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मौसम बदलते ही चिड़चिड़ा हो जाते हैं, आपकी मेंटल हेल्थ से क्या कनेक्शन है?

ये एक मूड डिसऑर्डर है या कहें तो मन का डिस्टर्बेंस है. जब मौसम बदलता है तब कुछ लोगों को घबराहट या अवसाद से जुड़े लक्षण आते हैं. जैसे उदास रहना, एनर्जी की कमी होना, निराशा या चिड़चिड़ापन महसूस करना, किसी चीज़ में ध्यान न लगना, अच्छी नींद नहीं आना और हर चीज़ में दिलचस्पी की कमी होना.

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सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर की जांच करवानी चाहिए (सांकेतिक तस्वीर)

क्या आपके साथ भी ऐसा होता है, जब मौसम बदलता है तो मन एकदम उदास सा लगता है? बहुत दुखी महसूस होता है? कुछ काम करने का मन नहीं करता? अगर हां, तो ज़्यादा परेशान होने की ज़रुरत नहीं है. न ही आप में कुछ गड़बड़ है. न ही आप अकेले हैं. ऐसा बहुत सारे लोगों के साथ होता है. इसे कहते हैं - ‘सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर’. कई लोगों को लगता है ऐसा केवल सर्दियों के मौसम में होता है. लेकिन ऐसा नहीं है. गर्मियों में और बारिश में भी ऐसा हो सकता है. मौसम और आपकी मेंटल हेल्थ का कनेक्शन क्या है? सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर क्या है? इसके कारण, लक्षण और इलाज क्या है. साथ ही ये भी जानिए सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर और डिप्रेशन में क्या फर्क है.

सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर क्या है?

(Dr. Jyoti Kapoor, Senior Psychiatrist & Founder, Manasthali)
(डॉ. ज्योति कपूर, सीनियर मनोचिकित्सक एंड फाउंडर, मनस्थली)


ये एक मूड डिसऑर्डर है या कहें तो मन का डिस्टर्बेंस है. जब मौसम बदलता है तब कुछ लोगों को घबराहट या अवसाद से जुड़े लक्षण आते हैं. जैसे उदास रहना, एनर्जी की कमी होना, निराशा या चिड़चिड़ापन महसूस करना, किसी चीज़ में ध्यान न लगना, अच्छी नींद नहीं आना और हर चीज़ में दिलचस्पी की कमी होना. अगर ऐसे लक्षण साल-दर-साल आते हैं तो सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर की जांच करवानी चाहिए.

लक्षण

ये सिर्फ सर्दियों में हो ऐसा ज़रूरी नहीं है. हालांकि सर्दियों में ये ज़्यादा कॉमन होता है. जैसे-जैसे सर्दी बढ़ती है, दिन छोटे हो जाते हैं और धूप कम होने लगती है. तब इसके लक्षण सामने आते हैं. जैसे ये महसूस करना कि जीने का क्या फायदा है. मोटिवेशन कम होना. कुछ लोगों में समर पैटर्न भी होता है. यानी उन्हें ये तकलीफ गर्मियों में होती है. इसमें नींद कम आती है, भूख कम लगती है, चिड़चिड़ापन और गुस्सा बढ़ जाता है, घबराहट होती है.

कारण

ये हॉर्मोन और सर्कैडियन लय (circadian rhythm ) के बदलावों से जुड़ा है. सर्कैडियन लय यानी बॉडी क्लॉक. हमारी बॉडी क्लॉक सूरज की रोशनी से जुड़ी होती है. सूरज की रोशनी से हमारे शरीर में सेरोटोनिन (serotonin) और मेलाटोनिन (melatonin) का बैलेंस बना रहता है. सर्दी में जब रोशनी कम हो जाती है तब ये बैलेंस बिगड़ जाता है. कुछ लोग जिनमें डिप्रेशन और बाइपोलर डिसऑर्डर की टेंडेंसी होती है. उनको इस मौसम में उदासी और उससे जुड़े लक्षण ज़्यादा महसूस होते हैं.

