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'रो वर्सेस वेड' केस, जिसका फैसला पलटकर अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन का अधिकार खत्म कर दिया

पचास साल पहले इस केस में फैसला सुनाते हुए अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन को महिलाओं का संवैधानिक अधिकार बताया था.

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अमेरिका में गर्भपात को लेकर बड़ा फैसला. (सांकेतिक फोटो)

अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने देश की महिलाओं को मिले अबॉर्शन यानी गर्भपात के संवैधानिक अधिकार को खत्म कर दिया. कोर्ट ने 24 जून को पचास साल पहले के अपने ही उस फैसले को पलटकर रख दिया, जिसमें कहा गया था कि महिलाओं के लिए अबॉर्शन का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है. पचास साल पहले अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले में ये फैसला सुनाया था, उसे रो बनाम वेड केस के तौर पर जाना गया. अब इस नए फैसले के बाद पचास साल पहले के इस मामले की खूब चर्चा हो रही है.

रो वर्सेस वेड केस क्या था?

सितंबर 1947 में अमेरिका के लुइसियाना में नोरमा मैक्कार्वी नाम की एक बच्ची पैदा हुई. उसकी मां सिंगल पेरेंट थीं. मतलब मां ने अकेले ही नोरमा की परवरिश की. नोरमा की मां को शराब की लत थी. जिसके चलते नोरमा का बचपन बहुत तनाव में गुजरा, इसका दुष्प्रभाव ही था कि वो दूसरे बच्चों से झगड़ जाती थी. नौबत ये आ गई कि नोरमा को कुछ समय के लिए रिफॉर्म स्कूल में भी रखा गया. नोरमा की छोटी ही उम्र में शादी हो गई और महज 16 साल की ही उम्र में वो पहली बार प्रेग्नेंट हो गई. लेकिन बच्चे के जन्म से पहले ही उसका तलाक हो चुका था. इसके चलते उसने अपने पहले बच्चे की कस्टडी अपनी मां को सौंप दी.

बाद में 20 साल की उम्र में उसको दूसरा बच्चा हुआ. इस बार उसने बच्चे को अडॉप्शन के लिए दे दिया. इसके दो साल बाद यानी 22 साल की उम्र में वो तीसरी बार प्रेग्नेंट हुई. उसे इस बार बच्चा नहीं चाहिए था. वो अबॉर्शन कराना चाहती थी. लेकिन अमेरिका के टेक्सस में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी. राज्य में अबॉर्शन की इजाज़त उसी स्थिति में मिलती थी, जिसमें मां की जान को ख़तरा हो. नोरमा के केस में ऐसा नहीं था. इसलिए उसने कोर्ट जाने का फैसला लिया. कोर्ट का फैसला आने में काफी देर हुई, तब तक नोरमा अपने तीसरे बच्चे को जन्म दे चुकी थी. इस बच्चे को भी नोरमा ने अडॉप्शन के लिए दे दिया.

सांकेतिक फोटो
नोरमा बनीं जेन रो

जून 1970 में एक निचली अदालत में तीन जजों की बेंच ने टेक्सस के गर्भपात-विरोधी कानून को असंवैधानिक बता दिया. इसके बाद टेक्सस सरकार ने इसके ख़िलाफ़ उच्च अदालत में अपील की. उस समय नोरमा मैक्कार्वी का असली नाम छिपा लिया गया था. उन्हें सांकेतिक रुप से 'जेन रो' नाम दे दिया गया. जबकि हेनरी वेड उस दौर में टेक्सस के डलास काउंटी के डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी हुआ करते थे. यानी सरकार का पक्ष रख रहे थे. इसी वजह से इस केस को 'रो वर्सेस वेड' के नाम से जाना गया.

टेक्सस सरकार की अपील पर ये केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां दिसंबर 1971 में सुनवाई शुरू हुई और जनवरी 1973 में फ़ैसला आया. इस केस की सुनवाई के लिए बनाई गई 9 जजों की बेंच में से 7 ने जेन रो के पक्ष में थे वहीं 2 टेक्सस सरकार के. जेन रो के पक्ष में दिए गए फैसले में कहा गया,


"गर्भवती महिला एक तय समय तक गर्भपात करा सकती है. इसमें राज्य हस्तक्षेप नहीं कर सकता."

रो वर्सेस वेड केस में आए फ़ैसले के तहत अबॉर्शन को तीन हिस्सों में बांटा गया. पहले तीन महीनों में गर्भपात की पूरी आज़ादी मिली. तीसरे से लेकर छठवें महीने तक कुछ हेल्थ रेगुलेशंस के साथ गर्भपात की इजाज़त दी गई. वहीं छठवें से लेकर नवें महीने में अपवाद को छोड़कर गर्भपात की कतई इजाज़त नहीं थी.

