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रेप करने के पहले वो औरत को पॉर्न क्यों दिखाते हैं?

औरत की 'ना' को 'हां' में बदलने के लिए?

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मान लीजिए आप घर में अकेले हों. कोई आए, चाकू की नोक पर आपके पैसे लूट ले. फिर आपको बांधकर एक वीडियो दिखाए जिसमें किसी का खून किया जा रहा हो. सुकून से शूट किया गया. बड़ा सा वीडियो. क्या आप उस वीडियो को देख कहेंगे कि हां मेरा खून कर दो? या कोई आपको जबरन एक वीडियो दिखाए जिसमें किसी की टांगें तोड़ी जा रही हों. क्या आप उस वीडियो के प्रभाव में अपनी टांग तुड़वाने को राज़ी हो जाएंगे? नहीं. और ये तो सुनने में ही कितना बेतुका सा लगता है. PP KA COLUMN
समय को 4 दिन पीछे घुमाते हैं. गोवा में मोनिका घुर्दे नाम की एक औरत का रेप हुआ. मोनिका परफ्यूम पर रिसर्च कर रही थी. घर में अकेली थी. किसी ने दरवाजा खटखटाया. उसने खोला तो पाया कि सिक्योरिटी गार्ड है. गार्ड के हाथ में चाकू था. चाकू की नोक पर वो अंदर घुसा. मोनिका के मुंह पर अपना हाथ रखा जिससे वो चीख न सके. उसे बांध दिया. फिर उसके पर्स से 4 हजार रुपये लिए. उसका एटीएम कार्ड और पिन ले लिया. फिर उसने मोनिका को कुछ पॉर्न क्लिप्स दिखाईं. उसके बाद उनकी टांगे खोलीं. और उसका रेप किया. फिर उसका क़त्ल कर वहां से चला गया.
अगर आपको रोज पूरा अखबार पढ़ने की आदत है, तो आपको मालूम होगा कि अक्सर ऐसे केस आते हैं जब रेपिस्ट ने औरत का रेप करने के पहले उसे पॉर्न दिखाया होता है. इसकी वजह सोचें तो दिमाग में तुरंत आता है कि वो उसे सेक्शुअल रूप से उत्तेजित करना चाह रहा होगा. बेशक, ये औरत को पॉर्न दिखाने की सबसे बड़ी वजह होगी. पर इकलौती नहीं. लेकिन दूसरी वजहों पर बात करने के लिए ज़रूरी है कि हम पहले पॉर्न पर बात करें. जब भी पॉर्न को बैन करने की बात आती है, मैं उन लोगों में सबसे आगे होती हूं जो इस बैन के खिलाफ हैं. क्योंकि दोष पॉर्न में नहीं, उसको देखने वाले की मानसिकता में होता है. करोड़ों लोग हैं जो रोज़ पॉर्न देखते हैं. दुनिया भर में, हर समय. इंटरनेट पर उपलब्ध सभी तस्वीरों में 80 फीसदी पोर्नोग्राफिक हैं, ऐसा मैंने सुना है. और मानने में मुझे हर्ज नहीं है, क्योंकि इंटरनेट की दुनिया असल दुनिया के पैरेलल खड़ी है. जो हम असल दुनिया में नहीं कर पाते, इंटरनेट पर करते हैं. सेक्स उनमें से एक है. लेकिन वो करोड़ों लोग जो पॉर्न देख रहे होते हैं, उनमें से कितने रेपिस्ट होते हैं? और पॉर्न तो औरतें भी देखती हैं. हम क्यों नहीं ख़बरों में पढ़ते कि फलां औरत ने पॉर्न के प्रभाव में फलां पुरुष का रेप कर दिया? लेकिन पॉर्न देखने वालों में एक बड़ा तबका वो भी है, जिसने असल जिंदगी में कभी 'कंसेंट' यानी स्वीकृति का मतलब समझा ही नहीं होता है. जब मैं कहती हूं कि दोष पॉर्न देखने वाले की मानसिकता में होता है, मैं उन पुरुषों की बात कर रही हूं जो बड़े ही ऐसे माहौल में हुए हैं, जहां औरत मात्र सेक्स की वस्तु है. मैं बात कर रही हूं उस तबके की जिसने सेक्स कभी सीखा नहीं, सिर्फ किया है. मैं बात कर रही हूं बस ड्राईवर, सब्जी वाले, रद्दी वाले और सिक्योरिटी गार्ड की.

आप इस वक़्त मोनिका घुर्दे के साथ निर्भया केस को याद कर सकते हैं.