ये जेनेटिकली रिलेटेड भी होता है. यानी अगर पहले से ये समस्या परिवार में रही है. जिस परिवार में माता-पिता को ये समस्या होती है, वहां बच्चों में भी ये लक्षण आ जाते हैं. ऐसे लक्षण साल में दूसरे समय भी नजर आते हैं. जैसे बारिश के मौसम में.

डिप्रेशन और सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर के बीच फर्क?

जो लक्षण डिप्रेशन में होते हैं. जैसे उदासी, मन न लगना, चिड़चिड़ापन. वैसे ही लक्षण सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर में भी होते हैं. लेकिन सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर का ट्रिगर पॉइंट अलग है. ये मौसम के बदलाव और रोशनी की कमी से होता है. लेकिन जो लोग मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर से जूझ रहे हैं. उनमें ये लक्षण दिखने के पीछे वजह केवल मौसम नहीं होती. इसमें डिप्रेशन किसी भी समय हो सकता है. ये लंबे समय तक परेशान कर सकता है.

बचाव

सबसे पहले ये पता करना ज़रूरी है कि मौसम या रोशनी में बदलाव आपके मन को कैसे इफ़ेक्ट करता है. इसकी सही जांच जरूरी है. ये कंडीशन कई बार लड़कियों में देखी जाती है. क्योंकि ये समस्या हॉर्मोन से भी जुड़ी है. पीरियड साइकिल की वजह से पूरे महीने हॉर्मोन में बदलाव होते हैं. इस वजह से कई बार ये समस्या प्री मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम के रूप में होती है. जब एक बार ये जानकारी हो जाती है कि आपके साथ ऐसी समस्या है तो उसी हिसाब से बचाव करें. अगर जीवनशैली संतुलित नहीं है, सोने और उठने का समय सही नहीं है या सही से खाना नहीं खाते हैं, ज़्यादा प्रॉसेस्ड खाना खाते हैं, जिसमें शुगर और फैट की मात्रा ज्यादा है, फिजिकल एक्टिविटी कम करते हैं तो ये चीज़ें दिमागी बीमारियों की वजह हैं. इसलिए जीवनशैली को संतुलित रखना जरूरी है. सर्दी के कारण लोग अपना रूटीन बदल लेते है. जैसे दिन में ज्यादा समय सोते हैं. ठंड में बेड से बाहर निकलने का मन नहीं करता. एक्सरसाइज कम कर देते हैं. ये सारी चीज़ें सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर को बढ़ावा देती हैं

इलाज

इलाज के लिए साइकोथेरेपी और लाइट थेरेपी का सहारा लिया जाता है क्योंकि ये दिक्कत रोशनी से संबंधित है. ऐसा कहा जाता है कि जिन लोगों को डिप्रेशन की समस्या है, उन्हें रोशनी में रहना चाहिए. नेचुरल लाइट नहीं है तो आर्टिफिशियल लाइट का इस्तेमाल करें. ऐसा भी नहीं है कि आप रात में भी रोशनी रखें. एक सही स्लीप साइकल रखें. इसके अलावा विटामिन-डी की कमी का भी रोल होता है. इसलिए विटामिन डी चेक करना और उसका सप्लीमेंट लेना ज़रूरी है. अगर सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर की समस्या बार-बार हो रही है तब मनोचिकित्सक को दिखाएं. एंटीडिप्रेसेंट दवाइयां भी ले सकते हैं. ये सेफ़ और असरदार होती हैं. ये दवाइयां SSRI केटेगरी की होती हैं. ये नर्वस सिस्टम में सेरोटोनिन की मात्रा बैलेंस करती हैं. जिससे मन पॉजिटिव और खुश रहता है. इलाज में साइकोथेरेपी, लाइट थेरेपी या दवाइयां दी जाएंगी. या तीनों का कॉम्बिनेशन दिया जाएगा. ये डॉक्टर लक्षणों को देखकर तय करते हैं.

मौसम बदलने पर आपका मन उदास क्यों रहता है, ये आपने जान लिया. पर अगर ये समस्या आपको मानसिक तौर पर बहुत परेशान कर रही है तो ज़रूरी है कि आप प्रोफेशनल मदद लें.