अमेरिका के संविधान के तहत राज्यों के पास अपने अलग कानून बनाने की इजाजत है. ऐसे में ये फैसला सभी राज्यों के ऊपर बाध्य नहीं था. इस तरह से अलग-अलग राज्यों के पास गर्भपात पर पूरी तरह से बैन लगाने या फिर उसके ऊपर कड़े नियंत्रण वाले कानून बनाने का विकल्प था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ जाना सांकेतिक तौर पर कठिन था. इस फैसले ने अमेरिकी महिलाओं को गर्भपात का संवैधानिक अधिकार दिया. ऐसे में इसे ऐतिहासिक कहा गया.

आगे 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस पुराने फ़ैसले में थोड़ा संशोधन किया. कोर्ट ने तीन तिमाही वाले सिस्टम को हटाकर भ्रूण के सर्वाइवल वाला नियम लागू किया. यानी, प्रेग्नेंसी के शुरुआती 24 हफ़्ते तक अबॉर्शन कराने की पूरी आजादी.

रो वर्सेस वेड केस फिर चर्चा में क्यों आया?

साल 2018 में अमेरिका के मिसीसिपी राज्य ने प्रेग्नेंसी के 15 हफ़्ते के बाद अबॉर्शन को बैन कर दिया. ये 1973 और 1992 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ था. जैक्सन वीमेंस हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन ने इस फैसले के खिलाफ याचिका डाली. नवंबर 2018 में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने स्टेट लॉ को पलट दिया. कोर्ट ने कहा कि स्टेट का लॉ महिलाओं के अधिकारों का हनन करता है.

इसके बाद मिसीसिपी सरकार मार्च 2019 में ‘हार्टबीट लॉ’ लेकर आई, जिसमें भ्रूण में कार्डियक एक्टिविटी दिखने के बाद अबॉर्शन की मंजूरी ना होने का प्रवधान था. आमतौर पर भ्रूण में कार्डियक एक्टिविटी प्रेगनेंसी के 6 हफ़्ते बाद ही दिखती है. इसको भी चुनौती दी गई. पहले डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और बाद में सर्किट कोर्ट ऑफ़ अपील्स ने कानून को रद्द करने का फ़ैसला सुनाया.

फिर 15 हफ़्ते वाला केस सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. इसी केस का फ़ैसला 24 जून को आया है. हालांकि, कोर्ट का फैसला आने से पहले ही ड्राफ़्ट ओपिनियन लीक हो गया था. जिसमें पता चला था कि सुप्रीम कोर्ट मिसीसिपी सरकार के पक्ष में फैसला सुनाने जा रहा है.

इस लीक हुए ड्राफ़्ट ओपिनियन के मुताबिक इस बार 9 में से 5 जजों ने रो वर्सेस वेड केस का फैसला बदलने की सिफारिश की. तीन ने विरोध किया. ड्राफ़्ट ओपिनियन में लिखी कई बातें इस तरफ़ इशारा कर रहीं थीं कि 1973 के जजमेंट को असंवैधानिक करार दिया जाएगा.

ड्राफ़्ट ओपिनियन में लिखा था

“रो और सेसी केस के फैसले को पलटना ज़रूरी है. संविधान में कहीं भी गर्भपात को लेकर अधिकार नहीं दिए गए हैं. जेन रो शुरुआत से ही ग़लत थी. उसके तर्क़ बेतरतीब थे और उस फैसले से भारी नुकसान हुआ है. रो वर्सेस वेड केस से पहले कई राज्यों ने कानून में ढील दी थी. लेकिन उस फैसले ने पूरे प्रोसेस को खत्म कर दिया. इसने पूरे देश पर सख़्ती लागू की.”

बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गर्भपात का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार नहीं है, इसको तय करने का अधिकार लोगों और उनके चुने गए प्रतिनिधियों के पास होना चाहिए.  सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर सभी लोग प्रतिक्रिया दे रहे हैं. एक यूजर ने 1970 के इंडियन न्यूज पेपर का फोटो शेयर किया है. जिस में लिखा है गर्भपात लीगल और सुरक्षित है.

इस फैसले के आते ही एक तरफ जहां अबॉर्शन पर प्रतिबंध लगाने वाले समर्थकों ने खुशी जताई, वहीं इसका विरोध करने वालों ने इसे महिला अधिकारों को कुचलने वाला बताया. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देश के लिए दुखद दिन बताया. बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अमेरिका के लगभग आधे राज्य या तो अबॉर्शन को पूरी तरह से बैन कर देंगे या फिर उसके ऊपर कड़े प्रतिबंध लगा देेंगे.