फिल्म में एक सीन है. बहुत क्रूर. घाटी में हालत बेहद बिगड़ चुके हैं. कश्मीर के एक गांव में इंडियन आर्मी की वर्दी पहने कुछ लोग पहुंचते हैं. हथियारबंद. वो लोगों को घरों से बाहर निकालकर इकट्ठा करते हैं. दरअसल ये लोग भारतीय आर्मी के वेश में आतंकवादी होते हैं. फ़िल्म में पुष्करनाथ (अनुपम खेर) की फैमिली पर फोकस ज़्यादा है. उनकी बहू शारदा को खींचकर भीड़ का सामने लाया जाता है. उसके कपड़े फाड़े जाते हैं. ये सब उसके 8 साल के बच्चे शिव के सामने हो रहा होता है, जिसे गन-पॉइंट पर रखा गया है. फिर शारदा को लकड़ी काटने की मशीन से बीचों बीच काट दिया जाता है. मानो ये नज़ीर पेश की जा रही हो कि जो उनके ख़िलाफ़ जाएगा, उसका यही हश्र किया जाएगा. इसके बाद शारदा के बच्चे का भी क़त्ल कर दिया जाता है. इस सीन के खत्म होने के बाद थिएटरों में सन्नाटा पसर जा रहा है. कुछ लोग इस चीज़ को प्रोसेस करने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे विज़ुअल्स आ रहे हैं, कुछ लोग तो इस सीन को देखकर नफ़रत और हिंसा की भावना से भर जाते हैं. हम आपको आज उसी महिला के बारे में बताएंगे. रील वाली नहीं, रियल वाली. कौन थीं गिरिजा टिक्कू? तमाम फिल्मकारों की तरह ही The Kashmir Files को बनाते हुए विवेक अग्निहोत्री ने क्रिएटिव लिबर्टी ली है. उन्होंने दो-तीन घटनाओं के आधार पर एक किरदार गढ़ा है. ये बात उन्होंने कई इंटरव्यूज़ में ख़ुद कुबूली है. कहा जा रहा है कि ये किरदार गिरिजा टिक्कू नाम की कश्मीरी पंडित से प्रेरित है, जो ऐसी ही घटना का शिकार हुई थीं. फ़िल्म में किरदार का नाम शारदा पंडित है. इस किरदार को भाषा सुंबली ने निभाया है.
फिल्म के इसी सीन में ये घटना होती है (ट्रेलर से स्क्रीनशॉट)
गिरिजा टिक्कू कश्मीर के एक सरकारी स्कूल में लाइब्रेरियन का काम करती थीं. शादी बांदीपोरा के एक कश्मीरी पंडित से हुई. उस समय की छपी रिपोर्ट्स के मुताबिक़ गिरिजा केवल 20 साल की थीं जब पांच लोगों ने उनका अपहरण किया, बलात्कार किया और उन्हें आरी से काट कर दो टुकड़ों में कर दिया. गिरिजा के साथ उनके पति की भी हत्या कर दी गई थी. गिरिजा टिक्कू की भतीजी ने बताया पूरा सच हाल ही में गिरिजा की भतीजी सिद्धि रैना ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट किया. 1990 के दौरान उनके परिवार के साथ जो हुआ, उसे उस पोस्ट में साझा किया है. सिद्धि रैना ने लिखा:
"द कश्मीर फ़ाइल्स दुनियाभर में रिलीज हो गई है. यह फ़िल्म उन भयानक रातों को दिखाती है जिनसे न केवल मेरा परिवार गुज़रा, बल्कि हर कश्मीरी पंडित परिवार इसी दौर से गुज़रा.
(ट्रिगर चेतावनी: बलात्कार, यातना, हत्या)
मेरे पिता की बहन, गिरिजा टिक्कू, एक विश्वविद्यालय में लाइब्रेरियन थीं. वो अपनी तनख्वाह लेने गई थीं, वापस जाते समय जिस बस से वह यात्रा कर रही थीं, उसे रोक दिया गया था और आगे जो हुआ वह अभी भी मुझे कंपकंपी, और आंसू देता है. मेरी बुआ को एक टैक्सी में फेंक दिया गया था, जिसमें 5 आदमी थे (उनमें से एक उनका कलीग था). उन्हें प्रताड़ित किया, उनका बलात्कार किया और फिर आरी से उन्हें ज़िंदा काटकर उनकी बेरहमी से हत्या कर दी.
कल्पना कीजिए उस भाई की स्थिति, जिसे अपनी बबली को पहचानना था. जिसकी इस पूरे पाखंड में कोई गलती नहीं थी. आज तक मैंने अपने परिवार के किसी व्यक्ति को इस घटना के बारे में बोलते नहीं सुना. मेरे पिता मुझसे कहते हैं कि वो आज तक शर्म और गुस्से में जी रहे हैं कि मेरी बबली बुआ को न्याय दिलाने के लिए कुछ नहीं कर पाए."