मैं उनकी बात कर रही हूं जिन्होंने पॉर्न वीडियोज में दिखाई जाने वाली हर चीज को न सिर्फ सच माना है, बल्कि बाहर घूम रही या घरों में अकेली रहने वाली औरतों को मात्र अपनी कल्पना से समझा है. और अपनी कल्पनाओं में ही ये माना है कि वो औरतें सेक्स के लिए उपलब्ध हैं. ये अचरज की बात नहीं, कि सिक्योरिटी गार्ड अक्सर या रोज पॉर्न देखता हो. और देखते हुए उसी औरत की कल्पना करता हो जो उसके सामने से रोज गुजरती है. या जो उसे यकायक दिख गई हो. चूंकि उसकी कल्पना में सामने वाली औरत अपने पति या बॉयफ्रेंड के साथ सेक्स कर चुकी है (जिसके साथ वो उसे कभी या आज दिखी है), मुमकिन है कि वो उसके साथ भी सेक्स करने को राजी होगी. और नहीं होगी तो वो उसे एक पॉर्न क्लिप दिखाकर ये मनवा लेगा कि उसके जैसी औरतें ही सेक्स के लिए राजी रहती हैं. इसलिए उसे भी राजी रहना होगा. जब रेप के पहले पुरुष औरत को पॉर्न क्लिप दिखाता है, वो चाहता है कि एक 'फोर्स्ड कंसेंट' पा सके. यानी जबरन उससे ये मनवा सके कि हां मुझे सेक्स चाहिए. ये कृत्रिम 'हां'. मुंह से निकली या इशारों से की गई 'हां' न होकर एक सेक्शुअल उत्तेजना के रूप में हो. कुल मिलाकर औरत की वेजाइना गीली हो और वो आगे होने वाले रेप का लुत्फ़ ले सके. पॉर्न से उपजी सारी उत्तेजना का कारण उसका छिपा हुआ होना है. पॉर्न का मकसद ही उसके छिपे रहने में है. अगर पॉर्न को पब्लिक में देखा जाए तो उसमें और किसी फिल्म में कोई फर्क नहीं रहेगा. इसीलिए पॉर्न दुनिया की नज़र में एक 'अनैतिक' चीज़ है. उसका 'अनैतिक' होना ही आपको उसे देखने का लुत्फ़ देता है. इस पॉर्न को जब हम किसी के साथ देखना चाहते हैं, या किसी को दिखाना चाहते हैं, हम उस व्यक्ति को अपनी अनैतिक निजता में शामिल करना चाहते हैं. जैसे सोशल नेटवर्क पर किसी को पॉर्न क्लिप, किसी अनजान को पॉर्न जोक या पॉर्न कहानी भेजना, भेजने वाले के दिमाग में एक तरह का निमंत्रण सा होता है. अगर अगला व्यक्ति पढ़कर सकारात्मक रिएक्शन दे, तो भेजने वाले ये मान लेते हैं कि अगला सेक्स के लिए तैयार है. फेसबुक पर फेक प्रोफाइल और टिंडर की सफलता की शायद यही वजह है कि वहां अनैतिक, नैतिक है.

'भाई मुझे टिंडर पर एक लड़की मिली है.'

जैसे किसी का टिंडर पर होना ही उसकी सेक्स के लिए हां है. वरना वो टिंडर पर क्यों होता/होती. डेटिंग की चाह होना सेक्स की चाह के बराबर हो जाता है. और होने वाली चैट जैसे रोज आपको सेक्स की कल्पना करने का ईंधन देती रहती है. मेरी एक सहेली एक फेसबुक फ्रेंड से लगभग 6 महीने चैट करने के बाद मिली. दोनों ने किस किया. थोड़ा फोरप्ले भी हुआ. लड़के ने फिर लड़की से पूछा कि तुम इस तरह की कितनी डेट्स पर जा चुकी हो. लड़की ने कहा तुम ये क्यों पूछ रहे हो. लड़के ने कहा कि हम जब पहली मुलाकात में इतना आगे आ गए तो जरूर दूसरे लोगों के साथ तुम्हारे ज्यादा शारीरिक संबंध रहे होंगे. शॉर्ट में समझें तो लड़के का कहना था कि तुम्हारा तो शौक होगा लड़के बदल बदलकर सेक्स करना. जैसे किसी अनजान लड़के से की गई हर ऑनलाइन चैट का अंत सेक्स ही होता है. वापस आकर मेरी उस दोस्त को महसूस हुआ कि जिस लड़के में वो दोस्त खोज रही थी, वो असल में इतने महीनों से मात्र सेक्स की कल्पना में लगा हुआ था.
मैं जो कहने की कोशिश कर रही हूं, वो ये है कि जिस कंसेंट पर हम आज इतनी चर्चा कर रहे हैं, वो कई लोगों के लिए बड़ा पेचीदा मसला है. क्योंकि कई बार रेप करने के पहले वो लड़की की 'हां' अज्यूम कर लेते हैं. या ये मानकर चलते हैं कि रेप के दौरान उसे लुत्फ़ आने लगेगा तो 'ना' अपने आप 'हां' में तब्दील हो जाएगी.

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