हालांकि, बच्ची के पीरियड्स शुरू होते, उससे पहले ही उसका इलाज शुरू हो गया. अब उसे हॉर्मोन्स सप्रेस करने की दवाइयां दी जा रही हैं. ताकि, उसके पीरियड्स को तब तक के लिए रोका जा सके जब तक वो उसके लिए तैयार नहीं होती है. हालांकि, शरीर में जो बदलाव आ चुके हैं वो बने रहेंगे.
अखबार ने बच्ची की मां को कोट करते हुए लिखा,
"मेरी बेटी इतनी छोटी है. इन बदलावों से वो कन्फ्यूस्ड और परेशान थी. वो पूछती थी कि उसके शरीर में बाल क्यों हैं जबकि उसके दोस्तों के शरीर में नहीं हैं."

प्रकॉशियस प्यूबर्टी को समझने के लिए हमने डॉक्टर राहुल नागपाल से बात की. वो वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल के पीडियाट्रिक्स और नियोनैटोलॉजी विभाग के हेड हैं. उन्होंने बताया,
प्रिकॉशियस प्यूबर्टी वो अवस्था है जब सामान्य से कम उम्र में बच्चों के शरीर में बदलाव आने लगते हैं. लड़कियों में ये आठ साल और लड़कों में नौ साल से पहले अगर बदलाव आते हैं तो वो प्रकॉशियस प्यूबर्टी के लक्षण हैं.लेकिन Precocious Puberty होती क्यों है? इस पर डॉक्टर नागपाल ने बताया कि बहुत सारी वजहें हैं जिनके चलते बच्चों में कम उम्र में ही प्यूबर्टी आ जाती है. शरीर में किसी प्रकार का कोई इंफेक्शन हो, हॉर्मोन डिसॉर्डर, ट्यूमर, ब्रेन में कोई दिक्कत या चोट की वजह से ये दिक्कत आ जाती है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की उस रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड लॉकडाउन के बाद प्रिकॉशिस प्यूबर्टी के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. लॉकडाउन में बच्चे घरों में बंद हो गए, उनका आउटडोर गेम्स खेलना बंद हो गया, ऐसे में घर में बैठे-बैठे कई बच्चों का वज़न बढ़ गया. वज़न बढ़ने से शरीर में हॉर्मोनल चेंजेस आते हैं. डॉक्टर्स के मुताबिक, लॉकडाउन में हो सकता है इस वजह से प्रिकॉशियस प्यूबर्टी के मामले बढ़े हैं. हालांकि, लड़कियों में प्रिकॉशियस प्यूबर्टी के ज्यादातर मामले इडियोपैथिक होते हैं, यानी उसके होने की साफ वजह नहीं होती है.
कितना कॉमन है प्रिकॉशियस प्यूबर्टी?
प्रिकॉशियस प्यूबर्टी एक रेयर कंडीशन है. पूरी दुनिया में देखें तो आमतौर पर हर 500 में से एक लड़की को और हर 2000 में से एक लड़के को ये दिक्कत होती है.