल (Cell) में एक स्टडी छपी. जिसमें DNA टेस्ट के आधार पर एक प्राचीन लेप के बारे में जानकारी दी गई है. बताया गया कि यह रहस्यमयी लेप केफिर चीज़ (Kefir Cheese) है. और क्या पता लगा है?
25 सितंबर को रिसर्च जर्नल सेल (Cell) में एक स्टडी छपी. जिसमें DNA टेस्ट के आधार पर इस लेप के बारे में जानकारी दी गई है. बताया गया कि यह रहस्यमयी लेप केफिर चीज़ (पनीर) (Kefir Cheese) है. जो एक तरह का सॉफ्ट प्रोबायोटिक पनीर है. ये हजारों साल पहले गाय और बकरी के दूध से बनाया जाता था.
इस पनीर में कई बैक्टीरिया और फंगस की प्रजातियां थीं. जिसमें लैक्टोबैसिलस केफिरानोफैसिंनस (Lactobacillus kefiranofaciens), एक तरह का बैक्टीरिया और पिचिया कुद्रिआज़वी (Pichia kudriavzevii), एक तरह की फंगस पाई गई. बताया जा रहा है कि ये दोनों ही प्रजातियां आज के केफिर चीज़ में भी पाई जाती हैं.
दरअसल ये दोनों मिलाकर दूध से चीज़ बनाने में इस्तेमाल किए जाते हैं.
सबसे प्राचीन चीज़स्टडी से जुड़े चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस (CAS) के सीनियर रिसर्चर क्वोमेई फू कहते हैं,
यह दुनिया में अब तक खोजा गया, चीज़ का सबसे प्राचीन सैंपल है. चीज़ जैसे खाने के आइटम का, हजारों सालों तक बचे रहना कठिन काम है. जो इस खोज को अहम और दुर्लभ बनाता है
फू आगे जोड़ते हैं कि इस प्राचीन चीज़ को गहराई से समझने से हमें हमारे पूर्वजों के खान-पान और सभ्यता को समझने में मदद मिल सकती है.
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तिब्बत से नातारिसर्चर्स ने ये भी बताया कि जो बैक्टीरिया वगैरह के ग्रेन्स मिले हैं, वो तिब्बत से ताल्लुक रखने वाले ग्रेन्स से समानता रखते हैं.
आगे ये भी बताया जा रहा है कि इन प्रोबॉयोटिक बैक्टीरिया के जीन्स की सीक्वेंसिंग करके, यानी जीन्स का एनॉलसिस करके, यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले 3600 साल में ये बैक्टीरिया कैसे विकसित हुए हैं.
बकौल फू इन बातों से तीन हजार साल पहले मेंटेन किए गए केफिर कल्चर को समझने में मदद मिल सकती है. साथ ही ये भी बताया जा रहा है कि इससे प्राचीन इंसानों और खाने के संबंध को समझने की तस्वीर और साफ होगी.
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