हमें मेल आया विभव का. पटना के रहने वाले हैं. दिवाली पर घर की सफ़ाई कर रहे थे. दरवाज़े से हाथ में गहरी चोट लग गई. सबने कहा तुरंत टेटनस का इंजेक्शन लगवाओ. पर वो काम में मसरूफ़ हो गए. फिर उनके दिमाग से निकल गया. दो-तीन दिन बाद उन्हें इंजेक्शन का होश आया. अब उन्होंने हमें मेल किया. बताया कि लगभग चार साल पहले उन्हें टेटनस का इंजेक्शन लगा था. तो क्या उन्हें ये इंजेक्शन दोबारा लगवाने की ज़रूरत है? और अब तो तीन दिन हो गए. अब क्या किया जाए? हमने कहा डॉक्टर साहब से पूछकर बताते हैं. हमने भी बचपन से टेटनस के बारे में सुना बहुत है. इंजेक्शन भी लगे हैं. पर आज तक ये नहीं पता कि टेटनस में होता क्या है? तो आज इन सारे सवालों के जवाब ढूंढते है. सबसे पहले जानते हैं ये टेटनस आख़िर क्या बला है? और होता क्यों है?
क्या होता है टेटनस?
ये हमें बताया डॉक्टर राजीव ने.

डॉक्टर राजीव कुमार, एमडी मेडिसिन, हिंडाल्को, सोनभद्र
टेटनस एक गंभीर बीमारी है. जानलेवा भी. ये एक बैक्टीरिया के कारण होता है, इस बैक्टीरिया का नाम है क्लॉस्ट्रीडियम टटेनाइ.
कारण
वातावरण में ये बैक्टीरिया मिट्टी में होता है. इस बैक्टीरिया से सनी हुई चीज़ों (जैसे लोहा, पत्थर, जानवरों का मल) से अगर आपको चोट लगती है तो ये उन खुले घाव से आपके शरीर में प्रवेश कर सकता है. शरीर में संक्रमण फैला सकता है. शरीर में तेज़ी से सक्रिय होने लगता है. ये शरीर में एक टॉक्सिन (ज़हर) पैदा करता है जो मांसपेशी से जुड़ी तंत्रिकाओं को, नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है.

लक्षण
-मरीज़ में ये छोटी से छोटी, बड़ी से बड़ी चोट के बाद दिख सकते हैं
-लक्षण 7 से 21 दिन में आते हैं
-शुरू में गले में दर्द, निगलने में दिक्कत हो सकती है
-जैसे जैसे बीमारी बढ़ती है, मरीज़ की मसल्स जकड़ने लगती हैं
-गर्दन और उसके आसपास की मसल्स ज़्यादा प्रभावित होती हैं
-गर्दन और जबड़े के आसपास खिंचाव पैदा होता है, मुंह खोलने, सांस लेने में तकलीफ़ होने लगती है, इस कंडीशन को लॉक जॉ भी कहा जाता है
-बीमारी गंभीर होने पर मरीज़ को सांस लेने में तकलीफ़ होने के कारण वेंटीलेटर की ज़रूरत पड़ सकती है
-अगर इलाज समय पर न मिले तो उसकी जान भी जा सकती है
चलिए बीमारी के बारे में तो पता चल गया. अब आते हैं कुछ और ज़रूरी सवालों पर. इलाज और इंजेक्शन. इनके बारे में डॉक्टर साहब क्या बता रहे हैं.
इंजेक्शन
इनके बारे में हमें जानकारी दी डॉक्टर हर्शल ने.

डॉक्टर हर्शल छोटकर, जनरल सर्जन, एसएमबीटी मेडिकल कॉलेज, नासिक
-कभी-कभी टेटनस के इंजेक्शन के साथ इम्युनोग्लोबुलिन यानी बाहर से एंटीबॉडी भी देते हैं
-बचपन में टेटनस के लिए डोज़ दिए जाते हैं, हर दस साल के बाद एक बूस्टर डोज़ लेना चाहिए
-जो क्लीन ज़ख्म होते हैं यानी एक सेंटीमीटर से ज़्यादा डीप नहीं होता है ऐसे केस में अगर पेशेंट को पिछले 10 सालों में टेटनस का इंजेक्शन नहीं लगा होता है तो ही टेटनस का इंजेक्शन दिया जाता है
-अगर ये ज़ख्म 1 सेंटीमीटर से ज़्यादा गहरा है, इंजरी लगे हुए 6 घंटे बीत चुके हों, या फिर मिट्टी लगी हो, ऐसे केस में अगर पेशेंट को पांच साल में इंजेक्शन न लगा हो तो एक एक्स्ट्रा बूस्टर डोज़ दिया जाता है
-अगर किसी पेशेंट ने पहले इंजेक्शन नहीं लगवाया है या अपना कोर्स पता नहीं है, तो पूरा कोर्स लेना ज़रूरी है

-पूरा कोर्स तीन इंजेक्शन का होता है. चोट लगने के दिन, उसके चार हफ़्ते बाद, आठ हफ़्ते बाद और फिर एक साल बाद
इलाज
-टेटनस का पूरा इलाज अभी उपलब्ध नहीं है
-अगर टेटनस का कोई पेशेंट आता है तो उसे इंटेंसिव केयर में एडमिट करना पड़ता है
-उसके बाद सिम्टोमैटिक ट्रीटमेंट शुरू करना पड़ता है
-एंटीबॉडी बीमारी से लड़ने के लिए दी जाती हैं
-पेन किलर दी जाती हैं
-मसल्स रिलैक्सेंट दिए जाते हैं
चलिए, उम्मीद है विभव जी को उनका जवाब मिल गया होगा. साथ ही टेटनस के बारे में सही जानकारी भी आप लोगों तक पहुंच गई होगी.
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